पिथोरा चित्रकला एक प्रकार की चित्रकला है। जो भील जनजाति के सबसे बड़े त्यौहार पिठौरा पर घर की दीवारों पर बनायी जाती है।मध्य प्रदेश के पिथोरा क्षेत्र मे इस कला का उद्गम स्थल माना जाता है। इस कला के विकास में भील जनजाति के लोगों का योगदान उल्लेखनीय है। इस कला में पारम्परिक रंगों का प्रयोग किया जाता था। प्रायः घरों की दीवारों पर यह चित्रकारी की जाती थी परन्तु अद्यतन समय में यह कागजों, केन्वस, कपड़ों आदि पर की जाने लगी है। यह चित्रकला बड़ोदा से ९० किलोमीटर पर स्थित तेजगढ़ ग्राम (मध्य गुजरात) में रहने वाली राठवा, भील व नायक जनजाति के लोगों द्वारा दीवारों पर बनाई जाती है।
पिथोरा चित्रकला
इसके अतिरिक्त बड़ोदा जिले के तेजगढ़ व छोटा नागपुर ताल्लुक के आसपास भी पिथोरा चित्रकला घरों की तीन भीतरी दीवारों में काफी संख्या में वहां रहने वाले जनजातीय लोगों के घरों में देखी जा सकती हैं। पिथोरा चित्रकला का इन जनजातीय लोगों के जीवन में विशेष महत्व है तथा उनका यह मानना है कि इस चित्रकला को घरों की दीवारों पर चित्रित करने से घर में शान्ति, खुशहाली व सौहार्द का विकास होता है।
पिथोरा चित्रकला का चित्रण राठवा जाति के लोग ही सबसे अधिक करते हैं तथा अत्यन्त ही साधारण स्तर के किन्तु धार्मिक लोग होते हैं। इनके लिए पिथोरा बाबा अति विशिष्ठ व पूजनीय होते हैं। इस चित्रकला के चित्रण में ये लोग बहुत धन लगाते हैं तथा जो अपने घर में अधिकाधिक पिथोरा चित्र रखते हैं वे समाज में अति सम्माननीय होते हैं। पिथोरा चित्रकार को लखाड़ा कहा जाता है तथा जो इन चित्रकलाओं का खाता रखते हैं उन्हें झोखरा कहा जाता है। सर्वोच्च पद पर आसीन जो पुजारी धार्मिक अनुष्ठान करवाता है उसे बडवा या अध्यक्ष पुजारी कहते हैं। सामान्यत: लखाड़ा किसान होते हैं।
इस् चित्रकला का चित्रण केवल पुरुष ही कर सकते हैं। खातों की देखरेख के अतिरिक्त लखाड़ा सामान्य चित्रण जैसे रंग भरने का कार्य ही पिथोरा चित्रकारों में शामिल होकर कर सकते हैं। वरिष्ठ कलाकारों के मार्गदर्शन में लखाड़ा अच्छे चित्रकार बन जाते हैं। महिलाओं के लिए पिथोरा चित्रण निषेध है।
पिथोरा चित्रकला धार्मिक अनुष्ठानों से अधिक प्रभावित रहती है। इस जनजाति के धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन ईश्वर को धन्यवाद स्वरूप् या किसी की इच्छापूर्ति आदि प्रदान करने हेतु किए जाते हैं। इस प्रक्रिया में बडवा या शीर्ष पुजारी को ही बुलाया जाता है जो उनकी समस्याओं का निराकरण इन अनुष्ठानों द्वारा करवाते हैं। यह समस्याएं चाहे किसी पशु-गाय, घोड़ा, हिरण, बैल, हाथी आदि की अप्राकृतिक मृत्यु अथवा घर के बच्चों की बीमारी से सम्बन्धित हो सकती हैं जिसका समाधान बडवा द्वारा दे दिया जाता है व पूजा पाठ व पिथोरा चित्रकला बनाने का परामर्श स्वरूप उन्हें बडवा द्वारा दे दिया जाता है। पिथोरा बाबा की उपस्थिति को ही सबकी समस्याओं का एकमात्र समाधान माना जाता है। पिथोरा चित्रकला सदैव घर के प्रवेश या ओसरी जो कि प्रथम कक्ष के सामने की दीवार या उसकी भीतरी दीवार पर की जाती है। इन दीवारों को विभिन्न आकृतियों द्वारा पूरी तरह चित्रित कर दिया जाता है।
ऑथर :- साक्षी दुबे