अखंड भारत दिवस
Date : 14-Aug-2025
अखंड भारत केवल एक स्वप्न नहीं, बल्कि करोड़ों भारतवासियों के हृदय की श्रद्धा, निष्ठा और सांस्कृतिक चेतना का जीवंत प्रतीक है। भारत को जब कोई केवल एक भू-भाग के रूप में नहीं, बल्कि माता के रूप में देखता है, जब वह प्रतिदिन “समुद्रवसने देवी पर्वतस्तनमंडले...” कहकर उसकी धूल को माथे से लगाता है, तब यह स्पष्ट हो जाता है कि यह राष्ट्र सीमाओं से नहीं, बल्कि भावनाओं से बंधा है। जिनके मन में "वंदे मातरम्" और "जन-गण-मन" की ध्वनि राष्ट्र की आत्मा बन चुकी है, वे भारत के विभाजन की वेदना को कैसे भुला सकते हैं? और उस अखंडता के संकल्प को कैसे त्याग सकते हैं?
परंतु इस लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग सरल नहीं है। इस यात्रा में यथार्थ की कठिनाइयों से गुजरना ही पड़ेगा — कहीं कांटे हैं, कहीं दलदल, कहीं खाई है, तो कहीं फिसलन भरी ऊँचाई।
15 अगस्त 1947 को भारत को भले ही स्वतंत्रता मिली, लेकिन उसी दिन उसे एक असहनीय पीड़ा भी सहनी पड़ी — मातृभूमि का विभाजन। यह विभाजन अचानक नहीं हुआ, इसकी भूमिका तो सदियों पहले ही बननी शुरू हो चुकी थी। सातवीं से नवीं शताब्दी के बीच, जब हिन्दू अफगानिस्तान ने दो शताब्दियों से अधिक समय तक संघर्ष करने के बाद इस्लामी आक्रांताओं के समक्ष झुकना स्वीकार किया, तभी भारत की सीमाएं सिमटने लगी थीं। नेपाल और भूटान जैसे कुछ क्षेत्र भले ही इस्लामी आक्रमणों से बचे रहे, पर उन्होंने अपनी सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा के लिए राजनीतिक अलगाव का मार्ग अपनाया। आज वही राजनीतिक स्वतंत्रता उनकी संस्कृति पर हावी हो चुकी है।
श्रीलंका, जो कभी भारत के साथ गहराई से जुड़ा था, औपनिवेशिक शक्तियों के चलते धीरे-धीरे अलग हो गया। भारत के टूटने की यह प्रक्रिया 1947 में अपने चरम पर पहुंची, जिसे कुछ लोगों ने यह कहकर सही ठहराया कि जब पहली बार किसी हिन्दू ने इस्लाम स्वीकार किया, तभी भारत के बंटवारे के बीज पड़ गए थे।
भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ। पाकिस्तान ने खुद को इस्लामी राष्ट्र घोषित किया और वहां के हिंदू-सिखों को बाहर निकाल दिया गया। आज वहां इन समुदायों की संख्या लगभग नगण्य है। बांग्लादेश, जो भारत की सहायता से स्वतंत्र हुआ था, उसने शुरू में धर्मनिरपेक्षता को अपनाया, पर मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद वहां भी कट्टरपंथ हावी हो गया और वह एक इस्लामी राष्ट्र बन गया। वहां की हिन्दू जनसंख्या भी 34% से घटकर 10% से कम रह गई है। अब बांग्लादेश भारत विरोधी गतिविधियों का केंद्र बन गया है और वहां से आए करोड़ों घुसपैठिये भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके हैं।
विभाजन के बाद खंडित भारत की भीतरी स्थिति भी चिंताजनक है। ब्रिटिशों की संसदीय प्रणाली का अंधानुकरण करते हुए देश में ऐसी राजनीति ने जन्म लिया जो समाज को जाति, क्षेत्र और दलों में बांटती चली गई। हिन्दू समाज आज भ्रष्टाचार, स्वार्थ और आत्मविस्मृति में फंसा है। यहां हिन्दू हितों की बात करना साम्प्रदायिकता माना जाता है, जबकि मुस्लिम पृथकतावाद और कट्टरवाद को "धर्मनिरपेक्षता" के नाम पर सहन किया जाता है। हिन्दू नेतृत्व कई दलों में बंट चुका है और सत्ता के टुकड़ों की लालसा में मुस्लिम वोटों के तुष्टिकरण में ही लगा रहता है।
यदि भारत को पुनः एक करना है, तो पहले उन कारणों को मिटाना होगा जो जनमानस में दरारें पैदा करते हैं। यह कार्य न तो केवल राजनीति से संभव है, न ही सैन्य बल से। सच्चा एकीकरण तभी संभव है जब हृदय से हृदय का मेल हो। भारत के मुसलमान अरबी या तुर्की नहीं हैं, उनके पूर्वज वही हैं जो हिन्दुओं के हैं। हिन्दू धर्म कोई एक पंथ नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है — जिसे पूरी तरह छोड़ देना संभव नहीं, विशेषकर उनके लिए जो कभी इसी संस्कृति से निकले हैं।
भारत के पास सैन्य शक्ति है, पर केवल युद्ध जीतने से अखंड भारत नहीं बनेगा। राष्ट्र बनता है — आपसी समझ, सांस्कृतिक आत्मीयता और ऐतिहासिक चेतना से। यदि भारत को अखंड बनाना है तो पहले खंडित भारत में ही एक शक्तिशाली, संगठित और तेजस्वी राष्ट्रजीवन खड़ा करना होगा। यही वह मार्ग है जो भारत को उसकी पूर्णता, सांस्कृतिक अखंडता और वैभव की ओर ले जाएगा।
