मुलमुला:- तहसील कोण्डागांव षामपुर माकड़ी को जाने वाले मार्ग पर चिपावण्ड ग्राम से लगभग 5 किमी की दूरी पर ग्राम मुलमुला सिथत है। इस गांव से लगभग 3-4 कि.मी. अंदर सुरक्षित वन क्षेत्र में मुलमुला एवं काकरावेड़ा जंगल मूसर देव नामक स्थल है। वर्तमान में यहां कर्इ प्राचीन टीले हैं इन टीलों के पास ही एक शिवलिंग है। चूंकि यह शिवलिंग लम्बार्इ में मूसर की आकृति का है जिसके कारण स्थानीय लोक इसे मूसर देव के नाम से जानते है।
आराध्य माँ दंतेष्वरी – बडे़डोंगर :- फरसगांव से मात्र 16 कि.मी. दूरी पर रचा बसा चारों ओर पहाडि़यों से घिरा यह क्षेत्र बडे़डोंगर अपने इतिहास का बखान कर रहा है। आज इस क्षेत्र की चर्चा सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ राज्य में है। कहावत है, कि बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेष्वरी का निवास स्थान प्रमुख रूप से मंदिर दंतेवाड़ा है। पहले कभी बस्तर की राजधानी बडे़डोंगर में मार्इ जी का प्रमुख पर्व दषहरे का संचालन इसी मंदिर से होता था। कथा प्रचलित है कि महिशासुर नामक दैत्य का संग्राम मां दंतेष्वरी से इसी स्थल पर हुआ था। महिशासुर उस रणभूमि में कोटि-कोटि सहस्त्र रथ हाथियों एवं घोड़ों से घिरा हुआ था। देवी ने अस्त्र षस्त्रों काी वर्शा कर उनके सारे उपाय विफल किए। बडे़डोंगर में पुराने समय में 147 तालाब पाये गये थे जो इसे विषेश तौर पर तालाबों की पवित्र नगरी के नाम से विख्यात करते है।
आलोर :- ग्राम पंचायत आलोर जनपंद पंचायत फरसगांव के अंतर्गत है। पंचायत की दांयी दिशा में अत्यंत ही मनोरम पर्वत श्रृंखला है। इस पर्वत श्रृंखला के बीचोंबीच धरातल से 100 मी. की ऊंचार्इ पर प्राचीनकाल की मां लिंगेष्वरी देवी की प्रतिमा विधमान है। जनश्रुति अनुसार मंदिर सातवीं शताब्दी का होना बतया जाता जा रहा है। इस मंदिर के प्रांगण में प्राचीन गुफाएं सिथत है। प्राचीन मान्यता के अनुसार वर्श में एक बार पितृमोक्ष अमावस्या माह के प्रथम बुधवार को श्रद्धालुओं के दर्षन हेतु पाशाण कपाट खोला जाता है। सूर्योदय के साथ ही दर्षन प्रारंभ होकर सूर्यास्त तक मां की प्रतिमा का दर्षन कर श्रद्धालुगण हर्श विभोर होते है।
सुरम्य घाटी केशकाल :- कोण्डागांव जिले की केशकाल तहसील में सुरम्य एवं मनोहरी केशकाल घाटी राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर कोण्डागांव-कांकेर के मध्य सिथत है। केषकाल घाटी घने वन क्षेत्र, पहाडि़यों तथा खूबसूरत घुमावदार मोड़ों के लिए प्रसिद्ध है। इसे तेलिन घाटी के नाम से भी जाना जाता है। इस घाटी के मध्य से गुजरने वाला 4 कि.मी. का राजमार्ग तथा इस पर सिथत 12 घुमावदार मोड़ पथिकों के मन में उत्साह एवं रोमांच भर देते है। मार्ग के किनारे तेलिन माता का मंदिर सिथत है एवं कुछ दूर भंगाराम मांर्इ जो न्याय की देवी मानी जाती हैं उनका पवित्र स्थल स्थित है। तेलिन सती मां मंदिर में यात्री रूककर माता का दर्शन तथा क्षणिक विश्राम कर अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करत है।
टाटामारी :- धन-धान्य की अधिश्ठात्री शक्ति -स्वरूपा माता महालक्ष्मी शक्ति पीठ छत्तीसगढ़ टाटामारी सुरडोंगर केषकाल में आदिमकाल से पौराणिक मान्यताओें पर अखण्ड ऋषि के तपोवन पर स्थापित है। बारह भंवर केशकाल घाटी के ऊपरी पठार पर पिछले कर्इ वर्शों से दीपावली लक्ष्मी पूजा के दिन विधि-विधान से श्रद्धालुजन पूजा अर्चना सम्पन्न करते आ रहें है। सुरडोंगर तालाब भंगाराम मार्इ मंदिर होते टाटामारी ऊपरी पहाड़ी पठार पर महालक्ष्मी शक्ति पीठ स्थल तक माता भार्इ बहन श्रद्धा भकित से पहुंचते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित स्थल,मनोरम छटा, सौंदर्यमयी अनुपम स्थल का दर्षन करते हैं।ऐतिहासिक धरोहर स्थल टाटामारी के पठार कही डेढ सौ एकड़ जमीन पर अनुपम ऊंची चोटियों का विहंगम दृष्य देखते बनता है। या स्थल नैसर्गिक रूप से मनोहरी है।
गढ़ धनोरा :- गढ़ धनोरा ऐतिहासिक-धार्मिक स्थल नवगठित कोंडागांव जिले के केशकाल तहसील में स्थित है,यह कोण्डागांव जिले के केशकाल तहसील में स्थित है, यह कोण्डगांव-केशकालमुख्य मार्ग पर केशकाल से 2 कि.मी. पूर्व बायें ओर 3 किमी की दूरी पर सिथत है। धनोरा को कर्ण की राजधानी कहा जाता है। गढ़ धनोरा में 5-6वीं षदी के प्राचीन मंदिर, विश्णु एंव अन्य मूर्तियां व बावड़ी प्राप्त हुर्इ है। यहां केशकाल टीलों की खुदार्इ पर अनेक शिव मंदिरों मिले है। यहां स्थित एक टीले पर कर्इ शिवलिंग है, यह गोबरहीन के नाम से प्रसिद्ध है। यहां महाशिवरात्रि के अवसर पर विशाल मेला भरता है। इसी तरहकेशकाल की पवित्र पुरातातिवक भूमि में अनेक स्थल ऐसे हैं जो न केवल प्राचीन इतिहास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है बलिक श्रद्धा एवं आस्था के अदभुत केंद्र है। जिनमें नारना मे अदभुत शिवलिंग तथा पिपरा के जोड़ा शिवलिंग की बड़ी मान्यता है।