क्लाइमेट में जीरो सॉल्यूशन हमेशा से ही इस तरह की गोष्ठियों में काफी गर्माता है, क्योंकि आज भी हम इस लक्ष्य से बहुत दूर हैं. इसके अतिरिक्त, कार्बन मार्केट के लिए हम किस तरह से अपनी रणनीति बना सकते हैं, इस पर भी चर्चा होगी। जैव-विविधता, वनों का विस्तार व सुरक्षा भी कॉप की बैठकों का मुद्दा रहा है। हम आज 28 कॉप तक पहुंच चुके हैं, पर क्या इसके परिणाम सार्थक रहे हैं, यह भी बहस का हिस्सा होगा। क्योंकि प्री-इंडस्ट्रियल युग से आज तक करीब 1.1 डिग्री सेंटीग्रेड पृथ्वी के तापमान में बढ़ोतरी हुई है. समुद्र के लगातार बढ़ते ताप पर भी चर्चा होनी चाहिए। इस बार की मेजबानी दुबई को दी गयी है। इसमें चिंतन तो फ्यूल को लेकर भी है और चर्चाओं का स्पॉटलाइट भी यही है. जबकि दुबई ही ऑयल का सबसे बड़ा बाजार भी है और इस बात का लांछन भी झेल रहा है कि सम्मेलन की आड़ में ऑयल व्यापार भी होगा। इसके अलावा, लॉस एंड डैमेज फंड को क्रिएट करने की बात अभी तक बहुत गंभीर शक्ल नहीं ले पायी है, पर इस ओर प्रगति दिखाई दे रही है. क्योंकि यह माना गया है कि विकसित देशों ने जिस तरह कार्बन उत्सर्जन किया है, उसका खामियाजा कहीं न कहीं विकासशील देशों को भुगतना पड़ रहा है। इसकी आर्थिक तौर पर भरपाई विकसित देशों द्वारा क्रिएट किये गये फंड से संभव होगी। परंतु आज भी हम लगातार बहसों के बाद फॉसिल फ्यूल को न तो कम कर पाये हैं, न ही इससे उत्पन्न विसंगतियों पर चर्चा ही कर पाये हैं। जैसे ऑयल, गैस और फ्यूल से जुड़े रोजगार का क्या विकल्प होगा. इसके अलावा, सरकारों के जीरो क्लेम पर भी चर्चा का यह समय है कि किस तरह से इस क्लेम की स्क्रूटनी की जाए, ताकि यह बात सामने आये कि हम जलवायु परिवर्तन के प्रति खरे उतरे हैं। इसके लिए एक स्टैंडर्ड पर भी चर्चा होगी कि किस स्तर पर हम धीरे-धीरे फेज आउट हों और फॉसिल फ्यूल से दूसरे अन्य ऊर्जा के साधनों से कैसे जुड़ पाएं।