पटना, 15 नवम्बर। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के लिये खुशी की खबर नहीं लाये। संतोष की बात यह है कि बसपा ने बिहार में लगातार दूसरे चुनाव में खाता खोला है। इस जीत के साथ ही बसपा के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश बराबर हो गए हैं।
उत्तर प्रदेश में बसपा का एक विधायक है और अब बिहार में भी पार्टी का एक विधायक बन गया है। हालांकि, बसपा का जादू बिहार में बिल्कुल भी नहीं चला। पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाये।
मायावती ने अपने सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले के तहत बिहार की 192 सीट पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन ये बसपा के काम नहीं आया। इस बार पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में पार्टी का मत प्रतिशत 0.25 फीसद कम रहा है। बसपा को अपने कई उम्मीदवारों के जीतने की उम्मीद थी, लेकिन एक ही चुनाव जीतने में सफल हो पाया। फिर भी पार्टी के लिए कहीं न कहीं यह राहत की ही खबर है। क्योंकि, तमाम राज्यों में चुनाव लड़कर पार्टी को लगातार हार ही नसीब हो रही थी।
बसपा के रामगढ़ प्रत्याशी सतीश कुमार सिंह यादव अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अशोक कुमार सिंह से जीतने में सफल हुए हैं। हालांकि, यह जीत सिर्फ 30 वोटों से ही रही है, जो बिहार में सबसे कम वोटों से हुई दूसरी जीत है। सतीश कुमार सिंह यादव को 72689 वोट मिले, जबकि भाजपा के अशोक कुमार सिंह को 7,2659 मत प्राप्त हुए। इस चुनाव में जदयू के प्रत्याशी ने राजद के प्रत्याशी को सिर्फ 27 वोटों से हराया है। यह बिहार में सबसे कम अंतर की जीत है।
बसपा ने 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 80 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे और उसका एक उम्मीदवार जीतने में सफल हुआ था। पार्टी को इस चुनाव में 6,28,961 मत प्राप्त हुए थे और 1.49 प्रतिशत मत मिले थे। इस बार बसपा ने 192 सीटों पर प्रत्याशी मैदान में उतारे, जबकि जीत का प्रतिशत 1.61 प्रतिशत ही रह गया। बिहार में बसपा का स्ट्राइक रेट इस बार 0.52 प्रतिशत रहा, जबकि 2020 के चुनाव में ये 1.25 प्रतिशत था।
बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने बिहार विधानसभा चुनाव में कैमूर जिले की भभुआ सीट पर प्रचार किया था,जिसका कोई असर बिहार के लोगों पर नहीं हुआ। बिहार में बसपा का दलित वोट बैंक तो उसके साथ कुछ हद तक खड़ा नजर आया, लेकिन मुसलमानों के साथ ही अन्य जातियों ने बसपा को वोट ही नहीं दिया। पार्टी के नेशनल कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद और राज्यसभा सांसद रामजी लाल गौतम लगातार बिहार में ही जमे रहे। तमाम रैलियां और जनसभाएं भी कीं, लेकिन मतदाताओं को रिझाने में सफल नहीं हो सके।
बीते 9 अक्टूबर को बसपा संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बड़ी रैली आयोजित हुई थी, जिसमें बिहार से भी बड़ी संख्या में कार्यकर्ता आए थे। इस रैली से देश भर में यह संदेश गया था कि अभी भी लाखों की भीड़ बहुजन समाज पार्टी जुटा सकती है। कार्यकर्ता हैं, तो चुनाव भी जीता जा सकता है। इसी का असर बिहार के विधानसभा चुनाव में हुआ और पार्टी एक सीट जीतने में कामयाब हुई।
