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"लक्ष्य निर्धारित करना अदृश्य को दृश्य में बदलने का पहला कदम है" -टोनी रॉबिंस

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" माता शबरी (सबरी) के प्रभु श्रीराम और नवधा भक्ति का ज्ञान"

Date : 02-Mar-2024

रामचरितमानस का अरण्यकांड भगवान् श्रीराम के साथ माता जानकी और लक्ष्मण जी के महान् ऋषियों और मुनियों से मिलने का साक्षी है। इसी कांड में माता सीता के हरण के उपरांत माता शबरी से श्रीराम के मिलन का अत्यंत भावुक, मार्मिक और भक्ति की पराकाष्ठा का चित्रण है,जो जनमानस को आत्म विभोर कर देता है। वस्तुतः एक भील राजकुमारी सबरी (श्रमणा) बाल्यावस्था से ही सात्विक और वैरागी प्रकृति की थीं इसलिए विवाह तय हो जाने के कारण उन्होंने गृह त्याग दिया तथा महर्षि मतंग की शिष्या बन गईं। किशोरवय बालिका सबरी (शबरी) को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे, तब सबरी (शबरी) भी साथ जाने का हठ करने लगीं। 

अभी दशरथजी का लग्न भी नहीं हुआ! उनका कौशल्या से विवाह होगा! फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी फिर दशरथजी का विवाह सुमित्रा से होगा ! फिर प्रतीक्षा! फिर उनका विवाह कैकई(कैकेयी) से होगा फिर प्रतीक्षा! फिर वो जन्म लेंगे! फिर उनका विवाह माता जानकी से होगा! फिर उन्हें 14 वर्ष वनवास होगा और फिर वनवास के आखिरी वर्ष माता जानकी का हरण होगा, तब उनकी खोज में वे यहां आएंगे! तुम उन्हें कहना "आप सुग्रीव से मित्रता कीजिये उसे आततायी बाली के संताप से मुक्त कीजिये आपका अभीष्ट सिद्ध होगा! और आप रावण पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे!"
सबरी की प्रतीक्षा का फल ये रहा कि जिन राम को कभी तीनों माताओं ने जूठा नहीं खिलाया उन्हीं राम ने सबरी का जूठा खाया!यह सामाजिक समरसता का सर्वश्रेष्ठ दृष्टांत है और मार्गदर्शी है। तदुपरांत माता शबरी को भगवान् श्री राम ने नवधा भक्ति का दिव्य ज्ञान दिया। रामचरितमानस के अरण्यकांड से उपर्युक्त नवधा भक्ति का वर्णन उद्धृत है - शबरी पर कृपा, नवधा भक्ति उपदेश और पम्पासर की ओर प्रस्थान
नवधा भक्ति के आलोक में माता सबरी से श्रीराम बोले, ‘‘हे भामिनि! मैं तो केवल भक्ति का ही संबंध मानता हूं। जाति, पाति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन-बल, कुटुम्ब, गुण एवं चतुराई इन सबके होने पर भी भक्ति रहित मनुष्य जलहीन बादल-सा लगता है। उन्होंने शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश किया। कहा- मेरी भक्ति नौ प्रकार की है -1.संतों की संगति अर्थात सत्संग, 2. श्रीराम कथा में प्रेम, 3. गुरुजनों की सेवा, 4. निष्कपट भाव से हरि का गुणगान, 5. पूर्ण विश्वास से श्रीराम नाम जप, 6. इंद्रिय दमन तथा कर्मों से वैराग्य, 7. सबको श्रीराममय जानना, 8. यथालाभ में संतुष्टि  तथा 9. छल रहित सरल स्वभाव से हृदय में प्रभु का विश्वास। इनमें से किसी एक प्रकार की भक्ति वाला मुझे प्रिय होता है, फिर तुझमें तो सभी प्रकार की भक्ति दृढ़ है। अतएवं जो गति योगियों को भी दुर्लभ है, वह आज तेरे लिए सुलभ हो गई है। उसी के फलस्वरूप तुम्हें मेरे दर्शन हुए, जिससे तुम सहज स्वरूप को प्राप्त करोगी।’’
भगवान् श्रीराम और माता सबरी का प्रसंग भारतीय इतिहास का वह पड़ाव है जो भक्ति मार्ग की पराकाष्ठा के आलोक में सामाजिक समरसता की दुहाई देता रहेगा। भगवान् श्रीराम और माता शबरी का यह उपाख्यान, वर्तमान और भविष्य में मिशनरियों,वामियों और तथाकथित सेक्यूलरों द्वारा वर्ण व्यवस्था और जातिवाद के नाम पर फैलाए जा रहे षड्यंत्रों को ध्वस्त करता रहेगा। 
 
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