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चन्द्रमा में पानी का इतिहास

Date : 11-Jan-2024

चन्द्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है जिसकी उत्पति आज से करीब 450 करोड़ साल पहले एक उल्का के धरती के टकराने से हुई  वैज्ञानिकों का कहना है कि जब वह थेया नाम का उल्का  धरती से टकराया तो धरती का एक टुकड़ा टूट कर अलग हो गया और वह चांद बन गया और चन्द्रमा सौर मंडल का पाचवाँ सबसे विशाल प्राकृतिक उपग्रह है.

चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है और  यह प्रथ्वी कि परिक्रमा 27.3 दिन मे पूरा करता है यानि की 27.3 दिन में  यह पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करता है और आकार के हिसाब से भी   यह सौरमंडल में सबसे बड़ा प्राकृतिक उपग्रह है जिसका व्यास पृथ्वी का एक चौथाई है और लगभग 49 चाँद धरती में समा सकते हैं और यह  बृहस्पति के बाद सबसे अधिक घनत्व वाला उपग्रह है।

सौरमंडल के 181 उपग्रह में से चांद आकार के हिसाब से पांचवां सबसे बड़ा उपग्रह  और सूर्य के बाद आसमान में सबसे अधिक चमकदार चन्द्रमा है  और समुंदर के अंदर आने वाले ज्वार भाटा चन्द्रमा  से ही आते है यह चन्द्रमा  की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण आते है  और पथ्वी से चंद्रमा का 59 % भाग  दिखाई देता है और पूरा चाँद आधे चाँद से 9 गुना ज्यादा चमकदार होता है. और  चन्द्रमा अपनी कक्षा में घूमते हुए जब सूर्य और पृथ्वी के बीच से होकर गुजरता है तो वह सूर्य के सामने  जाता है  तो उसे सूर्यग्रहण कहते है.

और  चन्द्रमा और पृथ्वी के तापमान में बहुत अंतर है चन्द्रमा  के दिन का तापमान 180 डिगरी सेलसीयस तक पहुँच जाता है जब कि रात का -153 डिगरी सेलसीयस तक पहुच जाता है और चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी से कम है  इसलिए चांद पर इंसान का वजन 16.5% कम होता है.

चन्द्रमा पर पानी की खोज

इन्सान ने चन्द्रमा पर अपना कदम रख दिया है और अन्तरिक्ष मे मानव सिर्फ चन्द्रमा पर ही कदम रख सका है  नील आर्मस्ट्रोग चन्द्रमा पर कदम रखने वाले पहले इंसान थे और जब नील  आर्मस्ट्रांग ने अपना पहला कदम चंद्रमा पर रखा तो उसका निशान छप गया जो निशान चन्द्रमा की जमीन पर बना वह अब तक है  और आज तक महज 12 लोग ही चांद पर जा पाए हैंऔर  पिछले 41 साल से चांद पर कोई आदमी नही गया है.

और सोवियत राष्ट् का लूना-1 पहला अन्तरिक्ष यान था जो चन्द्रमा के पास से गुजरा था और  लूना-2 पहला यान था जो चन्द्रमा की धरती पर उतरा था और उसके बाद तो बहुत से देशो ने चन्द्रमा पर जाने की तयारी कर ली और और सन् 2008 के बाद से, जापान, चीन, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी में से प्रत्येक ने चंद्र परिक्रमा के लिए यान भेजा है। इन अंतरिक्ष अभियानों ने चंद्रमा पर जल-बर्फ की खोज में योगदान दिया है

और चांद पर पानी की खोज भारत ने की थी 18 नवंबर 2008, को  100 किलोमीटर (62 मील) की ऊंचाई पर भारत के चंद्रयान -1 से जारी किया गया था  की चंद्रमा की सतह से ऊपर पतली परत है और वह पानी के सबूत दर्ज किये गये 24 सितम्बर 2009 को साइंस पत्रिका की सूचना दी मून मिनरलॉजी मैपर (एम 3) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के (इसरो) चंद्रयान -1 ADH से  चंद्रमा पर पानी का पता चला है। और  सितम्बर 2009 में, अमेरिका के  नासा के मून मिनरलॉजी मैपर पेलोड चंद्रयान -1 जहाज पर चंद्रमा की सतह पर पानी का पता लगाया था

और नवम्बर 2009 में, नासा अपने LCROSS अंतरिक्ष से हाइड्रॉक्सिल का इस्तेमाल करके कुछ सामग्री चांद के ऊपर दक्षिणी ध्रुव  से फेंकी गई जिससे पानी का पता लगाया गया और सन 2010 के अंदर मिनी SAR बोर्ड पर चंद्रयान -1 से पता लगाया  गया की एक अनुमान से  600 मीट्रिक मिलियन टन पानी बर्फ है

और जब सारे अपोलो अंतरिक्ष यान चाँद से वापिस आए तब वह कुल मिलाकर 296 चट्टानों के टुकड़े लेकर आए जिनका द्रव्यमान(वजन) 382 किलो था आज तक भी सभी देश चांद के ऊपर खोज कर रहे हैं और अब चांद के ऊपर जीवन संभव करने की खोज भी की जा रही है |

चंद्रयान के चांद पर पानी खोजने के बाद अब अमेरिकी वैज्ञानिकों ने चांद पर पानी खोजने की और कदम बढ़ा दिया है अमेरिकी वैज्ञानिक चांद पर पानी खोजने के लिए चंद्रमा की सतह पर बमबारी करने के लिए तैयार हैं अमेरिकी एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों का कहना है.कि अब चंद्रमा पर मनासा बमबारी करेगा.नासा के वैज्ञानिकों का कहना है.

कि चांद की दक्षिणी ध्रुव से 9000 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलने वाले दो यान टकराएंगे उन यानो के टकराने के कारण एक गुब्बारा उत्पन्न होगा.  यह गुबार लगभग 10 किलोमीटर ऊँचा बनेगा इस सारी प्रतिक्रिया को नासा के वैज्ञानिक कैमरे में कैद करेंगे . और यदि नासा के अधिकारियों का यह मिशन सफल रहता है तो उनका मानना है कि आने वाले समय में अंतरिक्ष यात्री चांद का ही पानी पिएंगे.

 

 
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