पटना, 15 नवम्बर । बिहार में सत्ता आ-जा सकती है, राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं, चुनावी बयार का रुख बदल सकता है, वह कभी तेज, तो कभी मंद हो सकता है, लेकिन एक चीज सदियों से अक्षुण्ण है और वह है बिहार की आध्यात्मिक पहचान। यह वही धरती है, जहां भागवत परंपरा की भक्ति, बुद्ध का ध्यान, महावीर की अहिंसा, गुरु गोविंद सिंह की वीरता, सीता मईया का त्याग और सूफी संतों की करुणा, सब एक साथ बहते हुए दिखाई देते हैं। बिहार का स्वभाव बताता है कि यहां धर्म का अर्थ किसी एक मत का वर्चस्व नहीं, बल्कि विविध परंपराओं का संतुलन और सामंजस्य है।
चुनाव बदले, लेकिन बिहार की आत्मा नहीं
2025 के विधानसभा चुनाव परिणाम आते ही यह साफ हो गया कि बिहार की जनता ने एक बार फिर अपने विवेक से फैसला दिया है। राजनीति की उठा-पटक और गठजोड़ों की जटिलताओं के बीच जनता ने यह संदेश दिया कि शासन-सत्ता बदलना लोकतंत्र की प्रक्रिया है,लेकिन समाज का नैतिक आधार आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक गहराई अटल है।
इतिहासविद् डॉ. रवीश कुमार ने बताया कि बिहार के इतिहास में यहां का शासन कई बार बदला। बात प्राचीन मगध साम्राज्य, मौर्य, गुप्त, मुगल या ब्रिटिश शासन की करें, सभी आए और चले गए, लेकिन बिहार की आध्यात्मिक धारा आज भी उसी रूप में बह रही है। यही कारण है कि बिहार में राजनीति भले ही तात्कालिक मुद्दों पर चलती हो, लेकिन समाज की धड़कन हमेशा धर्म, दर्शन और लोकमान्य परंपराओं से संचालित होती है।
राहें अलग-अलग, लेकिन मंजिल शांति की
बिहार की धरती यह सीख देती है कि यहां अहिंसा और ध्यान के साथ-साथ साहस और करुणा भी समान रूप से पूजनीय हैं। बुद्ध का ध्यान जहां अंदरूनी शांति का मार्ग दिखाता है, वहीं गुरु गोविंद सिंह जी की परंपरा आत्मसम्मान और सुरक्षा की भावना को जगाती है। इसी तरह सूफी परंपरा हर इंसान में ईश्वर का अंश देखने की सीख देती है। यही कारण है कि बिहार में धार्मिक पहचान कभी टकराव का विषय नहीं रही, बल्कि हमेशा सहअस्तित्व का आधार रही है। चुनावी शोर के बीच भी यही सांस्कृतिक स्वर बिहार को एकजुट बनाए रखता है।
प्रचंड जनादेश का संदेश
राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार लव कुमार मिश्र की मानें, तो 2025 के चुनावों में जनता ने सिर्फ सरकार नहीं चुनी, बल्कि एक स्पष्ट दिशा भी दिखा दी। शासन गठन के लिए 122 सीटें काफी थीं, लेकिन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को 202 सीटों का प्रचंड जनसमर्थन मिला। यह सिर्फ राजनीतिक जीत नहीं, बल्कि जनता का यह विश्वास है कि विकास सबसे बड़ा मुद्दा है। सतत विकास ही भविष्य का रास्ता है। राजनीतिक भ्रम क्षणिक होते हैं, लेकिन जनता की प्राथमिकताएं दीर्घकालिक होती हैं। यह जनादेश बताता है कि बिहार की जनता कभी-कभार कुछ मुद्दों पर भटक सकती है, लेकिन अंततः वह वहीं लौटती है, जहां से उसकी आत्मा जुड़ी है, जहां विकास, स्थिरता और आध्यात्मिक सांस्कृतिक की धारा है।
