05 अप्रैल विशेष - जगजीवन राम Date : 05-Apr-2024 जगजीवन राम भारत के उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री रह चुके हैं। वह दलित समाज के प्रमुख नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने पिछड़ा वर्ग, दलितों और वंचितों के लिए आवाज उठाई। उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल किया, साथ ही दलितों के लिए मतदान की मांग की। जगजीवन राम को बाबू जी कहकर पुकारा जाता है। बिहार के छोटे से गांव में जन्में जगजीवन राम दिल्ली की राजनीति का बड़ा चेहरा बने। दो बार प्रधानमंत्री बनने की रेस में शामिल हुए। जब विदेश में पढ़ाई का मौका ठुकराया लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष रही मीरा कुमार जगजीवन राम की बेटी हैं। उन्होंने पिता के जीवन से जुड़ा एक किस्सा सुनाया। जगजीवन राम ने 10वीं क्लास को फर्स्ट डिविजन से पास किया। आगे की पढ़ाई के लिए उनके पास पैसे नहीं थे, तो जगजीवन राम की माता जी ने स्थानीय नन से मदद मांगी। नन से लखनऊ में स्थित क्रिस्चन स्कूल में मुफ्त पढ़ाई के साथ ही उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका भेजने का मौका देने का वादा किया। इस पर जगजीवन राम की माता जी ने मना कर दिया। उनका कहना था कि आप मेरे बच्चे को पढ़ाएंगी तो लेकिन उनका धर्म परिवर्तित कर देंगी। मालवीय ने बीएचयू में पढ़ने के लिए किया आमंत्रित बाबू जगजीवन राम ने स्कूली शिक्षा आरा शहर से प्राप्त की, जहाँ उन्होंने पहली बार भेदभाव का सामना किया। उन्हें ‘अछूत’ माना जाता था जिसके चलते उन्हें एक अलग बर्तन से पानी पीना पड़ता था। जगजीवन राम ने उस घड़े/बर्तन को तोड़कर इसका विरोध किया। इसके बाद प्रधानाचार्य को स्कूल में अछूतों के लिये अलग से रखे गए पानी पीने के बर्तन को हटाना पड़ा। इस दौरान एक बार मदन मोहन मालवीय आरा में स्कूल समारोह में शामिल होने आए थे। उनकी मुलाकात जब जगजीवन राम से हुई तो वह उनकी संस्कृत पर जबरदस्त पकड़ से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने बाबू जगजीवन राम को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया। जगजीवन राम ने बीएचयू में दाखिला लिया लेकिन हास्टल, मेस से लेकर क्लास तक भेदभाव का सामना करना पड़ा। इस पर उन्होंने बीएचयू छोड़कर कलकत्ता यूनिवर्सिटी से स्नातक किया। जगन्नाथ पुरी मंदिर में नहीं किए दर्शन उस दौर में धार्मिक स्थलों पर दलितों का प्रवेश वर्जित था। एक बार वह अपनी पत्नी समेत जगन्नाथ पुरी मंदिर के दर्शन के लिए पहुंचे। जन नेता होने के कारण उन्हें तो मंदिर में जाने की अनुमति मिल गई लेकिन पत्नी समेत अन्य दलित समुदाय से जुड़े लोगों को मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया। इस पर जगजीवन राम ने भी मंदिर में दर्शन से इनकार कर दिया। पत्नी इंद्राणी ने अपनी डायरी में इस घटना का उल्लेख किया। वर्ष 1931 में वह भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस पार्टी के सदस्य बने उन्होंने वर्ष 1934-35 में अखिल भारतीय शोषित वर्ग लीग की नींव रखने में अहम योगदान दिया था। यह संगठन अछूतों को समानता का अधिकार दिलाने हेतु समर्पित था। वह सामाजिक समानता और शोषित वर्गों के लिये समान अधिकारों के प्रणेता थे। वर्ष 1935 में उन्होंने हिंदू महासभा के एक सत्र में प्रस्ताव रखा कि पीने के पानी के कुएँ और मंदिर अछूतों के लिये खुले रखे जाएँ। वर्ष 1935 में बाबूजी राँची में हैमोंड आयोग के समक्ष भी उपस्थित हुए और पहली बार दलितों के लिये मतदान के अधिकार की मांग की । उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और इससे जुड़ी राजनीतिक गतिविधियों के लिये 1940 के दशक में उन्हें दो बार जेल जाना पड़ा। स्वतंत्रता के बाद योगदान: बाबू जगजीवन राम वर्ष 1946 में जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में सबसे युवा मंत्री बने। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने 1952 तक श्रम विभाग का संचालन किया। इसके बाद उन्होंने नेहरू मंत्रिमंडल में संचार विभाग (1952–56), परिवहन और रेलवे (1956–62) तथा परिवहन और संचार (1962–63) मंत्री के पदों पर कार्य किया। उन्होंने 1967-70 के मध्य खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में कार्य किया तथा 1970 में उन्हें रक्षा मंत्री बनाया गया। वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वे भारत के रक्षा मंत्री थे जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ था। वर्ष 1977 में उन्होंने कॉन्ग्रेस छोड़ दी और जनता पार्टी में शामिल हो गए। बाद में उन्होंने जनता पार्टी सरकार में भारत के उप प्रधानमंत्री 1977-79 के रूप में कार्य किया। वर्ष 1936-1986 40 वर्ष तक संसद में उनका निर्बाध प्रतिनिधित्व एक विश्व रिकॉर्ड है। उनका भारत में सबसे लंबे समय तक सेवारत कैबिनेट मंत्री 30 वर्ष होने का भी रिकॉर्ड है। चार बार पीएम बनने से चूके जगजीवन राम बाबू जगजीवन राम इंदिरा गांधी के करीबी नेताओं में से एक थे। एक बार इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने अपने पद से इस्तीफा देने पर जगजीवन राम को पीएम बनाने की बात तक कही थी लेकिन बाद में जगजीवन राम की कांग्रेस दूरी बन गई और वह पीएम बनते बनते रह गए। बाद में 1977 के चुनावों में जीत के बाद जनता दल की सरकार बनने पर जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बनाया जाना था लेकिन जय प्रकाश नारायण की नजदीकियों की वजह से मोरारजी देसाई को पीएम बना दिया गया। 1970 में मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई। फिर जगजीवन राम और चौधरी चरण सिंह के बीच प्रधानमंत्री पद की सियासी लड़ाई शुरू हुई लेकिन इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण सिंह का साथ दिया और जगजीवन राम फिर प्रधानमंत्री बनते बनते रह गए। चौधरी चरण सिंह की सरकार गिरने के बाद 1980 के चुनावों में जनता दल ने जगजीवन राम को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया, हालांकि उस चुनाव में इंदिरा गांधी की वापसी हुआ और जगजीवन राम का प्रधानमंत्री बनने का सपना चौथी बार अधूरा रह गया।