इस समय भारत में एक सितंबर से नवभारत साक्षरता मिशन पर काम चल रहा है। नवभारत साक्षरता मिशन सप्ताह का समापन आठ सितंबर को होगा। इसका उद्देश्य उल्लास-नव भारत साक्षरता कार्यक्रम के बारे में जागरुकता पैदा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाना है। साथ ही सप्ताह भर इस अभियान में देश के हर नागरिक में उसके कर्तव्य व भागीदारी की भावना पैदा करना है। यह विजन इस योजना को लोकप्रिय बना रहा है और हमें भारत को पूर्ण साक्षर बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा। साक्षरता सप्ताह में गतिविधियों का एक परिदृश्य शामिल होगा। 8 सितंबर, 2023 को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाया जाएगा। दूसरा मुख्य उद्देश्य ‘उल्लास’ मोबाइल ऐप पर शिक्षार्थियों और स्वयंसेवकों के लिए पंजीकरण की संख्या में वृद्धि करना है। दरअसल इस तरह के मिशन या आयोजन लोगों को शिक्षा के प्रति गंभीर करते हैं। शिक्षा को मात्र स्कूल या कॉलेज की पढ़ाई से नहीं आंका जा सकता। अच्छी नौकरी व बेहतर जीवन के लिए अतिरिक्त कोर्स करने पड़ते हैं जिसके लिए आम व मध्यम परिवार का बच्चा जागरूक व सक्षम नहीं होता।
इस विषय में मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी में यह बताया गया है कि इस अभियान में सरकारी, प्राइवेट स्कूल, सीबीएसई से संबंधित स्कूल, नवोदय विद्यालय समिति, केंद्रीय विद्यालय समिति, राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षण परिषद के तहत शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, विश्वविद्यालय या एआईसीटीई के तहत एचईआई डिग्री कॉलेज व तकनीकी संस्थान के छात्र, स्काउट्स एंड गाइड्स, एनसीसी, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, ग्राम पंचायतें आदि भी भाग ले रहे हैं। इस अभियान में उल्लास-नव भारत साक्षरता कार्यक्रम के बारे में जिला शिक्षा अधिकारियों और जिला साक्षरता मिशन प्राधिकरण द्वारा बैठकें आयोजित की जा रही हैं जिससे इसमें आर्कषण बना हुआ है। वहीं पंचायत राज संस्थानों को शामिल करते हुए ग्राम पंचायतों में बैठकें तथा साक्षरता कार्यक्रम के बारे में बैनर और तख्तियों के साथ छात्रों और शिक्षकों द्वारा रैलियां, साइकिल रैलियां, प्रभात फेरियां, नुक्कड़ नाटक आदि का आयोजन किया जा रहा है। इन सब चीजों से स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा को हर स्तर पर गंभीरता से लिया जा रहा है।
हालांकि ऐसे आयोजन व कार्यक्रम पहले भी चलाए जाते रहे हैं लेकिन लेकिन पहले जनता व विद्यार्थी इतनी रुचि नही दिखाते थे। चूंकि आज से लगभग दो दशक पहले आर्थिक चुनौतियां ज्यादा घेरती थीं जिसका परिणाम यह होता था कि लोग इस क्षेत्र से मन चुराते थे लेकिन समय के चलते लोगों को यह समझ आया कि शिक्षा ही एकमात्र ऐसा हथियार व रास्ता है जिससे किसी भी जंग को जीता जा सकता है। सरकार का इस क्षेत्र में काम करने का उद्देश्य है कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा युवा भारत देश में हैं जिनको तैयार केवल शिक्षा के बल पर ही किया जा सकता है। बीते दिनों हम चीन को पछाड़ जनसंख्या के आधार पर नंबर एक पर आ चुके हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि कंपीटिशन के इस दौर में हर क्षेत्र में चुनौती बहुत अधिक बढ़ चुकी है। सरकारी हो या प्राइवेट, मात्र एक पद के लिए लाखों आवेदन आ जाते हैं लेकिन मात्र इस बात से निराश होकर हम होकर हम शिक्षा की ओर न बढ़े तो यह पूर्ण रूप से अपने ही नहीं अपनी आने वाली कई पीढ़ियों के साथ बहुत बड़ी बेईमानी होगी। इसके अलावा इस मिशन में पौधरोपण अभियान, पर्यावरण संबंधी जागरुकता के बारे में विचार-विमर्श और चर्चा, हितधारकों द्वारा स्वच्छता अभियान भी शामिल हैं।
दरअसल हम हाईटेक होने के चक्कर में पर्यावरण से इतने दूर हो चुके हैं हम अपने जीवन में हर रोज खुद जहर घोलने का काम कर रहे हैं। महानगरों में कई कॉलोनी तो ऐसी हैं कि वहां लाखों लोगों की जनसंख्या पर एक भी पेड़ नही है। चूंकि शहरों में जमीन इतनी महंगी है कि यहां लोग एक-एक इंच जमीन को कब्जाना चाहते हैं तो इस आधार पर यह समझ लीजिए कि यहां लोग पेड़-पौधे के लिए कहां से जगह बनाएंगे। यदि सरकार की ओर से पार्क न हो तो कहीं भी एक पेड़ नजर नहीं आता। हम इस विषय में सामाजिक पटल पर चर्चा तो जरूर करते हैं लेकिन धरातल पर इसके प्रति सोचना भी शून्य सा नजर आता है। भेड़चाल की इस दुनिया में हर कोई पैसा कमाने या यूं कहें की अपने जीवन को संचालित करने में इतना व्यस्त हो चुका कि वह अपने स्वास्थ्य को लेकर बिलकुल भी सजग नहीं है।
वैश्विक सरकारों के माध्यम से पर्यावरण के प्रति जागरुकता और प्रकृति और पृथ्वी के संरक्षण के लिए तमाम कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। हमारे देश में भी इसको बेहद गंभीर मुद्दा माना जा रहा है लेकिन कुछ देर ही जागरूक होकर फिर पुराने ढर्रे पर आ जाते हैं जिससे हम सही दिशा पर नहीं आ पा रहे हैं। इस बात में कोई दोराय नहीं है कि सरकार ऐसे मामलों में एक बड़ा बजट करती है व इसके प्रति गंभीर भी रहती है। इसके लिए केन्द्र व राज्य सरकार संजीदा भी हैं लेकिन हम उतनी संजीदगी से इस बात की गंभीरता नहीं समझ पा रहे जितने की जरूरत है। शहरों में यदि किसी की सत्तर वर्ष में मृत्यु हो जाए तो लोग कहते हैं कि सही उम्र तक जी कर गये हैं।
इस तरह की बातों से ऐसा लगता है कि महानगरवासियों ने स्वयं भी यह ही ठान और मान लिया कि वह कम जीना चाहते हैं। कम जीना है यह तो उनको पता चल गया लेकिन वो इस सुधार की ओर नहीं जाना चाहते। आज जरूरत है लोग अपनी संचालन प्रक्रिया में थोड़ा सा बदलाव कर अपना जीवन को सुरक्षित करें। कम आयु में हार्ट अटैक, मधुमेह व ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों व अब कोरोना की वजह से हमारा भविष्य दांव पर लग रहा है। हर रोज न जाने कितने परिवार बर्बाद हो जाते हैं। किसी के सिर से साया तो किसी के हमसफर के रूप में मानव की क्षति हो रही है। हालांकि वैश्विक सरकारों के माध्यम से पर्यावरण के प्रति जागरुकता, प्रकृति और पृथ्वी के संरक्षण के लिए तमाम कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है।(लेखक,योगेश कुमार सोनी)