आज पूरे विश्व में विश्व होम्योपैथी दिवस मनाया जा रहा है, जो समग्र और साक्ष्य-आधारित चिकित्सा पद्धति के प्रति भारत की गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। होम्योपैथी, जो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी चिकित्सा प्रणाली मानी जाती है, अपनी प्राकृतिक, सुरक्षित और गैर-आक्रामक विधियों के कारण लाखों लोगों को आकर्षित करती है।
आयुष मंत्रालय के अनुसार, भारत में 10 करोड़ से अधिक लोग अपनी स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिए होम्योपैथी पर भरोसा करते हैं। वर्तमान में देश में लगभग 3.45 लाख पंजीकृत होम्योपैथिक चिकित्सक, 277 अस्पताल, 8000 से अधिक डिस्पेंसरी और 277 शैक्षणिक संस्थान सक्रिय हैं, जो इस चिकित्सा प्रणाली को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद के अधीन 35 से अधिक अनुसंधान केंद्र कार्यरत हैं, जो साक्ष्य-आधारित चिकित्सा को बढ़ावा दे रहे हैं। विश्व होम्योपैथी दिवस न केवल इस चिकित्सा पद्धति की वैश्विक प्रासंगिकता को रेखांकित करता है, बल्कि देश की सुरक्षित, प्रभावी और किफायती स्वास्थ्य देखभाल के प्रति प्रतिबद्धता की भी पुष्टि करता है।
विश्व होम्योपैथी दिवस हर साल 10 अप्रैल को मनाया जाता है। यह दिन होम्योपैथी के जनक, डॉ. सैमुएल हैनीमैन की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति की उपयोगिता, इसके सिद्धांतों और इसके वैश्विक योगदान के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना होता है।
इस दिन का महत्व:
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होम्योपैथी एक समग्र चिकित्सा पद्धति है जो "समान ही समान को ठीक करता है" (Like cures like) के सिद्धांत पर आधारित है।
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यह प्राकृतिक, गैर-आक्रामक और साइड इफेक्ट रहित मानी जाती है।
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भारत सहित कई देशों में यह लोकप्रिय है, खासकर दीर्घकालिक और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के उपचार में।
भारत में इसकी स्थिति:
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भारत में 3.45 लाख से अधिक पंजीकृत होम्योपैथिक चिकित्सक हैं।
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100 मिलियन (10 करोड़) से ज़्यादा लोग नियमित रूप से इस पद्धति का उपयोग करते हैं।
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AYUSH मंत्रालय और केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद इसके अनुसंधान, शिक्षा और प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।