सिंगर शान ने रियलिटी शोज की पर्दे के पीछे की सच्चाई से पर्दा उठाया | The Voice TV

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सिंगर शान ने रियलिटी शोज की पर्दे के पीछे की सच्चाई से पर्दा उठाया

Date : 11-Apr-2025

बॉलीवुड के चहेते गायक शान ने अपनी मधुर आवाज से कई सुपरहिट गानों के जरिए श्रोताओं के दिलों में खास जगह बनाई है। उन्होंने द वॉयस ऑफ इंडिया और सारेगामपा लिटिल चैंप्स जैसे पॉपुलर रियलिटी सिंगिंग शोज़ में बतौर जज भी शिरकत की है। हाल ही में एक इंटरव्यू में शान ने इन रियलिटी शोज़ से जुड़ी कुछ अनकही सच्चाइयों पर भी रौशनी डाली। रियलिटी शोज़ को लेकर लंबे समय से यह चर्चा होती रही है कि ये पूरी तरह स्क्रिप्टेड होते हैं और प्रतियोगियों के भावनात्मक पहलुओं को जबरदस्ती उभारने की कोशिश की जाती है। अब इस मुद्दे पर मशहूर गायक शान ने खुलकर अपनी राय रखी है। हाल ही में शान एक पॉडकास्ट में नज़र आए, जहां उन्होंने रियलिटी शोज की पर्दे के पीछे की सच्चाई से पर्दा उठाया।

शान ने बातचीत के दौरान बताया कि रियलिटी शो में जिस तरह से भावनाओं को पेश किया जाता है, वो कई बार काफी बनावटी और स्क्रिप्टेड लगता है। उन्होंने कहा, "2018 के बाद रियलिटी शोज़ की दुनिया में बहुत कुछ बदल गया है। अब टैलेंट से ज्यादा फोकस इमोशनल बैकस्टोरीज़ पर होने लगा है। कई बार प्रतियोगियों से उनके व्यक्तिगत दुख-दर्द को बार-बार दोहराने को कहा जाता है, ताकि दर्शकों की सहानुभूति हासिल की जा सके।" शान का मानना है कि ये प्लेटफॉर्म नए टैलेंट्स को सामने लाने के लिए ज़रूरी हैं, लेकिन इसमें भावनाओं की नाटकीयता और स्क्रिप्टेड प्लानिंग अब आम होती जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि असली बदलाव तभी आएगा जब रियलिटी शो में प्रतिभा को प्राथमिकता दी जाए, न कि ट्रैजिक कहानियों को।

शान ने कहा, "मैंने शुरू में कुछ शो टेस्ट किए थे। तब कंटेस्टेंट के गाने थोड़े ट्यून किए जाते थे, लेकिन अब वे पूरी तरह से डब किए जाते हैं। जब आप उन्हें सुनते हैं तो आपको अच्छा लगता है। जब आप वास्तव में उन्हें सुनते हैं, तो आपको पता चलता है कि वे कुछ अलग गा रहे हैं। कंटेस्टेंट स्टेज पर सिर्फ़ एक बार गाते हैं। लेकिन, बाद में, वे उन्हें रिकॉर्डिंग स्टूडियो में ले जाते हैं। और उन्हें फिर से गाने के लिए कहते हैं। और बाकी चीज़ें जो गलत थीं, उन्हें बदल देते हैं। इसलिए जब दर्शक सुनते हैं, तो उन्हें लगता है कि वे बहुत बढ़िया गा रहे हैं। उनकी धुन बिल्कुल नहीं बदलती, जो संभव नहीं है। पिछले कुछ सालों से ऐसा हो रहा है। जज भी ऐसे ही बैठते हैं। इसलिए उनकी टिप्पणियां भी साधारण होती हैं।"

 
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