डॉ. रमेश ठाकुर
हाथियों की डीएनए-आधारित गणना के नतीजे आ गए हैं। सार्वजनिक हुए ये नतीजे दुखद हैं। भारत के जंगलों में गजराजों की आबादी तेजी से घटने का तथ्य सामने आया है।संख्या में गिरावट की यह रफ्तार इतनी तेज है कि जरूरी उपाय नहीं किए गए तो गजराजों की गर्जना अतीत की बात हो सकती है। यह पर्यावरणविदों की उस बात पर भी मुहर है जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों से लंबे समय से हाथियों को बचाने की मांग की जाती रही है। गणना आधुनिक तकनीकों से हुई। यह नई डीएनए तकनीक प्रत्येक हाथी की उसके जेनेटिक सिग्नेचर से पहचान करती है। इससे गिनती बिल्कुल सटीक होती है। इसे दुनिया की पहली व्यापक डीएनए-आधारित हाथी गणना का तमगा हासिल है। रिपोर्ट में सबसे ज्यादा हाथी कर्नाटक में बताए हैं, वहां 6,013 हाथी हैं। दूसरे स्थान पर असम को रखा है जहां 4,159 हाथी हैं। इसके अलावा तमिलनाडु में 3136, केरल में 2785, उत्तराखंड में 1792 और ओडिशा में 912 हाथी शेष बचे हैं। इस मामले में उत्तराखंड, तराई क्षेत्र, हिमाचल क्षेत्रों के हालात बहुत खराब हैं।
गणना के नतीजे बताते हैं कि भारत में हाथियों की कोई प्रजाति ऐसी नहीं बची, जिनमें उनकी कम होती संख्या न दर्ज की गई हो। मौजूदा गणना की मानें तो पिछले 8 साल में करीब 25 फीसदी हाथियों की संख्या भारत में सिमट गई है। जंगलों में वास करने वाली विभिन्न किस्म की जीव प्रजातियां और बेजुबान जानवरों की संख्या बीते कुछ वर्षों से लगातार घटी ही हैं, उनमें हाथी भी अब शामिल हो गए हैं। तीन हजार के करीब ऐसे जीव हैं जिनकी संख्या तकरीबन विलुप्त हो चुकी है। कुछ कतार में हैं। उसी कतार में हाथियों का भी शामिल होना, घोर चिंता का विषय है। जंगलों का लगातार खत्म होना, उनके रहने की जगहों का टुकड़ों में बंटना और गलियारों का कटना- इसके मुख्य कारण निकल कर आए हैं। हाथियों को उनके रहने की जगह जब नहीं मिलती हैं तो वह खेतों और आवासीय क्षेत्रों का रुख करते हैं, जहां पहले से घात लगाए शिकारियों के चंगुल में फंस जाते हैं। कुछ महीने पहले असम से दुखद खबर आई थी, दर्जन भर से ज्यादा हाथी रेलवे पटरी पर आकर कट गए थे।
भारत में पहली मर्तबा डीएनए आधारित इस नई टेक्नोलॉजी द्वारा हाथियों की गिनती हईं है जिसमें यह चिंताजनक रिपोर्ट सामने आई है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने हाथियों को लेकर पिछली गणना साल-2017 में कराई गई थी जिसमें में 29964 हाथी बताए गए थे। वहीं, मौजूदा गणना में संख्या घटकर मात्र 22446 रह गई। यानी वर्ष 2017 से 2025 के बीच इन 8 वर्षों में करीब साढ़े सात हजार हाथी कम हो गए। हाथियों की कम होती आबादी जंगलों के सिकुड़ते आकार और इंसानों व हाथियों के बीच बढ़ते टकराव की ओर इशारा आज से नहीं, बल्कि बहुत पहले से कर रही है। लेकिन हम बेखबर थे। असम के जंगलों में हाथियों की संख्या सर्वाधिक हुआ करती थी, वहां उनका अवैध शिकार बड़े स्तर पर आज भी जारी है। हाथियों की कुछ प्रजातियां ऐसी हैं जो सिर्फ भारत में ही पाई जाती है। उन हाथियों के दांत व शरीर के अन्य अंगों की अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी मांग रहती है। मोटी कमाई के लालच में तस्कर बेजुबान हाथियों का शिकार करते हैं। इस कृत्य में कई बार वनकर्मियों की भी सांठगांठ सामने आई है।
भारत के अलावा वैश्विक स्तर भी हाथियों की आबादी तेजी से घट रही है। मौजूदा जनगणना ‘वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ के नेतृत्व में हुई है जिनमें पारंपरिक तरीकों को छोड़कर नए आधुनिक और वैज्ञानिक रूप से सटीक डीएनए मार्क-रिकैप्चर विधि का इस्तेमाल किया गया। पहले हाथियों की गिनती उनकी चहलकदमियों या तो उन्हें देखकर हुआ करती थी या फिर उनके प्रजनन के आधार पर आकलन किया जाता था। पर, वह तरीके उतने सटीक नहीं थे। विश्व भर में हाथियों की मौजूदगी की बात करें तो वर्ष 1964 से लेकर 2016 तक जंगली हाथियों की आबादी में औसतन 90 फीसदी की कमी हुई है। अफ्रीका में पाए जाने वाले 'सवाना हाथियों' की संख्या तकरीबन एक तिहाई लुप्त हो चुकी है। कुल मिलाकर, हाथियों की संपूर्ण आबादी में औसतन 77 प्रतिशत कमी आ चुकी है। करीब तीन दशक पूर्व ग्लोबल लेबल पर किए गए सर्वेक्षण में 37 देशों के 475 ऐसे स्थलों का जायजा लिया गया था जहां हाथियों की आबादी अच्छी हुआ करती थी। लेकिन सर्वेक्षण टीम ने उन सभी जगहों पर हाथियों की संख्या में गिरावट दर्ज की। उस गणना में भारतीय जंगल भी शामिल थे।
अभी कुछ नहीं बिगड़ा, हाथियों को अभी भी बचाया जा सकता है। विश्व के 90 देशों के मुकाबले भारत में गजराजों की आआदी अभी भी सर्वाधिक है। भारत के पश्चिमी घाट अभी भी हाथियों के सबसे बड़े गढ़ हैं, वहां 11,934 हाथी हैं। जबकि, साल 2017 में इनकी संख्या 14,587 थी। उत्तर-पूर्वी पहाड़ियों और ब्रह्मपुत्र के बाढ़ वाले मैदानों में 6,559 हाथी हैं जो साल 2017 के 10,139 से कम हैं। मध्य भारत के ऊंचे इलाके और पूर्वी घाट में कुल मिलाकर 1,891 हाथी हैं जो साल 2017 की रिपोर्ट में बताए गए 3,128 हाथियों से कम हैं।
हाथियों की आबादी बढ़ाने के लिए सबसे पहले सुरक्षित आवासों को संरक्षित करना होगा और अवैध शिकार करने वाले तस्करों पर लगाम लगानी होगी। सबसे जरूरी ध्यान मादा हथनियों के स्वास्थ्य की देखभाल और उनके आवश्यक रखरखाव पर ध्यान देना होगा। इससे प्रजनन क्रियाओं को बढ़ावा मिलेगा। असम, कर्नाटक जैसे राज्यों में ‘टाइगर रिर्जव’ की भांति ‘हाथी रिजर्व परियोजना’ या ‘प्रोजेक्ट एलिफेंट’ जैसे विंग गठित होने चाहिए। इन जरूरी तथ्यों पर ध्यान दिए बिना हाथियों को नहीं बचाया जा सकता। इसमें सामाजिक स्तर पर भी बड़े और लगातार प्रयास किए जाने की जरूरत है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
