गोपाल गणेश आगरकर एक प्रख्यात समाज सुधारक, संपादक, शिक्षाविद् और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के घनिष्ठ सहयोगी थे। उन्होंने शिक्षा के प्रचार-प्रसार को अपना जीवन उद्देश्य बनाया, उनका दृढ़ विश्वास था कि राष्ट्र की प्रगति और पुनर्निर्माण केवल शिक्षा के माध्यम से ही संभव है।
आगरकर जी ने अपने साथियों — बाल गंगाधर तिलक, विष्णुशास्त्री चिपलूनकर, महादेव बल्लाल नामजोशी, व्ही.एस. आप्टे, व्ही.बी. केलकर, एम.एस. गोले और एन.के. धराप — के साथ मिलकर न्यू इंग्लिश स्कूल, द डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी और फर्ग्युसन कॉलेज जैसे महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थानों की स्थापना में अहम भूमिका निभाई।
वह मराठी साप्ताहिक पत्रिका *केसरी* के पहले संपादक रहे, जिसे उन्होंने 1880-1881 के दौरान तिलक के साथ मिलकर शुरू किया। परंतु, 1882 में कोल्हापुर के दीवान पर की गई टिप्पणी के चलते उन पर मानहानि का मुकदमा चला और उन्हें 101 दिन की जेल की सजा हुई। इस दौरान उन्होंने शेक्सपियर के प्रसिद्ध नाटक *हैमलेट* का मराठी में अनुवाद किया, जिसे उन्होंने “विकार विलसित” नाम दिया। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने अपने कारावास के अनुभवों को “डोंगरीच्या जेलमधील १०१ दिवस” नामक पुस्तक में दर्ज किया।
आगरकर ने भारतीय समाज में फैली कुरीतियों जैसे बाल विवाह, जातीय भेदभाव, अस्पृश्यता, अंधविश्वास और धार्मिक आडंबरों का कड़ा विरोध किया। सामाजिक विचारों को लेकर तिलक से मतभेद होने के कारण उन्होंने *केसरी* छोड़ दी और स्वयं का एक नया साप्ताहिक पत्र *सुधारक* शुरू किया। इसके माध्यम से उन्होंने सामाजिक सुधारों के लिए अभियान चलाया और विधवा पुनर्विवाह का भी खुलकर समर्थन किया।
उनका मानना था कि लड़कों की शादी 20 से 22 वर्ष की उम्र में और लड़कियों की शादी 15-16 वर्ष की उम्र में होनी चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने 14 वर्ष तक की अनिवार्य शिक्षा की जोरदार वकालत की।
गोपाल गणेश आगरकर ने अल्पायु में ही, मात्र 39 वर्ष की आयु में, इस दुनिया को अलविदा कह दिया। अपने जीवनकाल में उन्होंने महाराष्ट्र में शिक्षा और मानवीय मूल्यों के प्रचार-प्रसार के लिए जो कार्य किए, वे आज भी प्रेरणास्रोत हैं। अपने अंतिम समय तक वे फर्ग्युसन कॉलेज में प्राचार्य के पद पर कार्यरत रहे।