मोहिनी एकादशी 2025 पूजन के लिए शुभ मुहूर्त और व्रत पारण का सही समय मोहिनी एकादशी 8 मई, दिन गुरुवार की है और एकादशी के व्रत का पारण द्वादशी के दिन किया जाता है। ऐसे में मोहिनी एकादशी के व्रत का पारण 9 मई, शुक्रवार के दिन होगा। इस दिन सुबह 5 बजकर 34 मिनट से सुबह 8 बजकर 16 मिनट तक का समय व्रत खोलने के लिए शुभ है।
मोहिनी एकादशी की पूजा थाली में विशेष चीजों को शामिल करने से पूजा सफल होती है और भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। आइए जानते हैं मोहिनी एकादशी की पूजा थाली में किन किन चीजों को शामिल करना चाहिए। पूजन थाली में चौकी, सुपारी, तुलसी दल, नारियल, पीला चंदन, पीला कपड़ा, आम के पत्ते, कुमकुम, फूल, मिठाई, अक्षत, लौंग, पंचमेवा, धूप, दीप, फल, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा जरूर शामिल करें।
मोहिनी एकादशी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इसके बाद भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरुप का ध्यान करते हुए रोली, मोली, पीले चन्दन, अक्षत, पीले फूल, फल, और मिठाई भगवान विष्णु को अर्पित करें। फिर धूप-दीप से विष्णु जी की आरती उतारें और मोहिनी एकादशी की कथा पढ़ें।
आज के दिन ॐ नमो: भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। मोहिनी एकादशी के दिन किसी की निंदा, छल-कपट, लालच, द्वेष की भावनाओं से दूर रहें और श्री नारायण का ध्यान और उनका भजन करें।
द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करें। मोहिनी एकादशी व्रत के दिन स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्नदान, गौदान, जलदान, जूते, छाता, और फल का दान करना चाहिए।
धार्मिक मान्यता के अनुसार देवताओं और राक्षसों ने अमृत कलश पाने के लिए मिलकर समुद्र मंथन किया था। समुद्र मंथन के बाद अमृत कलश की प्राप्ति हुई। देवता और दानव दोनों ही अमृत पीना चाहते थे, जिसकी वजह से अमृत कलश को पाने के लिए देवताओं और असुरों में विवाद हो गया। विवाद की स्थिति इतनी बढ़ गयी कि युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गयी। ऐसे में इस विवाद को सुलझाने और देवताओं में अमृत वितरित करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी नामक एक सुंदर स्त्री का रूप धारण करके असुरों को अपने माया जाल में फंसाया और देवताओं ने सारा अमृत पी लिया। इस तरह भगवान विष्णु जी ने अमृत को असुरों के हाथों में जाने से बचा लिया। यह शुभ दिन वैशाख शुक्ल एकादशी का था, इसीलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के रूप में जाना जाता है।
मोहिनी एकादशी के दिन श्रीहरि के मोहिनी अवतार की पूजा करनी चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु को चंदन का तिलक लगाकर जौ और तुलसी पत्ते जरूर चढ़ाएं।
मोहिनी एकादशी का व्रत रखने वाले जातकों को एक दिन पहले दशमी तिथि से ही सात्विक रहना और खाना चाहिए। एकादशी व्रत रखकर गौ की सेवा करें और उन्हें हरा चारा खिलाएं।
मोहिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी पत्ते जरूर चढ़ाएं, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि इस दिन तुलसी को स्पर्श नहीं करें। एकादशी तिथि में ना ही तुलसी पत्ते तोड़ना चाहिए और ना ही तुलसी में जल डालें। आप पूजा के लिए एक दिन पहले ही तुलसी के पत्ते तोड़ कर रख लें। इसके साथ ही एकादशी तिथि पर जुआ, सट्टा, शराब, मांस-मंदिरा, क्रोध, लोभ, मिथ्या और अंहकार से दूर रहना चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार सभी लोगों को एकादशी तिथि को कांसे के पात्र में भोजन नहीं करना चाहिए और साबुन से नहीं नहाना चाहिए, इसके साथ ही एकादशी के दिन घर पर चावल और बैंगन न पकाएं। इस तिथि पर मसूर की दाल, शलजम, गाजर, गोभी, केला, आम, शाक और शहद का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे।