श्रीरामलला दर्शन योजना के अंतर्गत आज तीसरे चरण की यात्रा के लिए जिले के 72 वरिष्ठ नागरिक अयोध्या धाम दर्शन के लिए रवाना हुए। विधायक श्री आशाराम नेताम और पूर्व सांसद श्री मोहन मंडावी सहित स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा आज दर्शनार्थियों को लेकर जा रही बसों को सुबह 7.30 बजे लाइवलीहुड कॉलेज कांकेर से हरी झंडी दिखाकर दुर्ग रेलवे स्टेशन के लिए प्रस्थान किया गया। इस अवसर पर मत्स्य कल्याण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष श्री भरत मटियारा, जनपद पंचायत अध्यक्ष श्री रामचरण कोर्राम, श्री अरुण कौशिक, श्री ईश्वर कावड़े सहित जिला पंचायत सीईओ एवं नोडल अधिकारी श्री सुमित अग्रवाल भी उपस्थित थे। उल्लेखनीय है कि जिले से श्रीरामलला दर्शन योजना के तहत तीसरे चरण की यात्रा के लिए लॉटरी के माध्यम से 72 दर्शनार्थियों का चयन किया गया था, जिसे आज 02 अनुरक्षक के साथ कुल 74 लोगों के दल को जिला मुख्यालय से रवाना किया गया।
पलामू । झारखंड के पश्चिमी छोर यूपी की सीमा से सटे गढ़वा जिले के श्री बंशीधर नगर (नगर ऊंटारी) में श्री बंशीधर भगवान स्वयं आकर विराजमान हुये हैं। श्री बंशीधर जी के आगमन के बाद उनकी प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा कर मंदिर का निर्माण हुआ है। भगवान के स्वयं आकर विराजमान होने के कारण श्री बंशीधर नगर को योगेश्वर कृष्ण की भूमि और इस धरती को द्वितीय मथुरा और वृंदावन माना जाता है।
श्री बंशीधर मंदिर की स्थापना संवत् 1885 में हुई है।
श्री बंशीधर मंदिर में स्थित योगेश्वर श्रीकृष्ण की वंशीवादन करती प्रतिमा की ख्याति देश में ही नहीं विदेशों में भी है। इसलिए यह स्थान श्री बंशीधर धाम के नाम से भी प्रसिद्ध है। यहां कण कण में राधा व कृष्ण विद्यमान हैं। श्री बंशीधर जी के आगमन के बारे में इतिहासकारों के अनुसार उस दौरान राजा स्व. भवानी सिंह देव की विधवा शिवमानी कुंवर राजकाज का संचालन कर रही थीं। रानी शिवमानी कुंवर धर्मपरायण एवं भगवत भक्ति में पूर्ण निष्ठावान थीं। एक बार जन्माष्टमी व्रत धारण किए रानी साहिबा को 14 अगस्त 1827 की मध्य रात्रि में स्वप्न में भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन हुआ। स्वप्न में श्री कृष्ण ने रानी से वर मांगने को कहा।
रानी ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि प्रभु आपकी सदैव कृपा हम पर रहे। तब भगवान कृष्ण ने रानी से कनहर नदी के किनारे महुअरिया के निकट शिव पहाड़ी में अपनी प्रतिमा के गड़े होने की जानकारी दी और उन्हें अपने राज्य में लाने को कहा। भगवत कृपा जान रानी ने शिवपहाड़ी जाकर विधिवत पूजा अर्चना के बाद खुदाई करायी तो श्री बंशीधर जी की अद्वितीय असाधारण प्रतिमा मिली। जिसे हाथियों पर बैठाकर श्री बंशीधर नगर लाया गया। गढ़ के मुख्य द्वार पर अंतिम हाथी बैठ गया। लाख प्रयत्न के बावजूद हाथी नहीं उठने पर रानी ने राजपुरोहितों से राय मशविरा कर वहीं पर मंदिर का निर्माण कराया तथा वाराणसी से राधा रानी की अष्टधातु की प्रतिमा मंगाकर 21 जनवरी 1828 स्थापित करायी।
32 मन 1280 किलो वजनी
श्री बंशीधर जी प्रतिमा कला के दृष्टिकोण से अति सुंदर एवं अद्वितीय है। बिना किसी रसायनिक के प्रयोग या अन्य पॉलिस के प्रतिमा की चमक पूर्ववत है। भगवान श्री कृष्ण शेषनाग के ऊपर कमल पीड़िका पर बंशीवादन नृत्य करते विराजमान हैं। भूगर्भ में गड़े होने के कारण शेषनाग दृष्टिगोचर नहीं होते हैं।
त्रिदेव के रूप में हैं श्री बंशीधर जी
श्री बंशीधर मंदिर के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों स्वरूप में हैं। मंदिर में स्थित प्रतिमा को गौर से देखने पर यहां भगवान के त्रिदेव के स्वरूप में विद्यमान रहने का अहसास होता है। यहां स्थित श्री बंशीधरजी जटाधारी के रूप में दिखाई देते हैं। जबकि शास्त्रों में श्रीकृष्ण के खुले लट और घुंघराले बाल का वर्णन है। इस लिहाज से मान्यता है कि श्रीकृष्ण जटाधारी अर्थात देवाधिदेव महादेव के रूप में विराजमान हैं। श्रीकृष्ण के शेषशैय्या पर होने का वर्णन शास्त्रों में मिलता है, लेकिन यहां श्री बंशीधर जी शेषनाग के उपर कमलपुष्प पर विराजमान हैं। जबकि कमलपुष्प ब्रह्मा का आसन है। इस लिहाज से मान्यता है कि कमल पुष्पासीन श्री कृष्ण कमलासन ब्रह्मा के रूप में विराजमान हैं। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं लक्ष्मीनाथ विष्णु के अवतार हैं इसलिये विष्णु के स्वरूप में विराजमान हैं। त्रिदेव के रूप में विराजमान भगवान सबकी मनोकामना पूरी करते हैं।
मंदिर में सालों भर देश ही नहीं विदेशी श्रद्धालुओं का भी लगा रहता है तांता
चुनार-चोपन-गढ़वा रोड रेलखंड और एनएच 39 (पहले 75) के किनारे पर बसे श्री बंशीधर नगर (नगर ऊंटारी) शहर के बीच में स्थित श्री बंशीधर मंदिर में दर्शन के लिये सालों भर देश ही नहीं विदेशी श्रद्धालुओं का भी तांता लगा रहता है। जो भी श्रद्धालु एक बार श्री बंशीधर जी की मोहिनी मूरत का दर्शन करता है, वह उनके प्रति मोहित हो जाता है। मंदिर में महाशिवरात्रि एवं श्रीकृष्ण जन्मोत्सव बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के मौके पर प्रसिद्व मेला लगता है जो एक माह तक चलता है।
श्री बंशीधर नगर में प्रतिवर्ष श्रीकृष्ण की जयंती जन्माष्टमी मथुरा एवं वृंदावन की तरह मनाई जाती है। इस मौके पर एक सप्ताह तक श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया जाता है जिससे श्री बंशीधर नगर सहित आस पास के गांवों का माहौल भक्तिमय हो जाता है। इस वर्ष भी यह आयोजन किया गया है और पूरा श्री वंशीधर नगर भगवान श्री कृष्णा की भक्ति में डूबा हुआ है।
उज्जैन, 26 अगस्त । विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन में आज (सोमवार को) श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। सुबह से सभी मंदिर सज गए हैं और बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचकर भगवान के दर्शन कर रहे हैं। भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली जहां भगवान ने 14 विद्याएं और 64 कलाएं सीखी थी, ऐसे सुप्रसिद्ध सांदीपनि आश्रम में जन्माष्टमी के भव्य आयोजन की तैयारियां की गई है।
सांदीपनि आश्रम के प्रमुख पुजारी पंडित रूपम व्यास ने बताया कि जन्माष्टमी के मौके पर सुबह 7:00 बजे से आश्रम में दर्शन का सिलसिला शुरू हो गया है। यहां रात्रि 11:00 बजे तक श्रद्धालु लाइन में लगकर भगवान के दर्शन कर सकेंगे। आश्रम में संस्कृति विभाग के माध्यम से भगवान कृष्ण की लीलाओं पर केंद्रित सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होंगे। रात्रि 10:30 बजे प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव जन्माष्ठमी पर्व में शामिल होंगे और भगवान का दर्शन, पूजन और अभिषेक करेंगे। मुख्यमंत्री डॉ यादव महाआरती में भी शामिल होंगे। श्रद्धालु रात्रि 1:00 बजे तक भगवान के दर्शन कर सकेंगे।
भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता के प्रसिद्ध स्थल नारायणा धाम, महिदपुर में भी कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हर्षोल्लास और उमंग के साथ मनाया जा रहा है। यहां 25 से 27 अगस्त तक मध्यप्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा श्री कृष्णा आख्यान की कला अभिव्यक्तियां थीम पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। आज यहां धार की श्वेता गुंजन जोशी और साथी द्वारा भक्ति गायन तथा मथुरा के गिरधर गोपाल शर्मा और साथी द्वारा रासलीला की प्रस्तुति दी जाएगी।
गोपाल मंदिर उज्जैन के प्रशासक अजय धनके ने बताया कि बाबा महाकाल की सवारी और कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व एक ही दिन होने से श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह हैं। इस शुभ अवसर पर सोमवार को शाम 6:00 बजे गोपाल मंदिर पर हरिहर मिलन होगा। रात्रि 10:00 बजे मुख्यमंत्री डॉ. यादव गोपाल मंदिर में भगवान का दर्शन करेंगे। रात्रि 12:00 बजे तक भगवान के दर्शन पूजन, अभिषेक और आरती की जाएगी। रात्रि 2:00 बजे तक भगवान के दर्शन के लिए मंदिर के पट खुले रहेंगे।
जन्माष्टमी पर इस्कॉन मंदिर उज्जैन में 25 से 27 अगस्त तक त्रिदिवसीय जन्माष्टमी उत्सव का आयोजन हो रहा है, जिसमें 26 अगस्त 2024 को जन्माष्टमी तथा 27 अगस्त 2024 को नंदोत्सव एवं इस्कॉन के संस्थापक आचार्य श्रील प्रभुपादजी का अविर्भाव तिथि महोत्सव अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए रात्रि 12 बजे तक मंदिर के पट खुले रहेंगे। पूरे दिन भजन कीर्तन चलते रहेंगे।
नगर का भ्रमण कर अपनी प्रजा का हाल जानेंगे अवंतिकानाथ, लोकनृत्य की होगी प्रस्तुति
उज्जैन, 26 अगस्त । विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग भगवान महाकालेश्वर की श्रावण-भाद्रपद मास में निकलने वाली सवारी के क्रम में आज भाद्रपद मास के प्रथम सोमवार को भगवान महाकाल की छठी सवारी धूमधाम से निकाली जाएगी। रजत पालकी में सवार होकर अवंतिकानाथ अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर का भ्रमण करेंगे। इस दौरान भगवान महाकाल छह स्वरूपों में भक्तों को दर्शन देंगे।
महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक गणेश कुमार धाकड ने बताया कि आज सोमवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का सुखद संयोग बना है। इस अवसर पर शाम चार बजे महाकालेश्वर मंदिर से बाबा महाकाल की छठी सवारी निकाली जाएगी। सवारी में भगवान महाकालेश्वर पालकी में श्री चंद्रमौलेश्वर के रूप में तथा हाथी पर मनमहेश के रूप में, गरुड़ रथ पर शिव तांडव तथा नंदी रथ पर उमा- महेश रूप में और डोल रथ पर श्री होल्कर स्टेट के मुखारविंद के साथ ही घटाटोप स्वरूप में सवार होकर अपने भक्तों को दर्शन देंगे।
उन्होंने बताया कि सवारी निकलने के पूर्व महाकालेश्वर मंदिर के सभा मंडप में भगवान श्री चन्द्रमौलेश्वर का विधिवत पूजन होगा। जिसके बाद भगवान श्री चन्द्रमोलेश्वर पालकी में विराजित होकर नगर भ्रमण पर निकलेंगे। मंदिर के मुख्य द्वार पर सशस्त्र पुलिस बल के जवानों द्वारा पालकी में विराजित भगवान को सलामी दी जाएगी। उसके बाद सवारी परंपरागत मार्ग महाकाल चौराहा, गुदरी चौराहा, बक्षी बाजार और कहारवाडी से होती हुई रामघाट पहुंचेगी, जहां माँ क्षिप्रा नदी के जल से भगवान का अभिषेक और पूजन-अर्चन किया जाएगा। इसके बाद सवारी रामानुजकोट, मोढ की धर्मशाला, कार्तिक चौक खाती का मंदिर, सत्यनारायण मंदिर, ढाबा रोड, टंकी चौराहा, छत्री चौक, गोपाल मंदिर, पटनी बाजार और गुदरी बाजार से होती हुई पुन: महाकालेश्वर मंदिर पहुंचेगी।
सवारी के साथ भजन मंडली के अलावा हजारों भक्त झांझ, मंजीरे, ढोल, डमरू बजाते हुए शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि भगवान महाकाल की सवारी में लोक संस्कृति के रंग भी नजर आएंगे। इस बार बैतूल के गोंड जनजाति के 50 से अधिक कलाकार ठाट्या नृत्य की प्रस्तुति देते हुए सवारी में शामिल होंगे। सवारी का सजीव प्रसारण मंदिर प्रबंध समिति के फेसबुक पर किया जाएगा। इसके साथ ही सवारी के अंत में चलित रथ में एलईडी के माध्यम से सवारी मार्ग में दर्शन हेतु खड़े श्रद्धालुओं को सजीव दर्शन की व्यवस्था की गई है। इस चलित रथ की विशेषता यह है कि इसमें लाइव बॉक्स रहेगा, जिससे लाइव प्रसारण निर्बाध रूप से होगा।
सवारी के दौरान श्रद्धालुओं से अपील है कि सवारी मार्ग में सड़क की ओर व्यापारीगण भट्टी चालू न रखें और न ही तेल का कड़ाहे रखें। दर्शनार्थी सवारी में उल्टी दिशा में न चलें और सवारी निकलने तक अपने स्थान पर खड़े रहें। दर्शनार्थी गलियों में वाहन न रखें। श्रद्धालु सवारी के दौरान सिक्के, नारियल, केले, फल आदि न फेंकें। सवारी के बीच में प्रसाद और चित्र वितरण न करें। इसके अलावा पालकी के आसपास अनावश्यक संख्या में लोग न रहें।
एक एकड़ क्षेत्रफल में बना है सैकड़ों साल पुराना राम दरबार का मंदिर
सैकड़ों साल पुराने मंदिर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव को लेकर तैयारियां शुरू
हमीरपुर। जिले में सदियों पुराने एक मंदिर की दीवालों में सम्पूर्ण महाभारत और श्रीकृष्ण लीला के प्रसंग चित्रित है। इस मंदिर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव को लेकर तैयारियां अब शुरू कर दी गई है। पूरे मंदिर को रंग रोशन कर चमकाया जा रहा है। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की रात पूरे गांव के लोगों की भीड़ जुटती है साथ ही मंगला आरती में महिलाएं और पुरुष शामिल होते है। मंदिर में जन्माष्टमी से लेकर छह दिनों तक रंगारंग कार्यक्रमों की धूम मचेगी।
मौदहा क्षेत्र के खंडेह गांव ब्रिटिश हुकूमत में प्रशासनिक व्यवस्था के लिए परगना बनाया गया था। सरकारी जिला गजेटियर में भी इस गांव का जिक्र है। वर्ष 1878 में खंडेह गांव नाना गोविन्द राव ने ब्रिटिश हुकूमत के हवाले किया था। पुरातन इतिहास में यह गांव पूर्व मुगल सल्तनत व आर्यों के जमाने में भी अस्तित्व में रहा है। इस गांव में काफी बड़े क्षेत्रफल में रामजानकी मंदिर बना है। मंदिर में ही अष्टधातु की राम जानकी व लक्ष्मण की भव्य मूर्तियां विराजमान है वहीं एक हिस्से में राधा श्रीकृष्ण की नयनाभिराम मूर्तियां विराजमान है।
मंदिर की देखरेख करने वाले सर्वराहकार प्रद्युम कुमार दुबे उर्फ लालू ने बताया कि इस पूरे मंदिर में नक्काशी बेमिसाल है। देवी देवताओं की मूर्तियों को बड़े ही अद्भुत तरीके सेतराशा गया है। उन्हाेंने बताया कि श्रीकृष्ण जन्मोत्सव को लेकर तैयारियां शुरू कर दी गई है। गांव के लोग सामूहिक रूप से जन्मोत्सव कार्यक्रम में शामिल होते है। मंगला आरती के बाद अगले दिन रामचरित मानस का अर्थ सहित सम्पूर्ण पाठ का आयोजन शुरू होगा जो लगातार 31 अगस्त तक चलेगा। समापन के दिन ही श्रीकृष्ण की छठी उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। रात में भक्ति मय संगीत संध्या कार्यक्रम होगा। इसके लिए लखनऊ से कलाकारों को बुलाया गया है।
मंदिर की दीवालों में महाभारत और श्रीकृष्ण लीला के चित्रित है प्रसंग
प्रद्युम दुबे उर्फ लालू व मंदिर के पुजारी राकेश बाजपेई ने बताया कि मंदिर के ग्रेनाइट पत्थर पर सम्पूर्ण महाभारत और श्रीकृष्ण लीला के प्रसंग चित्रित है। साथ ही रामकथा के प्रसंग भी चित्रित है। पुजारी ने बताया कि संगमरमर व ग्रेनाइट पत्थरों पर शिल्प और कला की नक्काशी बेमिसाल है। तमाम तरह के पत्थरों को मिलाकर पूरे मंदिर में निर्माण के दौरान इस तरह से सेट किए गए है किपत्थरों के जोड़ समझ से परे है। यह मंदिर एक एकड़ क्षेत्रफल में बना है। पूरा मंदिर एक ही पत्थर से बना नजर आता है।
सदियों पुराने मंदिर को चमकाने में अब पर्यटन डिपार्टमेंट ने डेरा डाला
सदियों पुराने मंदिर को चमकाने के लिए अब पर्यटन डिपार्टमेंट ने खंडेह गांव में डेरा डाला है। मंदिर के प्रमुख प्रद्युम दुबे ने बताया कि सीएम पर्यटन संवर्धन योजना के तहत पचास लाख रुपये की मंजूरी दी गई थी लेकिन सिर्फ इकतीस लाख रुपये ही रिलीज हुए। इस धनराशि से दोनों पुराने मंदिरों निर्माण कराए गए है। बताया कि शासन से मंदिर को संवारने के लिए 86 लाख रुपये मिले है। अब पर्यटन विभाग यहां कार्य करा रहा है। अभी तक पार्क सहित सत्तर फीसदी निर्माण कार्य कराए जा चुके हैं।
कोरबा। कोरबा तहसील के बेला ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम दुधीटांगर के जंगल में दिनांक 13 अगस्त 2024 को जिला पुरातत्व संग्रहालय कोरबा के मार्गदर्शक एवं संस्कार भारती छत्तीसगढ़ के प्राचीन कला विधा के प्रांतीय संयोजक हरि सिंह क्षत्री द्वारा अपने सहयोगी भगत कोरवा के साथ मिलकर मेसोलिथिक काल-ताम्रपाषाण युग की एक प्राचीन गुफा की खोज की गई है। उन्होंने इस गुफा में 45 से अधिक शैलोत्कीर्ण चित्रों को खोजा है।
इन चित्रों में हिरण, सांभर, कुत्ता, बकरी, तेंदुआ, सियार के अलावा पदचिन्ह और मानवाकृति सहित ज्यामितीय चित्र भी मिले हैं। गुफा चित्रों की खोज के दौरान हरिसिंह ने इसकी जानकारी विश्व के सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री के. के. मोहम्मद , कर्नाटक के वरिष्ठ पुरातत्वविद् रवि कोरीसेट्टार , वाकणकर शोध संस्थान उज्जैन के पदाधिकारी व पुरातात्विक जानकार श्रीमती विनीता देशपांडे एवं स्थापत्य कला विशेषज्ञ इंद्रनील बंकापुरे कोल्हापुर को वीडियो कॉल के माध्यम से दी है।
इन सभी जानकारों ने इन चित्रों को अत्यंत महत्वपूर्ण मानकर हरि सिंह क्षत्री को इसके डॉक्यूमेंटेशन करने के आवश्यक निर्देश दिए तथा आसपास पाषाण कालीन लघु उपकरणों की खोज करने के भी निर्देश दिए। खोज के दौरान माइक्रोलिथ भी मिला ।पद्मश्री के. के. मुहम्मद ने इन चित्रों को देखकर इसे मेसोलिथिक काल के होने की संभावना व्यक्त की जो लगभग ईसा पूर्व 4000 साल के हो सकते हैं । हरिसिंह द्वारा खोज की श्रृंखला में यह दूसरी गुफा है जिसमें इस प्रकार के चित्रों को खोजा गया है । इसके पूर्व दिनांक 25 नवंबर 2023 को बड़ी संख्या में ऐसे ही चित्रों की खोज हरिसिंह क्षत्री के द्वारा ग्राम पंचायत लेमरू के आश्रित ग्राम बढ़नी में की गई थी। जिसकी विधिवत् लिखित जानकारी कलेक्टर कोरबा को उनके द्वारा दी गई थी । इन दोनों शैलाश्रयों के बीच दूरी लगभग 30 किलोमीटर है, परंतु दोनों ही शैलाश्रयों के चित्रों में बहुत समानता है । विशेषज्ञों द्वारा दोनों ही शैलाश्रयों को मेसोलिथिक काल का माना जा रहा है।
कोरबा जिले में आदिमानवों के अनेक ठिकानों की खोज हरि सिंह क्षत्री द्वारा पूर्व में की गई है। जिसमें में 25 चित्रित शैलाश्रयों के अलावा सैंकड़ों की संख्या में अचित्रित शैलाश्रयों की खोज भी शामिल है। उनके द्वारा पाषाण कालीन उपकरणों की खोज भी की जाती रही है जिसे जिला पुरातत्व संग्रहालय कोरबा में प्रदर्शित किया गया है।
शैलाश्रयों में चित्रित शैलचित्र हमारे पूर्वजों के जीवन की गाथा होते हैं : हेमन्त माहुलीकर
संस्कार भारती छत्तीसगढ़ के प्रांतीय महामंत्री हेमन्त माहुलीकर ने बताया कि हरि सिंह क्षत्री विगत लगभग 30 वर्षों से पुरातात्विक धरोहरों की खोज में सक्रिय हैं। संस्कार भारती छत्तीसगढ़ के प्रयासों से वाकणकर शोध संस्थान उज्जैन ने गत वर्ष कोरबा जिले में हरि सिंह क्षत्री की खोजों पर आधारित एक पुस्तक “हसदेव घाटी की पुरातात्विक संपदा (प्रथम सोपान) प्रकाशित की थी। देश के अनेक प्रदेशों के पुरातत्ववेत्ताओं ने इस पुस्तक की सराहना की। इसके अंतर्गत कोरबा जिले के पुरातात्विक महत्व के 15 स्थानों का सचित्र वर्णन है। हमारे इतिहास को जानने हेतु ये शोध अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । शैलाश्रयों में चित्रित शैलचित्र हमारे पूर्वजों के जीवन की गाथा होते हैं । पाषाण कालीन गुफाओं और शैलाश्रयों का भारतीय इतिहास से तादात्म्य स्थापित करने में हरि सिंह क्षत्री सक्षम हैं , क्योंकि उन्होंने इस क्षेत्र का पर्याप्त अध्ययन किया है । इनकी अगली पुस्तक के प्रकाशन हेतु कार्य जारी है।
17वीं शताब्दी में मराठों ने करवाया था ज्वालेश्वर महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार, संभागायुक्त की रूचि से ढहने से बच गई ऐतिहासिक धरोहर
इंदौर । महेश्वर स्थित ऐतिहासिक प्राचीन धरोहर ज्वालेश्वर महादेव मंदिर के जीर्णोद्धार कार्य के लिए संभागायुक्त दीपक सिंह की रुचि और जिला प्रशासन खरगोन के प्रयासों और जनभागीदारी की पहल रंग ला रही है। 80 लाख रुपये जन भागीदारी से एकत्र कर इस प्राचीन धरोहर का जीर्णोद्धार कार्य तेज गति से हो रहा है, जो क्षेत्र में जनभागीदारी की अनूठी मिसाल बन रहा है। सामूहिक प्रयासों की यह पहल प्राचीन विरासत को लंबे समय तक संजोए रखने के सपने को मूर्त रूप प्रदान कर रही है। नदी के तट पर स्थित यह ऐतिहासिक धरोहर ढहने की कगार पर आ गई थी।
जनसम्पर्क अधिकारी मनीष गुप्ता ने गुरुवार को जानकारी देते हुए बताया कि महेश्वर एक धार्मिक, ऐतिहासिक, कलात्मक और स्थापत्य कला का केंद्र है। एक स्थानीय कहावत है नर्मदा नदी से निकलने वाला हर कंकर शंकर का रूप होता है। पवित्र रेवा नदी के किनारे बने इस शहर के प्रत्येक मंदिर का वर्णन पुराणों, शास्त्रों, टिकाओं और कविताओं में विस्तार से किया गया है। श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष के महीनों के दौरान भक्त नर्मदा देवी और भगवान शिव के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं। वैसे तो नर्मदा तट पर हजारों मंदिर है, लेकिन उनमें से कुछ मंदिरों का विशेष स्थान है जिसमें ज्वालेश्वर महादेव मंदिर का अपना विशेष स्थान और महत्व है, लेकिन ऐतिहासिक महत्व का ज्वालेश्वर मंदिर देख-रेख के अभाव में जर्जर हो रहा था। संभागायुक्त दीपक सिंह ने इस ऐतिहासिक धरोहर को संजोने के लिए रुचि ली और जिला प्रशासन और क्षेत्रवासियों के सहयोग से आज इस प्राचीन धरोहर का जीर्णोद्धार कार्य लगभग पूर्णता की ओर है। सामूहिक प्रयासों की परिणति रंग लाई। जन सहयोग से करीब 80 लाख रुपये की राशि से इस मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य ऐतिहासिक धरोहर को नया और दीर्घ जीवन देने वाला सिद्ध हुआ है।
उन्होंने बताया कि ज्वालेश्वर महादेव मंदिर एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है जो एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। इस मंदिर तक नर्मदा नदी के किनारे से एक छोटे से रास्ते से पहुंचा जा सकता है। पुराणों के अनुसार जब भगवान शिव ने एक ही बाण से त्रिपुरा के किले बंद शहर को नष्ट कर दिया था, तब उन्होंने इस स्थान पर नर्मदा देवी को अपने हथियार सौंपे थे। इस स्थान पर एक शिवलिंग प्रकट हुआ, जो सर्वोच्च ऊर्जा का प्रतीक है। यह भी कहा गया है कि भगवान शिव ने ज्वालेश्वर महादेव के रूप में प्रकट होकर जटाओं से गंगा की रक्षा की थी। वर्तमान में जो मंदिर दिखाई देता है उसका जीर्णोद्धार 17वीं शताब्दी में मराठों के मार्गदर्शन में किया गया था, जिसमें विस्तृत नक्काशीदार शिखर, दरवाजे एवं खिड़कियां तथा जटिल नक्काशीदार पैनल जैसे विशिष्ट वास्तु शिल्प का उदाहरण यहां देखने को मिलता है। यह मंदिर उत्कृष्ट घाटों और होलकर वास्तुकला का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। इस स्थान से महेश्वरी नदी और नर्मदा नदी का संगम भी देखा जा सकता है।
जन सहयोग के एकत्र 80 लाख रुपये से हो रहा जीर्णोद्धार कार्य
महेश्वर नगर के नर्मदा तट स्थित प्राचीन ज्वालेश्वर महादेव मंदिर के जीर्णोद्धार का लगभग पूरा हो चुका है। जीर्णोद्धार कार्य हेतु जनसहयोग से एकत्र करीब 80 लाख रुपए खर्च हुए है। मंदिर को नर्मदा नदी की बाढ़ से बचाने के लिए पत्थरों से 110 मीटर लंबाई के साथ 24 मीटर ऊंची व 4 मीटर चौड़ी गैबियन वाल बनाई गई है। जीर्णोद्धार कार्य में करीब डेढ़ करोड़ रुपये खर्च का अनुमान है। महाराष्ट्र के ठेकेदार पवन पवार का कहना है कि जनसहयोग से इस धरोहर को बचाना पुण्य का कार्य है। मंदिर निर्माण में लगने वाली सामग्री व धनराशि जनसहयोग से जुटाने को लेकर स्थानीय स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं।
जीर्णोद्धार कार्य की प्रगति का नियमित फालोअप लेते हैं संभागायुक्त
ज्वालेश्वर महादेव मंदिर के संरक्षण एवं संवर्धन को लेकर संभागायुक्त दीपक सिंह के मार्गदर्शन एवं कलेक्टर कर्मवीर शर्मा के निर्देशन में एसडीएम व तहसीलदार जीर्णोद्धार कार्य की प्रगति की नियमित मॉनिटरिंग तथा जनसहयोग की पहल में सहयोग कर रहे है। संभागायुक्त मंदिर क्षेत्र में जीर्णोद्धार कार्य का निरीक्षण कर प्रगति का जायजा ले चुके हैं तथा नियमित कार्य की प्रगति का फालोअप भी लेते है। दीपक सिंह ने बताया हमारा उद्देश्य है कि हम इस ऐतिहासिक धरोहर का संरक्षण करें। सामूहिक प्रयास से इस ऐतिहासिक धरोहर के जीर्णोद्धार का कार्य प्रारंभ किया गया। कार्य तीव्र गति से पूरा करने का लक्ष्य है।
जन सहयोग बना मिसाल
ज्वालेश्वर महादेव मंदिर के जीर्णोद्धार कार्य में प्रशासन, स्थानीय जनप्रतिनिधिगण, नागरिकों का सकारात्मक सहयोग एक मिसाल बना है। तहसीलदार राकेश सस्तिया, समाजसेवी शम्मी आमगा, अजय गुर्जर, दुर्गेश भालेकर, डेनिस मनोरे के साथ नगर के लोग मंदिर में सहयोग राशि देने के साथ सेवा भी दे रहे हैं। नर्मदा नदी में बाढ़ आने से पहले मंदिर संरक्षण का काम पूरा किये जाने के लक्ष्य के साथ समाजसेवी जमनादास सराफ, नटवरलाल सराफ, नितिन महाजन, राहुल महाजन, नप अध्यक्ष प्रतिनिधि गजराज यादव के अलावा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सेवा देने वाले लोग डंपर, जेसीबी मशीनों की मदद जन भागीदारी के रूप में कर रहे है।