" माता शबरी (सबरी) के प्रभु श्रीराम और नवधा भक्ति का ज्ञान"
Date : 02-Mar-2024
रामचरितमानस का अरण्यकांड भगवान् श्रीराम के साथ माता जानकी और लक्ष्मण जी के महान् ऋषियों और मुनियों से मिलने का साक्षी है। इसी कांड में माता सीता के हरण के उपरांत माता शबरी से श्रीराम के मिलन का अत्यंत भावुक, मार्मिक और भक्ति की पराकाष्ठा का चित्रण है,जो जनमानस को आत्म विभोर कर देता है। वस्तुतः एक भील राजकुमारी सबरी (श्रमणा) बाल्यावस्था से ही सात्विक और वैरागी प्रकृति की थीं इसलिए विवाह तय हो जाने के कारण उन्होंने गृह त्याग दिया तथा महर्षि मतंग की शिष्या बन गईं। किशोरवय बालिका सबरी (शबरी) को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे, तब सबरी (शबरी) भी साथ जाने का हठ करने लगीं।
नवधा भक्ति के आलोक में माता सबरी से श्रीराम बोले, ‘‘हे भामिनि! मैं तो केवल भक्ति का ही संबंध मानता हूं। जाति, पाति, कुल, धर्म, बड़ाई, धन-बल, कुटुम्ब, गुण एवं चतुराई इन सबके होने पर भी भक्ति रहित मनुष्य जलहीन बादल-सा लगता है। उन्होंने शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश किया। कहा- मेरी भक्ति नौ प्रकार की है -1.संतों की संगति अर्थात सत्संग, 2. श्रीराम कथा में प्रेम, 3. गुरुजनों की सेवा, 4. निष्कपट भाव से हरि का गुणगान, 5. पूर्ण विश्वास से श्रीराम नाम जप, 6. इंद्रिय दमन तथा कर्मों से वैराग्य, 7. सबको श्रीराममय जानना, 8. यथालाभ में संतुष्टि तथा 9. छल रहित सरल स्वभाव से हृदय में प्रभु का विश्वास। इनमें से किसी एक प्रकार की भक्ति वाला मुझे प्रिय होता है, फिर तुझमें तो सभी प्रकार की भक्ति दृढ़ है। अतएवं जो गति योगियों को भी दुर्लभ है, वह आज तेरे लिए सुलभ हो गई है। उसी के फलस्वरूप तुम्हें मेरे दर्शन हुए, जिससे तुम सहज स्वरूप को प्राप्त करोगी।’’