भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में भरतनाट्य शास्त्रीय नृत्य कला की जानकारी प्राप्त होती है। भरतनाट्य नृत्य कला शैली का विकास तमिलनाडू राज्य में हुआ है। इस का नाम करण भरतमुनि एवं नाट्य शब्द से मिल कर बना है। तमिल में नाट्य शब्द का अर्थ नृत्य होता है। भरतनाट्य तमिलनाडू में तंजोर जिले के एक हिन्दू मंदिर उत्पतित हुआ था, एवं इस देवदासी ने विकसित किया था। यह नृत्य मुख्य रूप से महिला द्वारा किया जाने वाला नृत्य है। नन्दिकेश्वर द्वारा रचित भरतनाट्य नृत्य में शरीर की गतिविधि के व्यकरण और तकनिकी अध्ययन के लिए ग्रंथिय का एक मुख्य स्त्रोत अभिनय दर्पण है। भरतनाट्य को एकहरी कहते है, क्योकि यह नृत्य दौरान एक ही नर्तकी ऐनक भूमिकाए प्रस्तुत करती है।
देवदासियो द्वारा भरतनाट्य नृत्य की शैली कोआज भी जीवित रखा गया है। देवदासी का अर्थ वास्तव में युवती होता है ,वह युवती जो अपने माता पिता द्वारा मंदिर को दान में दी गई हो एवं उनका विवाह देवताओ से होता है।
भरतनाट्य को भारत के अन्य शास्र्तीय नृत्य की जननी कहा जाता है। भरतनाट्य के शब्द का अर्थ भा: भाव यानि भावना/अभिव्यक्ति रा का अर्थ राग यानि धुन ता का अर्थ ताल एवं नाट्यम का अर्थ नृत्य/नाटक होता है। भरतनाट्य नृत्य किये जाने वाले परिवार को नटटुवन के नाम से पसिद्ध है।
भरतनाट्यम की महत्वपूर्ण विशेषता
अलारिपू : इस का अर्थ यह होता फुलोकी सजावट । इसमें झांझ और तबेला का उपयोग किया उपयोग किया जाता है। यह प्रदर्शन का आह्नाकारी भाग है। जिनमे आधारभूत नृत्यु मुद्राए शामिल होती है। अलारिपू में कविता का प्रयोग भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
जाती स्वरम : इस के कला में ज्ञान के बारे में बताया जाता है। जिनमें अलग अलग प्रकार की मुद्राए और हरकतों को शामिल किया गया। मालिक और नर्तक कला से सबंधित ज्ञान भी पाया जाता है। इस से कर्नाटक संगीत के किसी राग संगीतात्मक स्वरों में पेश किया जाता है। इस में साहित्य या शब्द नही होती है। लेकिन अडपू की रचना की जाती है। जातीस्वरम में शुद्ध नृत्य क्रम नृत्य होते है। यह भरतनाट्यम नृत्य अभियास मुलभुत प्रकार है।
शब्दम : यह तत्व बहुत ही आकर्षित एवं सुंदर है। यह संगीत में अभिनय को समाविष्ट करने वाला नाटकीय तत्व है। इस में नृत्य रस को लावण्या के आधार पर प्रस्तुत किया जाता है। शब्दम का प्रयोग भगावान की आराधना करने के लिए किया जाता है।
वर्णन : इस में कथा को भाव, ताल एवं राग के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। यह एक घटक होने के साथ ही चुनौतीपूर्ण अंश है, इस घटक को रंगपटल की बहुत ही महत्वपूर्ण रचना मानी गई है।
पद्म : इस घटक में प्रेम और बहुधा दैविक पुष्ठभूमि पर आधारित है। इस अभिनय पर नर्तक की महारथा को प्रस्तुत किया जाता है। इस में सप्त पंक्तियुक्त की आराधना होती है।
ज्वाली : यह अभिनय प्रेम पर आधारित होता है। इसमें तेज गति वाले संगीत के प्रेम कविता को प्रदशित किया जाता है।
तिल्लना : यह सबसे आखरी घटक होता है, इस घटक के द्वारा समापन किया जाता है। इस घटक के माध्यम से महिला की सुन्दरता को चित्रित किया जाता है। यह बहुत ही आकर्षित अंग होता है। यह एक गुजायमान नृत्य है। जो साहित्य एवं संगीत के कुछ अक्षरों के साथ प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रस्तुती का अंत भगवान् के आशीर्वाद मांगने के साथ ही होता है।
