पहाड़ों में हिलजात्रा को कृषि पर्व के रूप में मनाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है| सातू-आंठू से शुरू होने वाले कृषि पर्व का समापन पिथौरागढ़ में हिलजात्रा के रूप में होता है| इस अनोखे पर्व में बैल, हिरन, लखिया भूत जैसे दर्जनों पात्र मुखौटों के साथ मैदान में उतरकर देखने वालों को रोमांचित कर देते हैं| हिलजात्रा पर्व सोर, अस्कोट और सीरा परगना में ही मनाया जाता है, लेकिन सबसे अधिक ख्याति बटोरी है, कुमौड़ की हिलजात्रा ने|
कुमौड़ की हिलजात्रा के बारे में कहा जाता है कि यहां के चार महर भाइयों की वीरता से खुश हो कर नेपाल नरेश ने मुखौटों के साथ हिलजात्रा पर्व को भेंट किया था| तभी से यहां ये पर्व हर साल मनाया जाता है| कुमौड़ हिलजात्रा आयोजन समिति के सचिव यशवंत महर का कहना है हिलजात्रा जहां उनके पूर्वजों की वीरगाथा का प्रतीक है, वहीं पहाड़ के लोगों का अपनी संस्कृति से लगाव भी दर्शाता है| यह उत्सव कृषि पर्व के रूप में भी जाना जाता है| इस पर्व का आगाज भले ही महरों की बहादुरी से माना जाता हो, लेकिन अब इसे कृषि पर्व के रूप में मनाने की परम्परा शुरू हो गई है|
हिलजात्रा में बैल, हिरन, चितल और धान रोपती महिलाएं यहां के कृषि जीवन के साथ ही पशु प्रेम को भी दर्शाती हैं| समय के साथ आज इस पर्व की लोकप्रियता इस कदर बढ़ गई है कि हजारों की तादाद में लोग इसे देखने आते हैं| यही नहीं हिलजात्रा के पर्व के लिए पात्रों के द्वारा खास तैयारियां भी की जाती हैं| कई पात्र तो खुद के अभिनय को ईश्वरीय चमत्कार भी मानते हैं| लखिया भूत का किरदार निभा रहे महेंद्र महर का कहना है कि वे पहली बार इस अभिनय को कर रहे हैं, लेकिन इसको लेकर वे काफी उत्साहित हैं| बचपन से ही वे लखिया बाबा का रोल अदा करना चाहते थे|
शिव का गण माना जाता है लखिया भूत-
घंटों तक चलने वाले हिलजात्रा पर्व का समापन उस लखिया भूत के आगमन के साथ होता है, जिसे भगवान शिव का गण माना जाता है| लखिया भूत अपनी डरावनी आकृति के बावजूद हिलजात्रा का सबसे बड़ा आकर्षण है| जो लोगों को सुख, समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद देने के साथ अगले साल आने का वादा कर चला जाता है|