ठाकुर प्यारेलाल सिंह (1891–1954) छत्तीसगढ़ के इतिहास में एक ऐसे महान व्यक्तित्व के रूप में स्मरण किए जाते हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम, श्रमिक आंदोलन, सहकारिता और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया। वे केवल एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि एक प्रखर वकील, समाजसेवी और विचारक भी थे। उनका संपूर्ण जीवन शोषित, वंचित और मजदूर वर्ग के अधिकारों के लिए समर्पित रहा। अपने त्याग, संघर्ष और सादगी के कारण उन्हें “त्यागमूर्ति” की उपाधि से सम्मानित किया गया और वे “छत्तीसगढ़ के गांधी” के नाम से प्रसिद्ध हुए।
ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जन्म वर्ष 1891 में छत्तीसगढ़ अंचल में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई की और एक वकील के रूप में कार्य प्रारंभ किया। वकालत के दौरान उन्होंने समाज में व्याप्त अन्याय, शोषण और असमानता को निकट से देखा। यही अनुभव उनके जीवन की दिशा तय करने वाला सिद्ध हुआ। उन्होंने अपने पेशे को केवल व्यक्तिगत लाभ का साधन न बनाकर, उसे सामाजिक न्याय और जनसेवा का माध्यम बनाया।
ब्रिटिश शासन के समय छत्तीसगढ़ क्षेत्र में मजदूरों और किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों से अत्यधिक श्रम लिया जाता था, परंतु उन्हें उचित मजदूरी, सुविधाएँ और सम्मान नहीं मिलता था। ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने इस अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई और संगठित श्रमिक आंदोलन की नींव रखी। वे छत्तीसगढ़ में श्रमिक आंदोलनों के प्रणेता माने जाते हैं। उन्होंने मजदूरों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया और उन्हें संगठित होकर संघर्ष करने की प्रेरणा दी।
सहकारिता आंदोलन में भी उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। उनका मानना था कि सहयोग और सामूहिक प्रयास से ही समाज का वास्तविक विकास संभव है। उन्होंने सहकारी संस्थाओं के माध्यम से किसानों और मजदूरों को आत्मनिर्भर बनने का मार्ग दिखाया। यह विचारधारा उस समय के लिए अत्यंत प्रगतिशील थी और आज भी प्रासंगिक मानी जाती है।
स्वतंत्रता संग्राम में ठाकुर प्यारेलाल सिंह की भूमिका उल्लेखनीय रही। उन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध कई आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी की और जनजागरण का कार्य किया। वे महात्मा गांधी के विचारों से गहराई से प्रभावित थे और सत्य, अहिंसा तथा आत्मबलिदान को अपने जीवन का मूल मंत्र मानते थे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्होंने अनेक कठिनाइयों का सामना किया, परंतु कभी अपने सिद्धांतों से विचलित नहीं हुए।
स्वतंत्रता के बाद भी उनका सामाजिक संघर्ष समाप्त नहीं हुआ। वे विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से जुड़े और छत्तीसगढ़ में भूमि सुधार तथा सामाजिक समरसता के लिए कार्य किया। उन्होंने लोगों को स्वेच्छा से भूमि दान करने के लिए प्रेरित किया, ताकि भूमिहीनों को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर मिल सके। इस आंदोलन में उनकी भूमिका ने उन्हें और अधिक जनप्रिय बना दिया।
ठाकुर प्यारेलाल सिंह का जीवन सादगी, त्याग और सेवा का प्रतीक था। उन्होंने व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं को त्यागकर समाज के हित को सर्वोपरि रखा। 1954 में उनका निधन हुआ, परंतु उनके विचार, आदर्श और संघर्ष आज भी छत्तीसगढ़ की सामाजिक और राजनीतिक चेतना को दिशा देते हैं। वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं और सदैव एक जननायक के रूप में स्मरण किए जाते रहेंगे।
