उत्पन्ना एकादशी: विज्ञान, आयुर्वेद और पौराणिक महत्व | The Voice TV

Quote :

पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है - अज्ञात

Editor's Choice

उत्पन्ना एकादशी: विज्ञान, आयुर्वेद और पौराणिक महत्व

Date : 15-Nov-2025

वैज्ञानिक दृष्टि से एकादशी का समय विशेष महत्व रखता है। इस दिन चंद्रमा की कलाओं में परिवर्तन होता है, जिससे शरीर और मन पर असर पड़ता है। इसलिए उपवास और ध्यान द्वारा शरीर को संयमित रखना और मन को स्थिर करना लाभकारी माना जाता है। यह प्रक्रिया शरीर को विषम तत्वों से मुक्त करती है और मानसिक एकाग्रता बढ़ाती है।


शास्त्रों के अनुसार, एकादशी के दिन अन्न का त्याग करना अत्यंत फलदायी है। पद्म, स्कंद और विष्णु धर्मोत्तर पुराण में भी इस दिन उपवास का विशेष उल्लेख है। आयुर्वेद के अनुसार, व्रत त्रिदोष—वात, पित्त और कफ—को संतुलित करने में मदद करता है, जिससे शरीर स्वस्थ रहता है, मन प्रसन्न होता है और विचार सकारात्मक बनते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवता मुर नामक दैत्य से पीड़ित थे, तब भगवान विष्णु ने युद्ध किया। युद्ध के बाद उनके शरीर से एक दिव्य कन्या उत्पन्न हुई, जिसका नाम एकादशी रखा गया। यह कथा इस बात का प्रतीक है कि प्रत्येक मनुष्य में एक दिव्य शक्ति निहित है, जो रोग, दुःख और नकारात्मकता का नाश कर सकती है।

मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की उत्पन्ना एकादशी के दिन व्रत किया जाता है। प्रातः स्नान के बाद भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा पुष्प, जल, धूप और अक्षत से करें। दशमी की रात्रि में भोजन का त्याग आवश्यक है। इस दिन पितृ तर्पण, पीपल वृक्ष में जल अर्पण और दान-पुण्य करने से सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है।

श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर को उत्पन्ना एकादशी का महत्व बताया था। इस व्रत को श्रद्धा और विधि-विधान के साथ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। उत्पन्ना एकादशी न केवल आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त करती है, बल्कि शरीर, मन और आत्मा को संतुलित कर जीवन में नवचेतना और कल्याण का संचार करती है।
 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload

Advertisement









Advertisement