2028 में लॉन्च होगा भारत का शुक्रयान Date : 29-Sep-2024 दुनिया की सभी अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच अंतरिक्ष में जाने की होड़ मची हुई है। इसी बीच भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से जुड़ी एक खबर सामने आ रही है। अंतरिक्ष एजेंसी साल 2028 में शुक्रयान लॉन्च करेगी। अंतरिक्ष में भारत एक और कारनामा करने जा रहा है। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) अपना पहला शुक्र मिशन लॉन्च करेगा, जिसकी तारीख मार्च 2028 होगी। केंद्र सरकार ने 19 सितंबर को इस मिशन को मंजूरी दी थी। यह मिशन चार साल का होने वाला है। शुक्र ग्रह पृथ्वी से करीब 4 करोड़ किलोमीटर दूर है। बता दें कि शुक्र को पृथ्वी का जुड़वां ग्रह भी कहा जाता है। हालांकि, यहां का दिन-रात पृथ्वी की तुलना में काफी लंबा होता है। शुक्र ग्रह अपनी धुरी पर बहुत धीमे घूमता है। इसकी वजह से वीनस का एक दिन पृथ्वी के 243 दिनों के बराबर होता है। क्या है शुक्र मिशन? भारत का यह मिशन ऑर्बिट का अध्ययन करेगा। यह ग्रह की सतह, वायुमंडल, ऑयनोस्फियर (वायुमंडल का बाहरी हिस्सा) की जानकारी जुटाएगा। वीनस सूर्य से करीब 11 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर है। ऐसे में सूर्य का इस पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह मिशन पता लगाने का काम करेगा। शुक्र का अध्ययन क्यों जरुरी? शुक्र को पृथ्वी का जुड़वां ग्रह कहा जाता है। इसके पीछे की वजह इसका आकार और घनत्व है जो पृथ्वी के समान है। इसलिए शुक्र का अध्ययन पृथ्वी के विकास को समझने में मदद कर सकता है। यह भी माना जाता है कि शुक्र पर कभी पानी था, लेकिन अब यह सूखा और धूल भरा ग्रह बन गया है। वीनस ग्रह पर कैसे जाएगा भारत? जानकारी के लिए बता दें कि भारत मार्च 2028 में शुक्र मिशन लॉन्च करेगा। तब यह सूर्य से सबसे दूर और पृथ्वी के सबसे करीब होगा। खबरों की मानें तो अगर इस समय किसी वजह से लॉन्चिंग रुक जाता है तो अगला मौका 2031 में मिलेगा, क्योंकि तब यह फिर से पृथ्वी के सबसे करीब होगा। सैटेलाइट को पृथ्वी से लॉन्च किया जाएगा। पृथ्वी की कक्षा में पहुंचने पर यह तेजी से शुक्र की ओर बढ़ेगा। पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलने के बाद उपग्रह को शुक्र तक पहुंचने में लगभग 140 दिन लल जाएंगे। GSLV मार्क-2 रॉकेट से किया जा सकता है लॉन्च वीनस मिशन, शुक्र ग्रह का चार साल तक अध्ययन करेगा। उम्मीद है कि शुक्रयान को GSLV मार्क-2 रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा। शुक्रयान का वजन करीब 2500 किलोग्राम होगा। इसमें 100 किलोग्राम के पेलोड होंगे। पेलोड की संख्या बाद में तय की जाएगी। हालांकि, जर्मनी, स्वीडन, फ्रांस और रूस के पेलोड भी लगाए जा सकते हैं।