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बॉलीवुड के अनकहे किस्से- केदार शर्मा को जब ईमानदारी पर मिली कम पैसे की नौकरी

Date : 20-Mar-2023

 केदार शर्मा (मूल नाम किदार) का जन्म 1910 में गांव नरोवाल, पंजाब में हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत 1932 में की जब वे कलकत्ता के न्यू थियेटर्स में बैकड्रॉप स्क्रीन पेंटर और पोस्टर पेंटर के रूप में शामिल हुए। उन्हें एक स्टार निर्माता कहा जाता है। उन्होंने फिल्म उद्योग को राज कपूर, मधुबाला, गीता बाली, माला सिन्हा, भारत भूषण, रमोला और तनुजा जैसे कुछ महान सितारे दिए हैं तो कुछ संगीतकारों को पहली फिल्म देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जैसे रोशन, स्नेहल भाटकर, खान साहिब झंडे खान, बुलो.सी. रानी और जमाल सेन...। उन्होंने समय से आगे चलकर और खतरे उठा कर एक नए ढंग का सिनेमा बनाया। यही वजह है कि उन्हें हिंदी सिनेमा का द्रोणाचार्य कहा जाता है। उनकी कुछ महत्वपूर्ण फिल्मों में चित्रलेखा, अरमान, विष कन्या, गौरी, मुमताज महल, भंवरा, चांद चकोरी, धन्ना भगत, दुनिया एक सराय, जोगन, नील कमल आदि शामिल हैं। उन्होंने अनेक फ़िल्मों के गीत, पटकथा और संवाद भी लिखे।

केदार शर्मा ने मदन थिएटर की अपनी पहली नौकरी मिलने और उसके रोचक इंटरव्यू के बारे में अपनी आत्मकथा में विस्तार से लिखा है। वे लिखते हैं- एक दिन मुझे पता चला कि मदन थियेटर्स को एक असिस्टेंट पेंटर की जरूरत है। वहां दिनशा ईरानी नामक एक पारसी सज्जन थे जो कला विभाग के प्रमुख थे। अगले दिन मैं उनसे मिलने पहुंचा तो वहां एक और उम्मीदवार असलम भी इंतजार कर रहा था। वह कुर्ता-पायजामा पहने हुए था, जबकि मैं एक तीन पीस सूट और एक कॉलर वाली बो टाई में आया था। दिनशा का कद छोटा, स्वभाव सख्त लेकिन नेक दिल था। उन्होंने हम दोनों से कहा कि नौकरी अस्थायी है, केवल दो या तीन महीने के लिए। जब हम दोनों इसे स्वीकार करने के लिए तैयार हो गए, तो उन्होंने शरारती मुस्कान के साथ कहा "अच्छा, अब मैं आप दोनों से कुछ सवाल पूछूंगा और मुझे सीधे ईमानदार जवाब चाहिए।"

उनका पहला सवाल था, "तुम शाकाहारी हो या मांसाहारी? मैंने कहा कि मैं पक्का शाकाहारी हूं।" उन्होंने असलम की ओर देखकर बोला, "तुम तो पक्के मांसाहारी होगे। असलम ने शरमाते हुए सिर हिलाया। फिर मेरी ओर मुड़कर उन्होंने पूछा "श्रीमान शर्मा, क्या आप पीते हैं, मेरा मतलब है कि आप ड्रिंक लेते हैं या आप एक टीटोटलर हैं?" मैंने काफी गर्व से जवाब दिया, "सर, मैंने, अपने पूरे जीवन में कभी शराब की एक बूंद भी नहीं चखी।" दिनशा जी ने सिर हिलाया और फिर असलम की ओर मुड़े, जिसने एक पल के लिए अपनी आंखें नीचे कर लीं और फिर जवाब दिया, "सर, मैंने कभी-कभार दारू पी है ताकि मैं अपने दुख, अपनी गरीबी को भूलने में मदद पा सकूं। उसने आगे कहा, "दो ग्लास से मैं खुश हो जाता हूं और गा सकता हूं, लेकिन तीन ग्लास से पूरी दुनिया नशे में लगती है और मैं शांत हो जाता हूं।" दिनशा जी ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा, "तुम बहुत ईमानदार हो।" फिर वह मेरी ओर मुड़े और पूछा, "श्रीमान शर्मा, क्या आप रेड लाइट एरिया जाते हैं, हर एक महीने या एक साल में, आखिरकार आप युवा हैं और अकेले हैं।" इस पर मैंने पलटवार किया, "सर, मैं वेश्यावृत्ति की जगह पर कभी नहीं जाऊंगा, यह एक बदबूदार मांस बाजार है।" मैंने अपने कॉलेज से जारी चरित्र प्रमाण पत्र उनके सामने रखते हुए कहा, "सर, मैं एक अनुकरणीय नैतिक चरित्र के साथ एक खुशहाल शादीशुदा आदमी हूं। मेरा सेंस ऑफ ह्यूमर मेरे लिए वही करता है जो असलम के लिए दारू करती है।"



दिनशा जी अब असलम के पास गए। असलम ने जवाब दिया, "मैं मानता हूं कि मैं कभी-कभी सोना-गाछी (कलकत्ता का रेड लाइट एरिया) जाता हूं। इसमें मुझे तीन रुपये का खर्च आता है। मतलब मुझे तीन वक्त का खाना छोड़ना पड़ता है, लेकिन आखिरकार मुझे इस पाप की जरूरत है क्योंकि मैं कोई देवदूत नहीं हूं।" कुछ देर सोचकर दिनशा जी बोले, "आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि मैं आप दोनों को काम पर रख रहा हूं। श्री शर्मा को हर महीने 100 रुपये का भुगतान किया जाएगा।" फिर वह असलम की ओर मुड़कर बोले, "असलम, तुम्हें हर महीने 200 रुपये मिलेंगे।"

मैं उनके इस अन्याय से नाराज था और विरोध किया। तब दिनशा जी ने अपना तर्क सामने रखते हुए कहा, "देखो तुम एक शाकाहारी, शराब न पीने वाले और उच्च नैतिकता के अच्छे लड़के हो, लेकिन असलम की जरूरतें अधिक हैं, वह संत नहीं हैं, और उसकी आवश्यकताएं अधिक महंगी हैं इसलिए उसे ज्यादा पैसे दिए जा रहे हैं।"

चलते चलते-


केदार शर्मा उनके तर्क से दंग रह गए और विरोध में कुछ कहना चाहते थे, तभी असलम ने उनका हाथ पकड़ कर उनसे कहा, "मिस्टर शर्मा, कृपया,ऑफर को मना न करें, मिस्टर दिनशा आपको पागल लग सकते हैं लेकिन मैं वादा करता हूं कि मैं आपको हर महीने 50 रुपये दूंगा ताकि हम दोनों एक ही राशि कमा सकें, वैसे भी यह नौकरी केवल कुछ महीनों के लिए ही है। आखिरकार दोनों इसके लिए तैयार हो गए। केदार शर्मा हर दिन मदन थियेटर्स स्टूडियो जाने के लिए तीन घंटे पैदल चल कर जाते थे जिससे वह एक रुपये प्रतिदिन बचा सकें।

 
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