| मन्दं हसन्तं प्रभया लसन्तं जनस्य चित्तं सततं हरन्तम् |
|| वेणुं नितान्तं मधु वादयन्तं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ||
अर्थ : मृदु हास्य करनेवाले; तेज से चमकनेवाले, हमेशा लोगों का चित्त आकर्षित करनेवाले;
अत्यंत मधुर बासुरी बजानेवाले बालकृष्ण का मै मन से स्मरण करता हुँ।
अपने साधारण नियम और सभी जाति-धर्म के प्रति सम-भाव के चलते भगवान श्री कृष्ण के भक्तों की संख्या देश के साथ-साथ विदेशो में भी लगातार बढ़ती जा रही है। बिना किसी धन -बल के प्रयोग किये ही विश्व में लोगो ने सनातन धर्म को अपनाते जा रहे है |
| हरे कृष्ण हरे कृष्ण , कृष्ण कृष्ण हरे हरे |
|| हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे ||
विश्व भर में इस मंत्र का जाप करते हुए आप कई लोगो को देख सकते है। यूरोप , अमेरिका एवं अन्य कई देशों में लोग सार्वजनिक स्थानो पर भजन संकीर्तन करते हुए दिखते है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा स्थित राजा कंस के कारावास में हुआ था । कृष्ण जन्मस्थली पर जो मंदिर निर्माण हुआ है उसे मुग़ल आक्रांता औरंगजेब द्वारा 1660 ईस्वी में नष्ट करके वहां ईदगाह का निर्माण करवा दिया गया। वर्तमान मे भी वहां यही स्थिती है। मथुरा, भारत के लिए ही नहीं विश्व भर के लिए एक पावन धरती है।
जन्माष्टमी का त्यौहार भगवान श्री कृष्ण के दिव्य जन्म का प्रतीक है, जो हिंदुओं के ईष्ट देवता है। विष्णु जी के दशावतारों में से श्री कृष्ण उनके आठवें अवतार है। यह हिंदू चंद्रमण वर्षपद के अनुसार, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष (अंधेरे पखवाड़े) के आठवें दिन (अष्टमी) को में मनाया जाता है । श्री कृष्ण का जन्म कंस के अत्याचार से मुक्त कराने के लिए हुआ है ।
भगवान श्री कृष्ण के जीवन में ऐसे तो कई महत्वपूर्ण व रोचक घटनाएँ हुई है | उनमें से एक उनके बाल सखा सुदामा के साथ है ।
कृष्ण और सुदामा की मित्रता दर्शाती है कि मित्रता आर्थिक स्थिति के मापदंड से परे है। ऋषि सांदीपनि के आश्रम में कृष्ण और बलराम शिक्षा ग्रहण करते थे । उनके कई मित्रों में से एक सुदामा भी थे । सुदामा और कृष्ण आपस में प्रिय मित्र थे । सुदामा ब्राह्मण थे एवं पुराणों के भी ज्ञाता थे । शिक्षा-दीक्षा के बाद सुदामा अपने गांव अस्मावतीपुर में भिक्षा मांग कर अपना जीवन-यापन करने लगे । लेकिन कई बार अपने बच्चों का भरण पोषण वे ठीक से नहीं कर पाते थे। धन का अभाव होने के कारण उनका जीवन संघर्ष में व्यतीत हो रहा था।
सुदामा ने एक बार अपनी पत्नी को बताया कि उनके मित्र अब द्वारिका के राजा बन गए | अत्यधिक जीवन में संघर्ष के पश्चात सुदामा की पत्नी ने उनसे आग्रह किया की वह श्री कृष्ण से कुछ मदद क्यों नहीं लेते। ताकि वह अपने परिवार का भरण पोषण ठीक प्रकार से कर सके। अपनी पत्नी के बार बार आग्रह करने के बाद सुदामा मान गए एवं कृष्ण से भेट करने के लिए तैयार हो गए। पर अपने मित्र को मिलने के समय कुछ भेट मे देने के लिए कोई भी वस्तु नहीं थी इसलिए उनकी पत्नी किसी से जाकर भुने हुए चावल मांग लाई।
सुदामा कई दिनों की यात्रा के बाद द्वारिका पहुंचे | द्वारिका की चकाचौंध देखकर सुदामा आश्चर्यचकित हो गए | श्री कृष्ण के महल के द्वार पर जाकर सुदामा द्वारपाल से कहने लगे कि मैं श्रीकृष्ण से मिलना चाहता हूं| उस दिन अक्षय तृतीया का दिन था।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार एक ब्राह्मणी थी जो कि बहुत ही निर्धन थी। भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करती थी । एक बार उसे पांच दिन तक भिक्षा में कुछ भी खाने को ना मिला।
छठे दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चने मिले । उसने सोचा कि सुबह उठकर ठाकुर जी को भोग लगाकर फिर चने खाएंगी| ब्राह्मणी ने चने एक पोटली में बांध कर रख दिये | उसी रात्रि उस की कुटिया में चोर चोरी करने आये। कुटिया में उन्हें चुराने के लिए जब कुछ और नहीं मिला तो वे चोर यह विचार कर की शायद इसमें कोई मुल्यवान चीज़ होंगी पोटली चुरा कर ले गए।चोरों की कदमों की आहट से ब्राह्मणी जाग गई और उसने शोर मचा दिया। ब्राह्मणी के शोर मचाने पर चोर भाग गये और गांव वाले चोरों के पीछे भागे|चोर भागते हुए ऋषि सान्दिपनी के आश्रम में जाकर छिप गये जहां श्री कृष्ण और सुदामा उस समय उसी आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।जब गांव वाले चलें गए तो चोर आश्रम से भाग गए लेकिन जाते समय चने की पोटली वहीं छोड़ गए। उधर ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया कि जो भी मनुष्य मुझ निर्धन के चने खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा।
अगले दिन सुबह वह चने की पोटली गुरु माता को मिली। गुरु माता ने जब श्री कृष्ण और सुदामा जंगल में लकड़ी लेने जा रहे थे तो वह पोटली सुदामा को दी और कहा कि भूख लगने पर बांट कर खा लेना।लेकिन सुदामा तो ब्रह्म ज्ञानी थे पोटली पकड़ते ही सारा रहस्य उन्हें समझ में आ गया। सुदामाविचार करने लगे कि गुरु माता ने आदेश दिया है कि दोनों बांट कर चने खा लेना लेकिन उस ब्राह्मणी ने तो श्राप दिया है कि जो भी चने खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा। यदि श्री कृष्ण ने यह चने खा लिये तो सारी सृष्टि दरिद्र हो जाएँगी। इसी श्राप के भय से सुदामा ने सारे चने स्वयं खा लिये और उस ब्राह्मणी का श्राप स्वयं पर ले लिया। यह जानते हुए भी की उनका जीवन एक दरिद्र के रूप में व्यतीत होगा। इस तरह सुदामा ने कृष्ण से अपनी सच्ची मित्रता निभाई थी।इसलिए श्री कृष्ण ने कहा तब तुमने चने छुपाये थे, अब तुम चावल छुपा रहे हो |
श्री कृष्ण ने प्रेम भाव से चावलों की पोटली ली और दो मुठ्ठी चावल खा लिए| श्री कृष्ण कहने लगे जितना रस मुझे आज इन चावलों को खाकर आया है , उतना 56 भोग ग्रहण करके भी मुझे रस नहीं आया |
सुदामा को इस बात का आभास हो गया की प्रभु अन्तर्यामी है। बिना कुछ मांगे ही घर लौट गए | रास्ते भर सोचते रहे कि पत्नी को जाकर क्या जवाब दूंगा| लेकिन घर पहुंचने पर टूटे-फूटे घर की जगह महल बना था | उनकी पत्नी और बच्चे ने बहुत सुंदर वस्त्र धारण किये हुए थे यह देखकर सुदामा समझ गए कि यह सब श्री कृष्ण की महिमा है।