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दिनोद के लोकगीतों में हरियाणवीं संस्कृति की झलक

Date : 18-Jun-2024

प्राचीन समय से ही इंसान का विभिन्न कलाओं के प्रति अटूट रिश्ता रहा है। कभी कलाकारों के फन ने तो कभी कलाओं के मुरीद लोगों ने इस जमाने में नए-नए रंग बिखेरें हैं। यह माना जाता है कि आत्मा की तरह कला भी अजर-अमर है। ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होती है और नया रूप लेती है। आज कला के रूप बदरंग हो गए है। कलाकार अपने उद्देश्यों से भटक गए हैं और पैसों के पीछे दौड़ पड़े हैं जो एक तरह कला को बेचने जैसा है। आज कला के नाम पर परोसी जा रही अश्लीलता समाज को लील रही है। मगर इन सबके बीच आज भी देश में कुछ ऐसे लोक कलाकार और कवि हैं जो भारत की प्राचीन सभ्यता को नए रंग देकर उन आदर्श और मूल्यों को बचाने की कोशिश में लगे है। जी हां, उन्हीं में से एक हैं हरियाणा के भिवानी जिले के दिनोद गांव की माटी में जन्मे माैजु डॉक्टर दिनोद। किसान परिवार में जन्मे माैजु डॉक्टर पेशे से पशु चिकित्सा से जुड़े है। इनके पिता स्वर्गीय कप्तान सुबे सिंह यादव एक किसान होने के साथ-साथ भारतीय सेना के जांबाज सिपाही रहे हैं। उनसे इनको संघर्ष करने और धैर्य रख आगे बढ़ने की सीख मिली।

पशुसेवा को जारी रखते हुए माैजु डॉक्टर लेखन क्षेत्र में आगे बढ़ते गए। पिछले दो दशक से मौजु डॉक्टर अपने लिखे गीतों-कविताओं के साथ-साथ प्राचीन और वरिष्ठ लोककवियों की रचनाओं को समाज के सामने लाकर समाज को हरियाणावी संस्कृति से जोड़ने का अतुल्य प्रयास कर रहे हैं। पेशे से पशु चिकित्सा एवं विकास सहायक मनोज कुमार उर्फ मौजु डॉक्टर एक आशु कवि और हरियाणवी के अच्छे गायक हैं। इन सबके अलावा मौजु डॉक्टर यू-ट्यूब एवं सोशल मीडिया के जरिए भारत की प्राचीन संस्कृति से जुड़े किस्सों को वीडियो और ऑडियो रूप में फ्री में शेयर करते हैं ताकि हरियाणवी संस्कृति को बचाया जा सके। हरियाणवी संस्कृति के विभिन्न रंगों को इन्होंने रागनियों और नाटकों के जरिए शेयर करके बखूबी डिजिटल तौर पर पिरोया है और लोगों के मनों तक पहुंचाया है।

कवि मौजु डॉक्टर अपने सिद्धांतों और कलम से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करते। आज जब नग्न संस्कृति सामयिक गीतों व रागनियों पर हावी है तब भी इन्होंने अपने मूल्यों को बनाए रखा और हमारे ऐतिहासिक व पौराणिक गीतों से समाज को रूबरू करवाया है। बेशक आज के तड़क-भड़क वाले अश्लील वीडियो की तुलना में उनको कम शेयर किया गया है मगर उन्होंने हमारी धरोहर को सहेजने कि दिशा में अपना अमूल्य योगदान दिया है। वास्तव में अपनी प्राचीन कला को बनाए रखना बहुत बड़ी बात है। आज के दौर में युवा पीढ़ी यू-ट्यूब और अन्य सोशल प्लेटफार्म पर घटिया स्तर के वीडियोज और ऑडियो को पसंद करती नजर आ रही है। ऐसे में मौजु डॉक्टर के सामाजिक ताने-बाने से जुड़े गीतों का प्रयास बड़ी छाप छोड़ रहा है। इस दौर के मीडिया को ऐसे कलाकारों के प्रयासों को जोर-शोर से प्रचारित-प्रसारित करना चाहिए ताकि हमारे प्राचीन मूल्यों को आज की इस शोषणकारी और अश्लील संस्कृति से दूर रखा जा सके। जब मौजू डॉक्टर जैसे कलमकार अपनी कलम से समझौता नहीं करते तो हम क्यों घर बैठे ही अपनी सभ्यता और संस्कृति को तार-तार कर रहें है।

सोशल मीडिया पर मक्खियों की तरह भिनभिनाते अश्लील गीतों को समाज से बाहर करने के लिए हमें अच्छे गीतों और अच्छे कलाकारों को उचित मान- सम्मान देना ही होगा। तभी हम अपनी कला और हुनर को वास्तविक रूप देकर एक रहने योग्य समाज आने वाली पीढ़ियों को देकर जा पाएंगे। लोककलाएं वास्तव में किसी भी समाज की नब्ज होती हैं। हमें अपने बच्चों को इन कलाओं से रूबरू करवाना चाहिए ताकि वो समाज और देश के एक सचेत नागरिक बन सके। साथ ही ये भी ध्यान रखना चाहिए कि आज के इस इंटरनेट युग में हमारे बच्चे क्या देख रहें है व क्या सुन रहें है? अच्छे कलाकार और उनकी कलाएं समाज के सच्चे पथ-प्रदर्शक हैं लेकिन उनको चुनना हमारी जिम्मेदारी है। प्रदेश एवं केंद्र सरकार को आज की बिगड़ती संस्कृति के लिए दोषी तड़क-भड़क के गानों को खासकर सोशल मीडिया जैसे प्लेटफार्म पर बैन करना चाहिए। हमें भी मौजु डॉक्टर जैसे कलाकारों को ढूंढकर उनकी फॉलो करने की जरूरत है ताकि वो हमारी संस्कृति को बचाने के लिए कर रहें प्रयासों को और आगे गति दे सकें।


लेखक  - डॉ. सत्यवान सौरभ 

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

 
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