श्रीमद्भागवत गीता से समझिये वास्तव में योग है क्या ?
जब भी हम योग का नाम सुनते है तो हमारे मन में विभिन्न प्रकार के आसनों के चित्र बनने लगते हैं। परन्तु वास्तविक योग केवल आसन ही नहीं हैं आसन उस योग का एक भाग हैं, परन्तु योग उससे कहीं उच्च अवस्था का नाम है। चलिए जानते है कि वास्तविक योग क्या है और हम कैसे उसे प्राप्त कर सकते है।
योग क्या है ?
योग संस्कृत भाषा का एक शब्द है,जो युज धातु से मिलकर बना है जिसका अर्थ है जोड़ना। सामान्य भाषा में भी योग (+) का अर्थ जोड़ना ही होता है। परन्तु इस योग का अर्थ –
अपने अस्तित्व को ईश्वर के साथ या ब्रह्माण्डीय ऊर्जा (Cosmic Energy)के साथ जोड़ना है।
श्रीमद्भागवत गीता में लिखा है –
"योगा कर्मसु कौशलम्"
अर्थात कर्मो में कुशलता ही योग है
गीता में ही वर्णन आता है –
"समत्वं योग उच्यते"
अर्थात समता ही योग कही जाती है।
पतंजलि ने अपने ग्रन्थ योगसूत्र के पहले अध्याय की दूसरी सूक्ति में लिखा है –
"योगश्चितवृत्तिनिरोधा"
अर्थात चित्त की वृत्तियो को रोकना ही योग है।
आपको ऐसी अनेक परिभाषाये मिल जायेंगी पर योग का अर्थ अपने अस्तित्व का पूर्ण विकास ही है।
योग के प्रकार
- योग के विभिन्न प्रकार है, जैसे –
- ज्ञान योग
- कर्म योग
- भक्ति योग
- राज योग
- हठयोग
- जप योग
- नाद योग, आदि।
- मार्ग अनेक हैं पर गंतव्य एक है।
- आसन प्राणायाम हठयोग के भाग हैं।
अष्टांगिक योग-
पतंजलि ने योगसूत्र में अष्टांगिक योग का मार्ग बताया है, जो सभी के लिए उपयोगी है। य़हाँ संक्षेप में उसका वर्णन करता हूँ।
- यम (सत्य,अहिंसा,अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य)
- नियम (शौच,सन्तोष,तप,स्वाध्याय,ईश्वरप्राणिधानी)
- आसन
- प्राणायाम
- प्रत्याहार
- धारणा
- ध्यान
- समाधि
सम्पूर्ण विकास के रूप में योग-
- वर्तमान समय में हमें योग को सम्पूर्ण विकास के रूप में देखना होगा।
- हमारे अस्तित्व के 3 प्रमुख स्तम्भ हैं –
- शरीर (Body )
- मन ( Mind)
- आत्मा (Soul)
अतः इन तीनों में सन्तुलन बनाते हुए अपने आप को ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से जोड़ना ही वर्तमान योग का लक्ष्य है।
शरीर के लिए योग -
शरीर हमारे भौतिक अस्तित्व की पहली पहचान है। अतः शरीर को पूर्णता शुद्ध और पवित्र रखने के लिए हम निम्न काम करेंगे।
- उचित व्यायाम
- उचित खान-पान
- प्रकृति के करीब जाना
1. उचित व्यायाम
हमें अपने शरीर को शुद्ध रखने के लिए कुछ आसन और प्राणायाम जरूर करने चाहिए।
कुछ प्रमुख आसन और प्राणायाम जैसे – सूर्यनमस्कार, मत्स्यासन, अधोमुखाश्वनासन, त्रिकोणासन, बालासन, जानुसीर्षासन, कपालभाँति अनुलोम-विलोम, काकीमुद्रा आदि।
2. उचित आहार
- हमें आयुर्वेद के अनुसार ऐसा भोजन करना चाहिए जिससे हमारे तीनों गुण (वात,पित्त,कफ) सन्तुलित रहें।
- एक योगी को अपने पेट का आधा भाग भोजन से, 25% पानी और 25% वायु से भरना चाहिए।
- गीता में भी आया है-
"युक्ताहार विहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु"
अर्थात अधिक खाने वाले और अधिक सोने वाले का योग नही सध सकता। अतः अपने सारे कर्मों में सन्तुलन स्थापित करें।
3. प्रकृति के करीब जाना
- आप प्रकृति से जितना दूर जायेगे आप उतना ही बीमार और परेशान रहेंगे। इसलिए प्रकृति के करीब रहें।
- कम से कम रोज एक बार पार्क में पेड़-पौधो के करीब तो जा ही सकते है।
मन के लिए योग
श्रीमद्भागवतम् के 11वें स्कन्द में एक तितिक्षु ब्राह्मण की कथा आती है, जिसमें कहा गया है –
सारी साधनाओं का लक्ष्य मात्र अपने मन पर नियन्त्रण करना है।
इसलिए मन पर नियंत्रण बहुत आवश्यक है. पर इसके लिए हमें इन 3 बिन्दुओं पर ध्यान देना होगा |
- धारणा
- ध्यान
- प्राणायाम
धारणा
- हम जैसा सोचते हैं वैसे ही बन जाते हैं। इसलिए हमें सदैव सकारात्मक( Positive Thinking ) और शुद्ध चिंतन करना चाहिए। हमारे मन में नित्य 60000 से भी अधिक विचार आते हैं, पर कुछ चुनिन्दा ही याद रह पाते है। हमें ये चुनिन्दा विचार इतने शुद्ध रखने है ताकि ये हमारे मन को परेशान न कर सकें।
- हमें शुद्ध और ईश्वर सम्बन्धि विषयों की ही धारणा करनी है।
ध्यान ( Meditation )
- ध्यान आपके मन को एकाग्र करने और संतुलित करने में सहायक है। जो ध्यान करता है, वह परेशानियो और विपरीत परिस्थतियों से विचलित नही होता। आपको दिन में कम से कम 10 मिनट ध्यान जरूर करना चाहिए।
- ध्यान के भी कई प्रकार हैं, जिनका यहाँ वर्णन करना सम्भव नही। यह एक अलग विषय हो जायेगा। परन्तु यदि आपको यह पसंद आयेगा तो मैं एक article ध्यान पर भी लिखूँगा।
प्राणायाम
- प्राणायाम आपके मन के नियन्त्रित करने में सहायक है। अतः प्राणायाम को अपने जीवन का अंग बनाना चाहिए।
- यदि आपके पास समय नहीं है तो आप दिन में 2 या 3 बार 20-20 कपालभाँति, अनुलोम-विलोम,भ्रामरी कर सकते हैं। इसमें 5 मिनट से ज्यादा समय नही लगेगा।
- रेगुलैरिटी ज्यादा ज़रोरी है बजाय अधिक संख्या के।
आत्मा के लिए योग -
- जब आपका शरीर और मन शुद्ध हो जाता है, तब आप आत्मा तक पहुँच जाते है। जो कि पूर्ण शुद्ध है।
स्वामी रामकृष्ण परमहंस कहते थे –
शुद्ध मन, आत्मा और परमात्मा ये सभी एक ही चीज हैं।
अतः यहाँ भक्ति योग की शुरूआत होती है।
- इसे एक उदाहरण से समझते हैं – मान लो आपके घर में कोई अतिथि आने वाला है, तो आप अपने घर की साफ-सफाई करेंगे उसे शुद्ध करेंगे , अपने घर में सुगन्ध का छिडकाव करेंगे। और जब वह अतिथि आपके घर ये तो भी आप साफ- सफाई में ही लगे रहें और दरवाजा ही न खोलें। तो ऐसी साफ- सफाई का क्या फायदा ? ठीक इसी तरह जब आप अपने शरीर और मन को शुद्ध कर लेते है तो फिर उसमे ईश्वर को भी आनें दें।
- भक्ति तुम्हें आनन्दित करती है क्यो कि तुम्हारे शुद्ध हो जाने पर तुम्हारा जीवन खत्म नही हो जाता। तुम्हारा जीवन प्रारब्ध के अनुसार रहता है।
- अतः शुद्ध होने के बाद सोरे कर्म ईश्वर के लिए ही होते हैं।
मानव जीवन की पूर्णता योग में ही सम्भव
मानव जीवन का जो अन्तिम लक्ष्य है, योग उसे प्राप्त करने का साधन है। योग के मार्ग से ही तुम शुद्ध पवित्र होकर आनन्दित रह सकते हो और पूर्णत्व को प्राप्त कर सकते हो।
क्यों कि-
ऊँ पूर्णमिदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते”।।
सभी का मंगल हो, सभी का कल्याण हो, संसार के सभी व्यक्ति मुक्त हों।
लेखक - सुधांशुलानन्द