छत्तीसगढ़ की पावन धरा ने कई ऐसे सपूतों को जन्म दिया है, जिन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में अपनी आहुति दी, बल्कि समाज की कुरीतियों को जड़ से मिटाने के लिए अपना जीवन होम कर दिया। इन विभूतियों में पंडित सुंदरलाल शर्मा का नाम सर्वोपरि है। 21 दिसंबर 1881 को राजिम के पास चामशूर गाँव में जन्मे पंडित जी को उनकी दूरदर्शिता और अहिंसक संघर्ष के कारण 'छत्तीसगढ़ का गांधी' कहा जाता है।
स्वतंत्रता संग्राम और कंडेल नहर सत्याग्रह पंडित सुंदरलाल शर्मा का राजनीतिक जीवन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के साथ गहराई से जुड़ा था। 1920 में धमतरी के पास कंडेल गाँव के किसानों पर ब्रिटिश सरकार ने सिंचाई कर का भारी बोझ लाद दिया था। इसके विरोध में पंडित जी ने 'कंडेल नहर सत्याग्रह' का नेतृत्व किया। यह भारत के शुरुआती अहिंसक आंदोलनों में से एक था। इस आंदोलन की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वयं महात्मा गांधी को छत्तीसगढ़ आमंत्रित किया गया था। जब गांधी जी 20 दिसंबर 1920 को रायपुर पहुंचे, तो उन्हें पता चला कि पंडित जी के नेतृत्व में किसानों ने जीत हासिल कर ली है। गांधी जी पंडित जी के कार्यों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें अपना 'अग्रज' (बड़ा भाई) और 'गुरु' माना।
समाज सुधार और अस्पृश्यता निवारण पंडित सुंदरलाल शर्मा केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी समाज सुधारक थे। उन्होंने उस दौर में दलितों और पिछड़ों के उत्थान के लिए कार्य किया जब छुआछूत समाज में गहराई से व्याप्त थी। 1925 में उन्होंने रायपुर के राजीव लोचन मंदिर में अछूतों (दलितों) को प्रवेश दिलाया, जो उस समय एक अत्यंत साहसी और क्रांतिकारी कदम था। उनके इस कार्य की सराहना करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था कि जो कार्य उन्होंने देश भर में शुरू किया है, सुंदरलाल शर्मा ने उसे छत्तीसगढ़ में पहले ही कर दिखाया।
साहित्यिक और शैक्षिक योगदान एक प्रखर बुद्धिजीवी होने के नाते, पंडित जी ने साहित्य के माध्यम से भी जनचेतना जगाई। उन्होंने 'दानलीला' जैसे कालजयी काव्यों की रचना की। वे हिंदी, संस्कृत और छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रकांड विद्वान थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा में पत्र-पत्रिकाएं निकालकर क्षेत्रीय गौरव को पुनर्जीवित किया। शिक्षा के महत्व को समझते हुए उन्होंने कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना में योगदान दिया। उनकी इसी शैक्षिक दूरदर्शिता का सम्मान करते हुए, छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश के पहले मुक्त विश्वविद्यालय का नाम पंडित सुंदरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय रखा है।
निष्कर्ष पंडित सुंदरलाल शर्मा का देहावसान 28 दिसंबर 1940 को हुआ, लेकिन उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ को केवल एक भौगोलिक पहचान ही नहीं दी, बल्कि उसे सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से समृद्ध बनाया। त्याग, सादगी और संघर्ष के उनके आदर्श आज की पीढ़ी के लिए एक मशाल की तरह हैं। वे सही मायनों में छत्तीसगढ़ के 'शिखर पुरुष' थे।
