4 अप्रैल जयंती विशेष:- 'साहित्य अकादमी' से सम्मानित माखनलाल चतुर्वेदी जी
Date : 04-Apr-2024
हिंदी जगत् के कवि, लेखक, पत्रकार माखन लाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल, 1889 ई. में बावई, मध्य प्रदेश में हुआ था। यह बचपन में काफ़ी रूग्ण और बीमार रहा करते थे। चतुर्वेदी जी के जीवनीकार बसआ का कहना है |
'दैन्य और दारिद्रय की जो भी काली परछाई चतुर्वेदियों के परिवार पर जिस रूप में भी रही हो, माखनलाल पौरुषवान सौभाग्य का लाक्षणिक शकुन ही बनता गया।'
इनका परिवार राधावल्लभ सम्प्रदाय का अनुयायी था, इसलिए स्वभावत: चतुर्वेदी के व्यक्तित्व में वैष्णव पद कण्ठस्थ हो गये। प्राथमिक शिक्षा की समाप्ति के बाद ये घर पर ही संस्कृत का अध्ययन करने लगे। इनका विवाह पन्द्रह वर्ष की अवस्था में हुआ और उसके एक वर्ष बाद आठ रुपये मासिक वेतन पर इन्होंने अध्यापकी शुरू की।उन्होंने हिंदी और संस्कृत का अध्ययन किया और स्वतंत्रता के आंदोलन में भाग लिया था। ये शिक्षक और पत्रकार दोनों ही थे |
1913 में चतुर्वेदीजी ने प्रभा पत्रिका का संपादन आरंभ किया, जो पहले पूना और बाद में कानपुर में छपती रही | इसी दौरान उनका परिचय गणेश शंकर विद्यार्थी से हुआ जिनके देश प्रेम और सेवाभाव का चतुर्वेदी पर गहरा प्रभाव पड़ा 1918 में में कृष्णाअर्जुन युद्ध नामक नाटक की रचना की और 1919 में जबलपुर से कर्मवीर का प्रकाशन किया |
12 मई 1921 को राजद्रोह में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया | 1943 में वें हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे | हिंदी काव्य के विद्यार्थी माखनलाल चतुर्वेदी की कविताएं पढ़कर आश्चर्यचकित रह जाते हैं | उनकी कविताओं में कहीं ज्वालामुखी की तरह धधकता हुआ अंतरमन है, जो विषमता की समूची अग्नि सीने में दबाएं फूटने के लिए मचल रहा है तो कहीं विराट पौरुष की हुंकार, कहीं करुणा की दर्दभरी मनुहार |
चतुर्वेदीजी के व्यक्तित्व में संक्रमणकालीन भारतीय समाज की विरोधी विशिष्टताओं का संपुंजन दिखाई पड़ता है |
माखनलाल के आरंभिक रचनाओं में भक्तिपरक अथवा आध्यात्मिक विचार प्रेरित कविताओं का भी काफी महत्वपूर्ण स्थान है उनकी कविताओं में प्रकृति चित्रण का भी विशेष महत्व है |
हिमतरंगिनी काव्य रचना के लिए वर्ष 1955 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया
मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक मातृ-भूमि पर शीश-चढ़ाने, जिस पथ पर जावें वीर अनेक
कवि के व्यक्तित्व को बहुत सीमा तक उसके द्वारा लिखे काव्य से समझा जा सकता है। हिंदी हैं हम की श्रृंखला के माध्यम से माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा लिखी इन पंक्तियों से यह जाना जा सकता है कि वह ‘पुष्प की अभिलाषा’ के माध्यम से अपने अंतस की बात कह रहे हैं। मातृभूमि के लिए उनकी यह भावना मात्र कविताओं तक ही सीमित नहीं है |
शुरुआती दौर में शिक्षक के तौर पर काम करने वाले माखनलाल चतुर्वेदी ने बाद में प्रभा और कर्मवीर जैसे पत्रों का संपादन किया। इन्हीं पत्रों के माध्यम से उन्होंने गुलाम भारत को झकझोंरा और ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आवाज़ बुलंद की।
30 जनवरी 1968 में उनका निधन हो गया |