बाबासाहेब बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे (29 जुलाई 1922 – 15 नवंबर 2021) महाराष्ट्र के प्रसिद्ध इतिहासकार, लेखक, नाटककार और वक्ता थे, जिनका जीवन छत्रपति शिवाजी महाराज के अध्ययन और उनके व्यक्तित्व को जीवंत करने में समर्पित रहा। 1978 में यूरोप यात्रा के दौरान रोमन बैले देखकर प्रेरित होकर उन्होंने शिवाजी पर भव्य नाटक बनाने का विचार किया, जो बाद में जनता राजा के रूप में 1984 में मंचित हुआ। यह नाटक चार दशकों में 1,550 से अधिक शो के साथ भारत में दर्शकों को मंत्रमुग्ध करता रहा, और 2015 में लंदन में उसी जगह पुनः मंचित हुआ।
पुरंदरे की अधिकांश रचनाएँ शिवाजी पर केंद्रित थीं, जिसमें उनकी द्विखण्डीय जीवनी राजे शिछत्रपति भी शामिल है। उनका दृष्टिकोण अक्सर आलोचनाओं के घेरे में रहा; आलोचकों ने उन पर इतिहास को ब्राह्मणवादी और संकीर्ण दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने का आरोप लगाया। इसके बावजूद, पुरंदरे ने इतिहास को आम जनता तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने 36 से अधिक पुस्तकें लिखीं, किलों का दौरा किया, मौखिक इतिहास संकलित किया और मराठा साम्राज्य की धरोहर को संरक्षित किया।
उनके योगदान को 2019 में भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया। अपने 99वें जन्मदिन के करीब, नवंबर 2021 में, उन्होंने कहा कि इतिहास को समझने के लिए गहरी रुचि होना आवश्यक है। वे शिवाजी के बुद्धिमत्ता, वीरता और राष्ट्र-निर्माण के विचारों के कायल थे, परन्तु उनका दृष्टिकोण संतुलित और स्वतंत्र था—वह न तो पुजारी थे, न गुलाम।
