आलेख -डॉ. नितिन सहारिया
प्राकृतिक संकटो से वर्तमान में भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व ग्रसित है। प्राकृतिक संकटो का मूल कारण पृथ्वी वासियों का प्रकृति, मानवता के विपरीत आचरण है। मनुष्य का स्वार्थ, उच्छख्ल , अनैतिक- अमर्यादित आचरण, भोगवाद , पश्चिमी चिंतन -चरित्र व क्रूर व्यवहार ही है जो वह समष्टि के साथ करता चला जा रहा है। मनुष्य अपने स्वार्थ की अंधी दौड़ में नदी ,पहाड़ -पर्वत ,जीव- जंतु किसी को भी नहीं छोड़ रहा है ,सबको शिकार बना रहा है, भोगवाद के चलते सभी को परेशान कर रहा है,अपने उच्श्रंखल व्यवहार से। आज का मनुष्य पहाड़ों पर बस्तियां बना रहा है ,नदी के तट पर बड़े-बड़े भवन, होटल, लॉज बनाता चला जा रहा है । अपने इस भोगवादी चिंतन- चरित्र से तीर्थ की गरिमा को नष्ट कर रहा है ,तीर्थ स्थलों को बाजार बनाकर के बेतहाशा कमाई / लुटाई कर रहा है, भले ही सांस्कृतिक गरिमा नष्ट होती हो तो हो। हरिद्वार में गंगा जी के तट पर शांतिकुंज आश्रम के पीछे जो पहले से गंगा जी के जल की बाउंड्री बनी हुई थी उसके अंदर बिल्कुल जल के समीप 2 पांच मंजिला होटल को देखा जो की पूर्व में 1995 में मेरे प्रवास के समय वहां पर नहीं थी ,मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। हिमाचल , उत्तराखंड, जम्म्मू इत्यादि में पहाड़ काट करके ड्रिल करके जगह-जगह होटल और नगर बस्ते चले गए ।
प्राकृतिक संसाधनों के अवैध उत्खनन का सिलसिला इस गति से चल रहा है की कोई नदी ,कोई खदान ,कोई पहाड़ कुछ भी नहीं बच रहा है, बेतहाशा उत्तखन्नन 24 घंटे किया जा रहा है, लूट मची हुई है रक्षसो की तरह । नदियों में पानी के अंदर से रेत ( वालू) निकाली जा रही है वो भी रात के अंधेरे में, चोरी से सरकारी तंत्र की मिली भगत से। मनुष्य की लोभी ,स्वार्थी बुद्धि के चलते न जल ,न जंगल, कोई भी प्राकृतिक स्रोत नहीं बच पा रहा है ।
मुंबई दिल्ली जैसे महानगरों में मानवता तारतार हो रही है कोई किसी मनुष्य को मनुष्य नहीं समझ रहा है। मनुष्यों के साथ पशुओं जैसा क्रूरता का व्यवहार किया जा रहा है। कितनी कन्याएं/ बहिनें फिल्म इंडस्ट्रीज में कार्य करने का स्वप्न लेकर मुंबई शहर में जाती हैं और उनका क्या बेहाल होता है, यह हम सभी से छुपा हुआ नहीं है। इन महानगरों में मनुष्य कीड़े-मकोड़े की भांति जीवन जी/ काट रहा है । मानवता का पतन हो चुका है इसीलिए आज धरा अकुलाई है।
यूरोप- अमेरिका, चीन इत्यादि कुछ पश्चिमी देशों में मनुष्य का आचरण इतना गिर चुका है कि वह मुर्गा, बकरी ,सूअर इत्यादि पशुओं के मांस को खाते-खाते अब माताओं के गर्भ में पलने वाले भूर्ण का भी भक्षण करने लगा है । यह पैशाचिकता नहीं है तो और क्या ? चीन मे तो कोई भी जीब- जंतु मेडक,सांप, केंकड़े, मछली, चुहा , झिंगुर कोई भी सुरक्षित नहीं हैं ,उसका 'पानी बाज़ार' इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है ।
एक रेपोर्ट के अनुसार भारत मे 2019 -2023 के बीच 13 लाख हिन्दु लड़कियाँ गायब/ किडनैप/ अपहरण हुईं हैं । आखिर यह कौन सा गिरोह है? जो ऐसा अमानवीय कृत्य कर रहा है। कन्ही मानवीय अंगो का अवैध व्यापार- बाज़ार तो इससे संचालित /फल- फूल नही रहा ? भारत में प्रतिवर्ष बलात्कार के आंकड़ों की रिपोर्ट का अध्ययन करेंगे तो आपकी आंखें फटी की फटी रह जाएगी। जो सरकारी आंकड़े दर्शाये जाते हैं वास्तविकता उससे कई गुनी अधिक भयावह है।
ऐसे कुकर्म कर्ताओ व मूक दर्शकों को दण्ड मिलना अवश्यम्भावी है । जो पापाचार को देखकर मून्क दर्शक बने रहते हैं प्रतिकार नहीं करते यानी अपरोक्ष सहयोग करते हैं ;उन्हें दंड तो मिलना ही चाहिए।
वनों की बेतहाशा कटाई ,लकड़ी चोरी, जंगलों की आग भारत के उत्तराखंड, अमेरिका इत्यादि प्राकृतिक संरचना व संतुलन को खत्म कर रहे हैं। 'ग्लोबल वार्मिंग' के कारण हिमालय व अंटार्कटिका में जमे हुए ग्लेशियर के पिघलने का अनुमान है। इस कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और पृथ्वी के कई द्वीप जलमग्न हो सकते हैं। साथ ही 'ग्लोबल वार्मिंग' से अपने देश की कृषि और देश के किसानों पर पडने वाला प्रभाव भी अत्यंत चिंताजनक है। पिछले 100 वर्षों में भारत में तापमान 0.6 डिग्री बढा है। अनुमान है कि इस सदी के अंत तक 2.4 डिग्री की वृद्धि होगी जो कि पिछली सदी में हुई वृद्धि का चार गुना है । दुनिया के तमाम देशों द्वारा स्थापित " इंटरगवर्नमेंटल पैनल ओंन क्लाइमेट चेंज" ने अनुमान लगाया है की भविष्य मे बाढ़ ,चक्रवात तथा सूखे , अकाल, अतिवृष्टि की घटनाओं में भारी वृद्धि होगी।
आने वाले समय में सारे विश्व में पेयजल का संकट भी भयावह रूप लेने वाला है। क्यूंंकी जल है तो कल है । इसके संकेत चेन्नई इत्यादि शहरों में मिलने लगे हैं।
देश की अनेक नदियों को हमने प्रदूषित कर दिया है ,कुछ नदियां तो विलुक्ति के कगार पर हैं जैसे दिल्ली की यमुना नदी ,मध्यप्रदेश इंदौर में खान नदी, सीहोर की नदी इत्यादि इसके उदाहरण है। इन्हें इतना प्रदूषित किया गया कि यह नाले के समान दिखने लगी । *धराली-उत्तराखंड मे आई आपदा की जड़ में भी यही प्रकृति से छेड़ -छाड़ -नदी के बहाब क्षेत्र में बड़ी-बडी होटल्स- भवन बनाये गये थे, शासन की मिली भगत से किंतु प्रक्रति ने "सौ सुनार की एक लोहार की " वाला हथौड़ा चला दिया । अच्छा होता यदि 2013 केदारनाथ की आपदा ( प्रकोप) से सबक ले लिया गया होता ।*
वायु प्रदूषण (प्राण वायु का संकट) भारत ही नहीं विश्व के अनेक देशों के अनेक नगरों में भयानक रूप ले चुका है। भारत के दिल्ली शहर का AQI सूचकांक 360 - 400 के लगभग पहुंच चुका है। लगता है कुछ दिनों में दिल्ली में मनुष्य अपनी पीठ पर एक छोटा सा ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर चंद्रलोक के यात्रिओं की भांति घूमेंगे। 100 के आसपास तो मध्यप्रदेश भोपाल का ए क्यू आई है ;तब हम समझ सकते हैं कि हमारा भविष्य क्या होने जा रहा है?
वर्तमान भारत में ,गोपाल (भगवान श्रीकृष्ण ) के देश में प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व 10 लाख से अधिक गोवंश की हत्या /कटिंग हो जाती है ,महाराष्ट्र इत्यादि के 'अल कबीर ' कत्लखानों में। प्रतिदिन लाखों मुर्गी ,लाखों बकरो, सुअरो की जीव हत्या हो रही है ,इस भारत भूमि पर, गोपाल की भूमि पर। लाखों टन गौ मांस ( बीफ) पुण्यभूमि भारत से विदेश में सप्लाई किया जा रहा है जो कि पिछली सरकारों के द्वारा किए गए अनुबंध का नतीजा है और भारत के गौ भक्त सो रहे हैं!! अथवा व्यामोह में पड़े हुए हैं! अध्यात्म वेत्ता गायत्री परिवार के प्रमुख *डॉ. प्रणव पंड्या जी* का कहना है कि -" *निरीह वेजुवान पशुओं की हत्या के समय बे क्रूर कृंदन करते हैं, जिससे एक विशेष प्रकार की तरंगे उनके शरीर से निसृत होती हैं जो पृथ्वी माता को कम्पित/ प्रभावित करती हैं; जिससे पृथ्वी पर भूकंप आते हैं , प्रकृति क्रुद्ध होती है व भीषण प्रकोप के रूप में दंडित करती है।* "
देश में प्रतिवर्ष एक ईद का त्यौहार आता है जिसमें लाखों बकरों को काटा जाता है। जान लेकर उत्सव ईद का मनाया जाता है। लाखों लीटर खून धरती पर अथवा नदियों में बहाया जाता है । यह कैसा भारत है ? यह कैसा मजहब है? जो हिंसा करके किसी निरीह जानवर को मार कर खुशी मनाता है । यह प्रश्न मानवता पर कलंक के समान है!! जो विचारणीय है! भारत का सर्वोच्च न्यायालय हिंदू धर्म के त्योहार पर बहुत ज्ञान बांटता रहता है किंतु उसका दुहरापन देखो कि वह एक धर्म विशेष पर चुप्पी साध लेता है!! आखिर क्यों ??????... आखिर कब तक चलेगा यह अत्याचार इस पुण्यभूमि ( भारत) पर ????.....
यह कैसा लोकतंत्र है???? जहां मानवता ही नहीं है ,जहां कोई जीव-जन्तु सुरक्षित नहीं है ,इन नरभक्षी पिशाचों से !!
प्रकृति एक दिन सबका हिसाब लेगी ,बेजुबानो के ऊपर हो रहें अत्याचार,उनके खून के एक-एक कतरे का ,कॉलदंड से कोई बच न सकेगा !!
मान लीजिए कहीं भविष्य में विश्व के 150- 200 नगर जलमग्न हो गए, जल समाधि हो गये तब क्या होगा?
किसी दिन हम सुबह अखबार में पढ़ेंगे की मुंबई शहर नहीं रहा, समुद्र ने अपना विस्तार कर लिया ! तब क्या होगा?
"माता भूमि पुत्रोस्यां पृथिव्या " की भावना से किया गया व्योहार ही समाधान है । पृथ्वी मां से पुत्रवत व्यवहार करने में ही मां का आशीर्वाद व प्राकृतिक आपदाओं से बचा जा सकता है और कोई दूसरा उपाय नहीं है।
पश्चिमी संस्कृति के भोगवादी आचरण से समाज को वापस भारतीय संस्कृति की ओर आना ही होगा।
पापी को अपने पाप पर,
पछताना पड़ेगा!
भगवान की शरण में ,
एक दिन आना पड़ेगा!!
युगऋषि प. श्रीराम शर्मा जी* की भविष्यवाणी है कि -" 2026 से 2050 के बीच धरती पर बड़ी-बड़ी घटनाएं घटेंगी व युग परिवर्तन का स्वरूप स्पष्ट होता चला जायेगा जिसके चलते धरती की 70% आबादी समाप्त हो जाएगी । पश्चिम की बनाई व्यवस्था ध्वस्त होगी एवं जहां-जहां पापाचार अधिक है, वहीं पर महाकाल का प्रकोप अधिक होगा " तब हम विचार कर सकते हैं कि आने वाला भविष्य कितना खतरनाक हो सकता है अत:
अभी समय है ,अभी बदल लो।
अभी सुधार लो ,तेवर अपनी चाल के ।।
कर्मों के फल से ना बचोगे,
चलना बहुत संभाल के ।।
कोठी कार तिजोरी भर लो,
माँ बहिनो की इज्जत हर लो।
चोरी और मिलावट करलो,
जो जी चाहे वो सब करलो।।
आऐगी कुछ काम हथकडी ,
यम ने रखी सम्भाल के ।।
अभी समय है अभी बदल लो, तेवर अपनी चाल के,
कर्मों के फल से न बचोगे....!!
मानवता का आने वाला कल बड़े संकटों से भरा हुआ है। माता प्रकृति व महाकाल पिछले दिनों मनुष्य जाति के द्वारा किए गए पापाचार -भ्रष्टाचार , क्रूर कर्मों , अनैतिक आचरण के लिए अब दंडित करने वाले हैं अतः धरती पर भारी विनाश होगा, ऐसी भविष्यवाणी है किंतु हम सुकर्म, श्रेष्ठ आचरण करके उसे कुछ हद तक कम अवश्य कर सकते हैं क्योंकि हमारे आज का कर्म ही कल का भाग्य है। अतः भारतीय संस्कृति के प्रकाश में जीवन जीकर, धर्मशील बनकर , अपने आचरण को बदलकर आने वाला भविष्य उज्ज्वल बना सकते हैं। धरती पर रामराज्य -सतयुग ला सकते हैं। 2026 से 2050 तक सारी दुनिया बदल चुकी होगी ,धरती से असुरता ,अवांछनियता का सफाया हो चुका होगा। यही अब नियति का निर्धारण है । वह बुद्धिमान , भाग्यशाली व पुण्य आत्मा होंगे जो सृजन में भागीदारी करेंगे ,शेष विपरीत आचरण करने वाले महाकाल के कोप का भाजन ( भोजन) बनेंगे । नए युग में मनुष्य की आकृति नहीं प्रकृति बदलेगी।
" ऐही सम विजय उपाय न दू जा "