प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन्फिनिटी फोरम के दूसरे संस्करण के संबोधन में जलवायु परिवर्तन पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि आज विश्व के सामने खड़ी सबसे बड़ी चुनौतियों में जलवायु परिवर्तन भी एक है। विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के कारण भारत इन चिंताओं को कम नहीं आंकता है। इसको लेकर भारत सचेत है। प्रधानमंत्री मोदी की यह टिप्पणी दुबई में इस मसले पर हो रहे मंथन के दौरान आई है। खास बात यह है कि वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन सीओपी28 में इस मामले में भारत के प्रयासों की तारीफ की गई है। सम्मेलन में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक में इस साल पिछली बार की तुलना में एक पायदान ऊपर (सातवें स्थान) पहुंच गया और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वालों में शुमार है। यह रिपोर्ट शुक्रवार को जारी की गई।
जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक तैयार करने के लिए 63 देशों और यूरोपीय संघ के जलवायु शमन प्रयासों की निगरानी की गई। यह देश दुनियाभर में 90 प्रतिशत से अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करते हैं। सूचकांक में भारत को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और ऊर्जा उपयोग श्रेणियों में उच्च रैंकिंग प्राप्त हुई है। यह अलग बात है कि रिपोर्ट में जलवायु नीति और नवीकरणीय ऊर्जा में पिछले वर्ष की तरह मध्यम रैंकिंग मिली है।
महत्वपूर्ण यह है कि सूचकांक में कहा गया है कि भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, लेकिन यहां प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अपेक्षाकृत कम है। सूचकांक पर आधारित यह रिपोर्ट कहती है, 'हमारा डेटा दिखाता है कि प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस श्रेणी में, देश दो डिग्री सेल्सियस से नीचे के मानक को पूरा करने की राह पर है। हालांकि भारत में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी में थोड़ा सकारात्मक रुझान दिखता है, लेकिन यह रुझान बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रहा है।' जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक विशेषज्ञों ने कहा है कि भारत स्पष्ट दीर्घकालिक नीतियों के साथ अपने राष्ट्रीयस्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को पूरा करने की कोशिश कर रहा है। यह नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने और नवीकरणीय ऊर्जा घटकों के घरेलू विनिर्माण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने पर केंद्रित है। इसके बावजूद, भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतें अभी भी तेल और गैस के साथ-साथ कोयले पर भारी निर्भरता से पूरी हो रही हैं।
संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने दुबई पहुंचे जर्मनी के नेता और यूरोपीय संसद के सदस्य पीटर लीसे ने भारत के संदर्भ में अहम टिप्पणी कर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों पर संतोष जताया है। उन्होंने कहा है कि भारत का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन बेहद कम है। इसलिए भारत को चीन और अमेरिका जैसे देशों के साथ नहीं जोड़ना चाहिए। उन्होंने भारत के पक्ष में एक बात यह भी कही कि जब जर्मनी में लोगों के पास दो कार हैं, तो भारतीयों के पास भी एक कार तो होनी ही चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रति व्यक्ति उत्सर्जन कम होने के बावजूद इस सम्मेलन में भारत को अमेरिका जैसे प्रमुख उत्सर्जकों के साथ जोड़ने के ठोस प्रयास किए गए हैं। यूरोप में तमाम लोग चीन और भारत को और कभी-कभी खाड़ी देशों को एक ही नजर से देखते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। यह नजरिया पूरी तरह अस्वीकार्य है। इन देशों की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन बहुत कम है।
इस हफ्ते की शुरुआत में जारी वैश्विक वैज्ञानिकों की एक टीम की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन पिछले साल लगभग पांच प्रतिशत बढ़कर दो टन कार्बन डाइऑक्साइड तक पहुंच गया, लेकिन यह अब भी वैश्विक औसत के आधे से भी कम है। इस रिपोर्ट में चेताया गया है कि अमेरिका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन चार्ट में शीर्ष पर है। अमेरिका का प्रत्येक व्यक्ति 14.9 टन सीओ 2 उत्सर्जित करता है। इसके बाद रूस (11.4), जापान (8.5), चीन (8), और यूरोपीय संघ (6.2) हैं।
दरअसल औसत तापमान, बारिश, बर्फबारी आदि मौसम के विभिन्न आयामों में होने वाले दीर्घकालिक परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन कहते हैं। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से धरती के तापमान में होने वाली बढ़ोतरी बारिश की औसत मात्रा में बदलाव लाती है। इससे समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी हो जाती है। इसका असर इंसान, जानवरों और वनस्पतियों पर पड़ता है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि मौजूदा समय में जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी वैश्विक चुनौती है। इससे निपटना वर्तमान की सबसे बड़ी आवश्यकता है। आंकड़े भयावह हैं। 19वीं सदी के अंत से अब तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान लगभग 1.62 डिग्री फॉरनहाइट (अर्थात लगभग 0.9 डिग्री सेल्सियस) बढ़ा है। इसके अलावा पिछली सदी से अब तक समुद्र के जलस्तर में भी लगभग आठ इंच की बढ़ोतरी हुई है।
जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता खास है। यह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौता है। वर्ष 2015 में 30 नवंबर से लेकर 11 दिसंबर तक 195 देशों की सरकारों के प्रतिनिधियों ने पेरिस में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक समझौते पर चर्चा की थी। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य के साथ खत्म हुए 32 पृष्ठों एवं 29 लेखों वाले पेरिस समझौते को ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए ऐतिहासिक समझौते के रूप में मान्यता प्राप्त है।
(लेखक, मुकुंद)