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किसी भी व्यक्ति की वास्तविक स्थिति का ज्ञान उसके आचरण से होता हैं।

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शिक्षाप्रद कहानी:- कान का कच्चा

Date : 09-Mar-2024

 

दिन-दूनी रात चौगुनी उन्नति करके वर्धमान नगर का सबसे बड़ा सेठ कहलाने लगा। नगर के व्यापारियों में उसकी तूती बोलने लगी। निःसंदेह उसने यह सम्मान अपने व्यापारिक सलाहकार दन्तिल के परिश्रम से प्राप्त किया था। दन्तिल की सलाह से वह मिट्टी में भी हाथ डालता तो वहां से भी सोना निकलता। सेठ के साथ-साथ दन्तिल की भी नगर में अच्छी ख्याति फैल गई थी।
 
गोरम्भ, सेठ का एक विश्वसनीय नौकर था। वह सेठ के सोने के समय उसके पैर दबाता और उसके व्यापार में लगे कर्मचारियों के विरुद्ध जली-कटी बातों से उसके कान भरता। एक दिन फैक्ट्री के किसी कुशल कारीगर से उसकी कहा-सुनी हो गई। उसी समय दन्तिल निरीक्षण करते हुए वहां आ पहुंचा। उसने उस कारीगर का पक्ष लिया। गोरम्भ को अन्य कारीगरों  के सामने लज्जित होना पड़ा। गोरम्भ ने उस समय तो कुछ भी नहीं कहा, लेकिन मन-ही-मन उससे अपने अपमान का बदला लेने की ठान ली।
सेठ, गोरम्भ की भविष्यवाणी से चौंक पड़ा और उसने उत्सुकतावश पूछा- "क्या कहते हो गोरम्भ?"
 
गोरम्भ ने अपनी दृष्टि नीचे कर कहा - "दन्तिल साहब ने नदी पार जमीन खरीदी है। वहां वे बहुत बड़ी फैक्ट्री लगा रहे है और आपके सैकड़ों कारीगर उनके साथ जाने को तैयार हो गए हैं।"
 
'जो बात स्वार्थ में सनी होती है, उस पर बिना प्रमाण ही विश्वास हो जाता है।
 
गोरम्भ की बात सुनकर सेठ के पैरों तले से जमीन खिसक गई।
 
गोरम्भ तो चला गया पर सेठ की नींद उड़ गई। पूरी रात उसकी साख और सम्पन्नता की आशंका उसे घेरे रही। सपने में भी सेठ ने अपनी जगह दन्तिल को बैठे पाया। भोर होते-होते सेठ को बुखार ने दबोच लिया और लगभग एक सप्ताह वह बिस्तर पर पड़ा रहा। सारा काम दन्तिल देखता और शाम को सेठ को ब्यौरा दे जाता। ये ब्यौरा जो कुछ गोरम्भ देता उससे भिन्न होता ।
सेठ ने अनिश्चितता प्रकट की- "कहीं पुलिस तक...।" सेठ वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया था कि अंगरक्षक ने नो आश्वासन देते हुए कहा - "आपके ऊपर आंच नहीं आने दूंगा ।"
 
स्वार्थमय विचार सांसारिक जीवन को अत्यधिक सुख पहुंचाते हैं। सेठ इस निंदनीय कृत्य के लिए सहमत हो गया।
 
उसी रात दफ्तर से घर पहुंचने से पहले चार व्यक्तियों ने दन्तिल को अनाज के खाली बोरे में बंद कर दिया। बोरे को बैलगाड़ी में डाल कर घने अंधकार में शहर से दूर ले गए। शहर से कुछ किलोमीटर दूर खण्डहरों में एक पुराना कुआं था। अपना निशान न छोड़ने का उन्होंने अच्छा उपाय सोचा। उसे इसी कुएं में डालकर तुरंत लौट गए। कुएं के बारे में वे नहीं सोच पाए कि उसमें कितना पानी है। कुएं में कम पानी था। जब उन्होंने उसे कुएं में फेंका तो बोरी का मुंह खुल गया और पानी के स्पर्श से थोड़ी देर में दन्तिल की बेहोशी जाती रही,
किंतु समस्या थी कि इतने गहरे कुएं से बाहर कैसे निकला जाए। वह अपनी रक्षा के लिए चिल्लाने लगा।
 
उसी रात सेठ के घर में चोरी हुई। चोरी का माल लेकर भागते हुए चोरों का पहला पड़ाव यही खण्डहर था। चोरों ने दन्तिल की आवाज सुनी। उन्होंने दन्तिल को बाहर निकाला। चोरों ने दन्तिल को पहचान लिया। चोर बनने से पहले ये लोग सेठ की फैक्ट्री में ही काम करते थे। उन्हें भी गोरम्भ ने चोरी का आरोप लगाकर निकलवा दिया था। कारीगरों के साथ दन्तिल का व्यवहार बहुत अच्छा था। यही कारण था दिनों से कि इतने वह सभी अन्य फैक्ट्रियों से अपेक्षाकृत अधिक उत्पादन का दिन निकाल रहा था। अन्य अधिकारी उसकी लगन, मेहनत और ख्याति से ईर्ष्या करने लगे थे।
 
दन्तिल की दुख भरी कथा सुनकर चोर सब कुछ समझ गए। गोरम्भ का ही हाथ इसके पीछे रहा होगा। दन्तिल के  प्रति उनकी सहानुभूति का सोता फूट पड़ा। चोरों की दुश्मनी गोरम्भ के साथ कुछ विशेष ही थी। उन्होंने एक योजना बनाई। चोरी किया सेठ का सामान गोरम्भ के घर में रख आए और उसकी चप्पलें सेठ के मकान की उस दीवार से नीचे डाल आए जहां से चढ़कर उन्होंने चोरी की थी।
 
प्रातः काल होते ही सिपाहियों ने चप्पलें पहचान कर गोरम्भ के घर छापा मारा और सारा माल बरामद किया। एक साथ कई घटनाओं के घटित होने से सेठ घबरा गया। गोरम्भ के पकड़े जाने के बाद कहीं वह भी न फंस जाए। मुसीबत जब आती है तो कहकर नहीं आती। वैसा ही हुआ। दन्तिल की पत्नी ने रिपोर्ट लिखाई कि उसके पति रात को घर नहीं पहुंचे। चोरों ने दन्तिल को कुछ दिन गुप्त स्थान पर रखा और पूरे शहर में यह बात फैला दी कि सेठ ने दन्तिल की हत्या करवा  दी है। अफवाह ईर्ष्यालु लोगों का समर्थन पाती हुई दन्तिल की मेरी पत्नी और फिर पुलिस तक पहुंची। सेठ को पूछताछ के लिए पकड़ लिया गया। संदेह सत्य में बदल गया। सेठ ने कबूल  किया कि उसने अपने अंगरक्षकों से यह काम करवाया है। न कुछ दिन बाद चोरों ने दन्तिल को छोड़ दिया। सारी फैक्ट्री में  खुशियां मनाई गईं। दन्तिल ने सेठ और गोरम्भ को जेल से छुड़वा दिया, पर स्वयं अपने बच्चों के साथ नगर छोड़कर जाने लगा। सेठ कर्तव्यनिष्ठा, कर्मठता और सच्चाई के आगे झुक गया। क्षणिक स्वार्थ के वश और कान का कच्चा होने पर उसने हीरे को पत्थर समझ लिया था। वह दन्तिल के आगे गिड़गिड़ाया, उसे अधिकतम वेतन का आश्वासन देते हुए रोकने की कोशिश की, किंतु सब व्यर्थ । सेठ में अच्छे-बुरे को समझने का ज्ञान पैदा हो गया। उसने दन्तिल को तो खोया, पर गोरम्भ जैसों को कभी क्षमा नहीं किया।
 
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