"वो सब अपराधी हैं,जिन्होंने आपको विस्मृत कर दिया "
भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में दो ऐंसे महारथी क्रमशः वीर सावरकर और शचीन्द्र सान्याल हुए हैं जिन्हें बरतानिया सरकार दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी,परंतु विडंबना तो देखिए,कांग्रेसी, वामी और तथाकथित सेक्युलर इतिहासकारों ने वीर सावरकर की छवि को धूमिल करने का बीड़ा उठा रखा है,वहीं शचीन्द्र नाथ सान्याल को इतिहास के पन्नों में दफ़न कर दिया है। यह इनका न केवल अपराध है वरन एक ऐसा पाप है जो कभी न धुल सकेगा। एतदर्थ स्वाधीनता के अमृत काल में षड़यंत्र का शमन करना अनिवार्य है।
महान् स्वतंत्रता संग्राम सेनानी-सरदार भगत सिंह के क्रांतिकारी गुरु महा महारथी श्रीयुत शचीन्द्रनाथ सान्याल का जन्म 3 अप्रैल 1893 बनारस, उत्तर प्रदेश, ब्रिटिश भारत में हुआ था। आपके पिताश्री का नाम हरिनाथ सान्याल और माताश्री का नाम वासिनी देवी था।
आपने 1908 में पन्द्रह वर्ष की आयु में काशी में 'अनुशीलन समिति' की स्थापना की थी । इसे बंगाल की 'अनुशीलन समिति' की शाखा के रूप में ही स्थापित किया गया था।
महारथी शचीन्द्रनाथ ने वर्ष 1923 में "हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन" की स्थापना की थी।गदर पार्टी के संगठनकर्ताओं में से एक थे। वे दूसरे स्वतंत्रता संघर्ष के प्रयासों के महान् कार्यकर्ता और संगठनकर्ता थे। वर्ष 1923 में उनके द्वारा खड़े किए गये "हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन" को ही भगत सिंह एवं अन्य साथियों ने "हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ" के रूप में विकसित किया। शचीन्द्रनाथ सान्याल को जीवन में दो बार 'काला पानी' की सज़ा मिली। उन्होंने अपने जीवन के 20 वर्ष कारावास में ही बिताए। उन्होंने 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' के गठन के साथ ही देश बन्धुओं के नाम एक अपील जारी की थी, जिसमें उन्होंने भारत के पूर्ण स्वतंत्रता के लक्ष्य के साथ और सम्पूर्ण एशिया के महासंघ बनाने की परिकल्पना भी प्रस्तुत की थी।
वर्ष 1937-1938 में कांग्रेस मंत्रिमंडल के प्रयासों से जब राजनीतिक क़ैदियों को रिहा किया तो उसमें शचीन्द्रनाथ भी रिहा हो गये, लेकिन उन्हें घर पर ही नजरबंद कर दिया गया। कठिन परिश्रम, कारावास और फिर चिन्ताओं से वे क्षय रोग से ग्रस्त हो गये और जब खून की उल्टियाँ होने लगीं, तो उन्हें मरने के लिए रिहा कर दिया गया। गोरखपुर में 7 फरवरी सन् 1942 में भारत का यह महान् क्रांतिकारी जर्जर शरीर के साथ चिर निद्रा में सो गया।
जिस नगर में उनकी सांसों की डोर टूटी,वे वहीं विस्मृत हैं, उस नगर में उनके नाम पर न कोई सड़क है, न चौराहा और न ही कोई स्मारक। यहाँ तक कि उनका घर भी बिक चुका है। हम तो उनकी यादों को दिल में संजोए हैं पर हमारे वीर सपूत की नगर में गुमनामी उन्हें दर्द देती है।इस से भी भयानक यह है कि वामपंथी तथा एक दल विशेष के समर्थक परजीवी इतिहासकारों ने उनका यदाकदा नामोल्लेख कर जो दर्द दिया है वो तो नासूर है। परंतु अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने सुध ली है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर तीन करोड़ रुपये खर्च कर क्रांतिकारी सचींद्र नाथ सान्याल का घर पर्यटन केंद्र बनेगा। इसके लिए शासन को प्रस्ताव तैयार कर भेज दिया गया है। प्रस्ताव के अनुसार घर में संग्रहालय व पुस्तकालय बनाया जाएगा ।कार्य प्रगति पर है।
लेखक - डॉ आनंद सिंह राणा