वरुथिनी एकादशी व्रत : पुण्य, मोक्ष और सौभाग्य की एक दिव्य तिथि | The Voice TV

Quote :

"जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते, तब तक आप भगवान पर भी विश्वास नहीं कर सकते " – स्वामी विवेकानंद

Editor's Choice

वरुथिनी एकादशी व्रत : पुण्य, मोक्ष और सौभाग्य की एक दिव्य तिथि

Date : 24-Apr-2025
पद्म पुराण के अनुसार, वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त होकर भगवान विष्णु के दिव्य लोक में स्थान प्राप्त करता है। ऐसा माना जाता है कि जितना पुण्य व्यक्ति को कन्यादान, हज़ारों वर्षों का तप अथवा यज्ञ करने से प्राप्त होता है, उतना ही फल केवल वरुथिनी एकादशी का व्रत करके मिल जाता है। यह एकादशी मोक्ष प्रदान करने वाली, दरिद्रता और दुखों को दूर करने वाली तथा सौभाग्य में वृद्धि करने वाली मानी गई है।

वरुथिनी एकादशी 2025: शुभ मुहूर्त
इस बार वरुथिनी एकादशी का पारण 25 अप्रैल 2025, गुरुवार को किया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, व्रत खोलने का शुभ मुहूर्त 25 अप्रैल को सुबह 5 बजकर 46 मिनट से 8 बजकर 23 मिनट तक रहेगा।


व्रत विधि (पूजा प्रक्रिया)
1. व्रत से एक दिन पूर्व दशमी को एक समय ही भोजन करें।
2. एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान कर, व्रत का संकल्प लें।
3. भगवान विष्णु का विधिवत पूजन करें और वराह अवतार का विशेष ध्यान करें।
4. इस दिन व्रती को तेल युक्त भोजन, पराया अन्न, शहद, चना, मसूर दाल और कांसे के बर्तन में भोजन करने से बचना चाहिए।
5. केवल एक बार सात्विक भोजन करें।
6. दिनभर भगवान विष्णु के नाम का जप, कीर्तन, और शास्त्रों का चिंतन करें।
7. रात्रि में जागरण करें और भक्ति में लीन रहें।
8. अगले दिन द्वादशी  को व्रत का पारण उचित समय पर करें।


वरुथिनी एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में राजा मान्धाता नामक एक धर्मनिष्ठ और तपस्वी राजा नर्मदा नदी के तट पर तपस्या कर रहे थे। तप में लीन उस राजा पर एक जंगली भालू ने आक्रमण कर दिया और उसका पैर चबाने लगा। किंतु राजा तप में लीन रहा और हिम्मत न हारते हुए भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की।
भगवान विष्णु तत्काल प्रकट हुए और भालू का वध कर राजा की रक्षा की। लेकिन तब तक भालू राजा का एक पैर खा चुका था। राजा अत्यंत व्यथित हुआ, तब भगवान विष्णु ने उसे वरुथिनी एकादशी का व्रत करने का निर्देश दिया।
राजा ने श्रद्धापूर्वक यह व्रत किया और भगवान वराह अवतार की आराधना की। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर पुनः सुंदर और स्वस्थ हो गया। जीवन के अंत में राजा को स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इसी कथा से वरुथिनी एकादशी व्रत की महिमा सिद्ध होती है।

वरुथिनी एकादशी केवल उपवास भर नहीं, यह आत्मशुद्धि, संयम, सेवा और भक्ति का पर्व है। यह व्रत व्यक्ति को दुष्ट संगति, क्रोध, असत्य भाषण और अति भोग से दूर रहने का अभ्यास कराता है। यह विष्णु भक्ति के माध्यम से आत्मकल्याण की राह दिखाता है।
 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload

Advertisement









Advertisement