कामेंग (अरुणाचल प्रदेश), 15 नवंबर । कामेंग हिमालय की दुर्गम ऊँचाइयों पर, जहां सड़कें गायब हो जाती हैं और मौसम एक दुष्कर बन जाता है, वहां भारतीय सेना की गजराज कोर ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। गजराज कोर ने अरुणाचल प्रदेश में लगभग 16,000 फीट की ऊँचाई पर एक स्वदेशी उच्च-ऊंचाई वाली मोनो रेल प्रणाली तैनात की है, जिसका उद्देश्य अग्रिम मोर्चे पर तैनात सैनिकों तक तेज, सुरक्षित और निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करना है। सबसे दुर्गम और मौसम से प्रभावित उच्च-ऊंचाई वाले क्षेत्रों में यह प्रणाली एक बार में 300 किलोग्राम तक का भार ले जाने में सक्षम है। इस क्षेत्र की अग्रिम चौकियों को अक्सर बर्फबारी, भूस्खलन और अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण आपूर्ति लाइनों में रुकावट का सामना करना पड़ता है। यह तात्कालिक समाधान न केवल रसद को मज़बूत करता है, बल्कि हेलीकॉप्टरों की पहुँच से बाहर के क्षेत्रों में हताहतों को तेज़ी से निकालने की क्षमता भी प्रदान करता है।
भारत की पूर्वी हिमालयी सीमा का भूभाग रसद और संचालन के लिए सबसे कठिन भूभागों में से एक है। खड़ी चट्टानें, बर्फ से ढके दर्रे, कम ऑक्सीजन और संकरे पैदल रास्ते अक्सर अग्रिम चौकियों को आवश्यक वस्तुओं से वंचित कर देते हैं। अरुणाचल के कामेंग सेक्टर में, ये चुनौतियाँ गंभीर हैं। इससे कठाेर मौसम, दुर्गम चट्टानों और दिनों तक कट जाने वाले मार्गों के बीच इससे अग्रिम चौकियों तक आवश्यक सामग्री, गोला-बारूद, ईंधन और इंजीनियरिंग सामान पहुंचाना काफी सुगम हुआ है।
मोनो रेल की तैनाती के संबंध में लेफ्टिनेंट कर्नल महेंद्र रावत ने बताया कि यह मिशन-महत्वपूर्ण भंडार, गोला-बारूद, राशन, ईंधन, इंजीनियरिंग उपकरण और अन्य भारी या असुविधाजनक भार को खड़ी, अस्थिर ढलानों पर सुचारू रूप से ले जाने को सुनिश्चित करता है जहां पारंपरिक परिवहन विधियां अक्सर विफल हो जाती हैं। लगभग 16,000 फीट की ऊंचाई तक संचालन के लिए डिजाइन किया गया है जाे एक बार में 300 किलोग्राम से अधिक भार ले जाने में सक्षम है।
यह प्रणाली अनुरक्षक के साथ या उसके बिना ओलावृष्टि, तूफान या बर्फबारी के दौरान भी कार्य करने के लिए डिजाइन किया गया। यह दोहरे उद्देश्य को पूरा करती है, जहां हेलीकॉप्टर या पैदल निकासी मुमकिन नहीं है। उच्च-ऊंचाई वाली दुर्गम क्षेत्र में मोनोरेल प्रणाली का एक अपना महत्व और निहितार्थ भी है। दूरस्थ चौकियों तक विश्वसनीय और निरंतर आपूर्ति, दुर्गम इलाकों में सैनिकों की परिचालन तत्परता और मनोबल को बढ़ाती है। इससे उन सैनिकों और कुलियों पर शारीरिक तनाव कम होता है जो पहले हिमस्खलन, चट्टान-स्खलन और कम ऑक्सीजन के उच्च जोखिम वाले संकरे रास्तों पर सामान ढोते थे। यह सुविधा दिन-रात, किसी भी मौसम में सुरक्षित रूप से संचालित की जा सकती है। साथ ही, यह प्रणाली कठिन इलाकों में हेलीकॉटर की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए तेज और सुरक्षित कैजुअल्टी इवैक्यूएशन में भी सहायक बन रही है।
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अत्यधिक निगरानी वाले क्षेत्र में, इस तरह का बुनियादी ढांचा भारत की अग्रिम तैनाती को बनाए रखने की क्षमता को बढ़ाता है। यह स्वदेशी रक्षा इंजीनियरिंग और सेना की भू-भाग की चुनौतियों के प्रति अनुकूलन क्षमता को दर्शाता है, न कि केवल आयातित समाधानों को। हालाँकि यह मुख्य रूप से सैन्य है, लेकिन ऐसी प्रणाली भविष्य में उच्च-ऊंचाई वाले क्षेत्रों में नागरिक या आपदा-राहत उपयोग का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
अत्यधिक ठंड, तेज़ हवाएं, बर्फ जमा होने से यांत्रिक प्रणालियां प्रभावित हो सकती हैं, रखरखाव के प्रयास गहन होंगे। इसके साथ ही अब इसी तरह की प्रणालियां अन्य उच्च-ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी तैनात किए जाने काे लेकर विचार-विर्मश किया जा रहा है।
फिलहाल, गजराज कोर की यह उपलब्धि सेना की नवाचार क्षमता और उच्च हिमालयी क्षेत्रों में परिचालन तत्परता को मजबूत करने का प्रमाण मानी जा रही है।
