संगीत मनुष्य को प्रकृति की अनुपन देन है। संगीत समस्त मनुष्य जाति की भाषा होने के साथ-साथ भावनाओं के आदान-प्रदान का एक सरल माध्यम है। संगीत आत्म-आभिव्यक्ति का सबल माध्यम है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने सुख-दुख, हास्य इत्यादि सभी भावों को व्यक्त कर सकता है। अतः संगीत प्रकृति ही क्या मनुष्य जीवन का एक अभिन्न अंग है।
संगीत की उत्पत्ति:-
सृस्टि के प्रारम्भ के साथ ही संगीत का जन्म हुआ, जिसका प्रभाव न केवल मनुष्यो पर अपितु पशु-पक्षियों, वृक्षों व नदियों पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है। संगीत के विषय में यह कहना कठिन है कि इसकी उत्पत्ति कब और कहाँ हुई। अतः विद्वानों ने इसकी उत्पत्ति के संबंध में अपने-अपने मत दिए है।
प्राकृतिक दृस्टिकोढ़ः-
अनेक विद्वानों ने संगीत को प्रकृति की आत्मा कहा है। संगीत का उद्भव प्रकृति की ध्वनियों के अनुकरण से ही हुआ है।
इस संबंध में अनेक किवदन्तियाँ प्रचलित हैं फारसी में एक कथा प्रचलित है कि प्राचीन काल में एक समय हजरत मूसा पैगम्बर नाव में सैर कर रहे थे। उसी समय उन्हें एक पत्थर दिखाई पड़ा अचानक वहाँ पर जबराइल नामक एक फरिश्ता आया , उसने पैगम्बर से कहा कि ‘‘इस पत्थर को तुम हमेशा अपने पास रखना‘‘ कुछ समय पष्चात् एक दिन हजरत मूसा जंगल में सैर कर रहे थे अचानक उन्हें प्यास लगी और उन्हें पीने के लिए पानी नहीं मिला प्यास से व्याकुल हो उन्होने खुदा से बन्दगी की और फलस्वरूप कुछ देर बाद वर्षा होने लगी। पानी की धारा उस पत्थर पर पड़ने लगी और पत्थर के सात टुकड़े हो गए और इन सात टुकड़ों से पानी की सात धाराएँ बहने लगी उन धाराओं से सात अलग-अलग ध्वनियाँ निकलने लगी और यह ध्वनियाँ आगे चलकर संगीत के सात स्वर समझे जाने लगे।
१ - कतिपय विद्वानो का मत है कि ‘‘कोहकाफ नामक पर्वत पर एक पक्षी रहता है जिसे फ्रांस में आतिशजन कहते हैं। इसी पक्षी की चोंच में सात छिट्र होते हैं, जिनमें से वायु के प्रभाव से सात प्रकार की ध्वनियाँ निकलती है। और यही ध्वनियाँ संगीत के सात स्वर कहलाए।
२ -दामोदर पण्डित के अनुसार ‘‘संगीत के सात स्वर सात भिन्न-भिन्न पषु-पक्षियों की ध्वनि से निकले है‘‘ मोर से षोडस (सा) चातक से रिवभ(रे), बकरा से गन्धार (ग), कौवा पक्षी से मध्यम (म), कोयल से पंचम(प), मेढक से धैवत (ध) और हाथी से निषाद (नि ) स्वर की उत्पत्ति मानी गई हैं |
३ -पषु-पक्षियों की ध्वनि से संगीत का उद्गम सत्य माना जा सकता है, क्योंकि संगीत मनुश्य को प्रकृति की देन है और इसी कारण विद्वानों ने प्रकृति को संगीत के जन्म का आधार माना है।
मनोवैज्ञानिक दृश्टिकोण:-
१- मनोवैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर संगीत के उद्भम के विषय में यही माना जा सकता है कि जैसे-जैसे पृथ्वी पर मानव सभ्यता का विकास हुआ, वैसे ही विभिन्न कलाओं का भी उत्थान हुआ, क्योंकि सभी का मानव जीवन से सम्बन्धित हैं
२-कुछ विद्वानों ने यह माना है कि मनुष्य ने विभिन्न ध्वनियों के माध्यम से अपने भावो को व्यक्त किया होगा तथा समय परिवर्तन के साथ-साथ यह संगीत बन गया।
३- पाश्चात्य विद्वान ‘फ्राइड के मतानुसार, ‘‘ संगीत का जन्म एक शिशु के समान मनोविज्ञान के आधार पर हुआ। जिस प्रकार बालक का रोना चिल्लाना व हँसना आदि क्रियाएँ मनोविज्ञान की आवश्यकतानुसार स्वयं सीख जाता है उसी प्रकार संगीत का प्रादुर्भाव मनुष्य में मनोविज्ञान के आधार पर स्वतः हुआ।
४ -जैम्स लोग के अनुसार, ‘‘पहले मनुष्य ने बोलना, चलना आदि क्रियाएँ सीखी होंगी तत्पष्चात उसमें भाव जाग्रत हुए और फिर धीरे-धीरे वह क्रियाशील
होता गया। उसके अंदर संगीत-स्वतः ही उत्पन्न हुआ।‘‘
५-अतः संगीत का जन्म मानव जीवन के साथ हुआ होगा। मानव अपने मन के भावों को प्रकट करने के लिए ध्वनि का सहारा लेता होगा और इसी भावभिव्यक्ति की आवष्यकता से संगीत का उद्भव हुआ होगा।
धार्मिक दृश्टिकोण:-
१- विभिन्न धर्मो में संगीत के जन्म को लेकर भिन्न-भिन्न मानवताएँ प्रचलित हैं। हमारे प्राचीन ग्रन्थों में उपलब्ध जानकारी से यही ज्ञात होता है कि संगीत कला के जनक देवी देवताओं को ही माना गया है। संगीत दर्पण में दामोदर पंडित ने संगीत की उत्पत्ति ब्रह्रा जी द्वारा मानी है।
२-ऐसी मान्यता है कि ब्रह्रा जी ने संगीत का निर्माण किया तथा उन्होंने कला षिव को दी, षिव से यह सरस्वती को मिली, सरस्वती से नारद को व नारद जी ने इसका प्रचार गान्धर्व, किन्नरों आदि ने किया इस प्रकार संगीत प्रसारित होता गया।
३-कुछ विद्वानों का मत है कि संगीत की उत्पत्ति ‘ओउम‘ षब्द से हुई। ओउम शब्द मकाक्षर होते हुऐ भी अ-उ-म, इन तीन अक्षरों के मेल से बना है। तीनो अक्षरों के मिलने के उपरान्त इसकी ध्वनि एक अक्षर की भाँति लगती है। इसमें तीनों अक्षर तीन षक्तियों को प्रदर्षित करते हैं।
अ- सृश्टिकर्ता ब्रह्रा उत्पत्ति कारक
उ- पालनकर्ता, रक्षक षक्ति का प्रतीक विश्णु
म- संहार कारक महेष षक्ति स्वरूप भगवान षंकर
४ -तीनों शक्तियो का समाविश्ट रूप त्रिमूर्ति परमेश्वर है, इसलिए स्वर ईष्वर को एक रूप माना गया है।
६ - वस्तुतः यही ओम शब्द ही संगीत के जन्म का मूल स्त्रोत है। अतः संगीत के उद्गम के विशय में अनेक विचार धाराएँ है। विद्वानों से प्राप्त अभिमत से यही ज्ञात होता है कि ये प्रायः धार्मिक किवदन्यिों पर आधारित है। कोई भी तथ्य ऐतिहासिक वैज्ञानिक तथा प्रमाणिक तौर पर स्पश्टतः नहीं प्राप्त होता है। संगीत का उद्भव कब हुआ, कैसे हुआ व किसके द्वारा हुआ, इस विशय में कोई पूर्व तथ्य तो प्राप्त नहीं है।
ऐसा मालूम होता है कि लोगो ने अपने देषकाल व परिसथितियों के अनुकूल कल्पनाओं के आधार पर संगीत के उद्भव को माना होगा।
प्राचीन भारतीय संगीत:-
भारत का प्राचीनतम इतिहास ईसा पूर्व 3500 से प्रारम्भ होता है, परन्तु इसके संबंध में किसी सूत्रबद्ध ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध नहीं है। भारत के गौरवमय अतीत की संस्कृति का प्रथम ऐतिहासिक दर्शन वैदिक साहित्य मे उपलब्ध होता है, किन्तु खोज करने वालों में इस अन्धकार युग के कुछ पाशाण चिन्ह प्राप्त किऐ है जिनकें आधार पर उस युग की सभयता व संस्कृति का ज्ञान होता है।
इस काल के मनुष्य बिलकुल जंगली अवस्था में रहते थे। अतः संगीत का कोई विकसित रूप नहीं मिलता, किन्तु ये लोग संगीत कला से पूर्व परिचित थे। इन लोगों ने पत्थर के दो चौकोर मंजीरे की षक्ल के वाद्यों का निर्माण किया था। जिसका नाम अग्सा था और जिसकों गाते समय बजाते थे। नृत्य का ज्ञान इसके मनुष्य का नहीं था पर गाते समय हू हू हे वा जैसी विचित्र ध्वनि निकालते थे।
उत्तर पाषाण काल में संगीत की अवस्था वाशाणकाल से अधिक विकसित रूप के हो चुकी थी। ऐसा प्रतीत होता है कि इस काल की सभ्यता का जन्म संगीत की पृश्ठभूमि पर भी हुआ था। इस युग में सामूहिक संगीत का जन्म हुआ था। इस युग में स्त्री-पुरूश दोनों स्वर आलाप के द्वारा संगीत का आनन्द लेते थे युद्ध में भी ये संगीत का प्रयोग करते थे। इनकी सभ्यता का विकास पूर्णतयाः संगीत पर आधारित था। संगीत कला के साथ-साथ इन्हें चित्रण कला का भी ज्ञान था।
ताम्र काल का संगीत पूर्व कालों से श्रेश्ठ था। अंग्रेजी विद्वान LOGASKA के अनुसार ‘‘ वर्तमान संगीत की नींव ताम्र युग के संगीत पर रखी हुई है‘‘। जन सामान्य में नृत्य का प्रचलन भी हो चुका था |
लेखिका -पल्लवी सरकार