Quote :

किसी भी व्यक्ति की वास्तविक स्थिति का ज्ञान उसके आचरण से होता हैं।

Editor's Choice

देश की 771 कंपनियों ने 11,484 करोड़ के बॉन्ड खरीदे, 22 कंपनियों ने ही 50% चंदा दिया

Date : 23-Mar-2024

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने 21 मार्च को इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ा पूरा डेटा इलेक्शन कमिशन को सौंपा, जिसके बाद आयोग ने इसे पब्लिक किया। इसमें बैंक ने बॉन्ड का अल्फा न्यूमेरिक नंबर भी बताए गए। इससे पता चला है कि किस कंपनी ने किस सियासी दल को कितना चुनावी चंदा दिया।

SBI के डेटा के मुताबिक, कुल 1263 खरीददार थे। इन्होंने 12,155 करोड़ के बॉन्ड खरीदे। इनमें 771 कंपनियों ने 11,484 करोड़ के बॉन्ड खरीदे। इसमें आधी रकम शीर्ष 22 कंपनियों से आई हैं। इनके कारोबार ट्रेडिंग, खनन, धातु, रियल एस्टेट, निर्माण, ऊर्जा और दूरसंचार से लेकर फार्मास्युटिकल्स तक फैले हैं।

ट्रेडिंग सेक्टर से जुड़ी कंपनियों ने सबसे ज्यादा 2955 करोड़ रुपए सियासी दलों को दिए हैं। इनमें सबसे ज्यादा 963 करोड़ रुपए भाजपा को मिले हैं।

सबसे ज्यादा चंदा देने वाली कंपनियों में दूसरे नंबर पर रही मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने अक्टूबर 2020 में 20 करोड़ रुपए का चुनावी चंदा दिया था। एजेंसी के मुताबिक, इसी साल अक्टूबर-नवंबर में कंपनी को 4 हजार 500 करोड़ की लागत वाली एशिया की सबसे लंबी जोजिला पास टनल का ठेका मिला।

 मार्च 23 में इस कंपनी को बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में बुलेट ट्रेन स्टेशन बनाने के लिए 3,681 करोड़ रु. का प्रोजेक्ट मिला। अप्रैल 2023 में कंपनी ने 140 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे। नवंबर 2019 में ही कंपनी को आंध्र में 4,358 करोड़ रुपए के पोलावरम प्रोजेक्ट का ठेका मिला।

इसके ठीक पहले अक्टूबर 2019 में कंपनी ने 5 करोड़ रुपए के चुनावी बॉन्ड खरीदे थे। चुनाव आयोग द्वारा जारी चुनावी चंदे की रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में कंपनी ने कुल 130 करोड़ के बॉन्ड खरीदे, जिसमें 125 करोड़ रुपए भाजपा और 5 करोड़ रुपए कांग्रेस को दिए थे।

कमाई कम, चुनावी बॉन्ड ज्यादा के खरीदे

SBI के डेटा के मुताबिक, कई कंपनियां हैं, जिन्होंने मुनाफे से कहीं ज्यादा चंदा दिया। सबसे ज्यादा 1,368 करोड़ रुपए चुनावी चंदा देने वाली फ्यूचर गेमिंग का शुद्ध मुनाफा 2020 से 2024 के बीच महज 215 करोड़ रुपए था।

क्विक सप्लाई चेन प्राइवेट लिमिटेड ने वित्त वर्ष 2023 में अपनी कमाई 22 करोड़ रुपए के मुकाबले 410 करोड़ रुपए के चुनावी बॉन्ड खरीदे। ADR के संस्थापक सदस्यों में शामिल जगदीप छोकर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इसकी जांच हो। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने दावा किया कि 1,751 करोड़ का चुनावी चंदा उन कंपनियों ने दिया, जिनको भाजपा की सरकारों ने करीब 62 हजार करोड़ रु. के ठेके दिए थे।

मालिक पीवी रेड्डी 54वें सबसे रईस- 1989 में नगर पालिका को छोटे पाइप सप्लाई के लिए कंपनी की स्थापना की। फिर बांध, पावर प्लांट जैसे इंफ्रा प्रोजेक्ट में विस्तार। रेड्डी 28 हजार 400 करोड़ के साथ 54वें सबसे रईस।

3 साल में राजस्व डेढ़ गुना- कंपनी का 31 मार्च 2023 में कुल राजस्व 31,766 करोड़ रुपए था। पिछले साल से 10% ज्यादा। कंपनी का शुद्ध मुनाफा 2,797 करोड़ करोड़ रुपए था। पिछले साल से यह 7.5% ज्यादा रहा। 2020 में कंपनी का राजस्व 19,616 करोड़ और शुद्ध 1,712 करोड़ रुपए था।

2019 में सवा लाख करोड़ का बड़ा प्रोजेक्ट मिला- 2019 में तेलंगाना में देश के सबसे बड़े लिफ्ट एरिगेशन प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। इसकी लागत 1.17 लाख करोड़ रु. थी। मेघा को रक्षा मंत्रालय से भी 500 करोड़ का प्रोजेक्ट मिला। इसमें कंपनी रेडियो रिले संचार उपकरण कंटेनर उपलब्ध कराएगी। कंटेनर की डिलीवरी 2023-24 में ही होनी थी।

लॉटरी किंग कभी दिहाड़ी मजदूरथे- 2001 में मार्टिन रोजाना 1.2 करोड़ लॉटरी टिकट बेचने लगे। 2003 में जयललिता ने लॉटरी बैन की। 2011 में फिर सत्ता में आईं। कुछ माह बाद ही उन्होंने मार्टिन को गिरफ्तार करवा दिया।

बिजनेस से सलाखों तक- कंपनी के संस्थापक सेंटियागो मार्टिन लॉटरी किंग के नाम से मशहूर। म्यांमार के दिहाड़ी मजदूर थे। तमिलनाडु में चाय की दुकान चलाई। लॉटरी टिकट बिजनेस से तरक्की।

30 से ज्यादा केस दर्ज- मार्टिन पर केरल में लॉटरी धोखाधड़ी के 30 से ज्यादा मामले हैं। राज्य की आर्थिक अपराध यूनिट मार्टिन की 450 करोड़ रु. की बैंक डिपॉजिट जब्त कर चुकी है।

बैलेंसशीट से बैलेंसगायब- 2021-22 में राजस्व ~20 हजार करोड़ था। 2020 से 2023 के बीच कंपनी का शुद्ध लाभ महज 215 करोड़ रु. ही रहा। इसके बावजूद 2020 से 2024 के बीच सबसे ज्यादा 1,365 करोड़ रु. का चुनावी चंदा दिया था यानी लाभ से 6 गुना ज्यादा।

10 नवंबर 2022 को ED ने दिल्ली सरकार की शराब नीति में गड़बड़ियों से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में अरबिंदो फार्मा के निदेशक पी सरथ चंद्र रेड्डी को गिरफ्तार किया। पांच दिन बाद 15 नवंबर को अरबिंदो फार्मा ने इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में 5 करोड़ रुपए दान किए।

नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड ने अक्टूबर 2018 में इनकम टैक्स के छापे के 6 महीने बाद अप्रैल 2019 में 30 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे।

7 दिसंबर 2023 के रामगढ़ में रूंगटा संस प्राइवेट लिमिटेड की 3 यूनिट पर आयकर विभाग ने छापा मारा। 11 जनवरी 2024 को कंपनी ने 1 करोड़ रुपए के 50 इलेक्टोरल बांड खरीदे। इससे पहले फर्म ने केवल अप्रैल 2021 में दान दिया था।

हैदराबाद की शिरडी साईं इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड पर 20 दिसंबर 2023 को इनकम टैक्स का छापा पड़ा। 11 जनवरी 2024 को कंपनी ने 40 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बांड खरीदे।

नवंबर 2023 में आयकर अधिकारियों ने कथित नकद लेनदेन के लिए रेड्डीज लैब्स के एक कर्मचारी के यहां छापा मारा। छापे के ठीक बाद कंपनी ने 31 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे। इसके बाद इस कंपनी ने नवंबर 2023 में 21 करोड़ रुपए के और जनवरी 2024 में 10 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे, जो कुल मिलाकर 84 करोड़ रुपए होते हैं।

इलेक्टोरल बॉन्ड्स से जुड़े केस में अब तक क्या हुआ...

 18 मार्च 2024 : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार  को SBI से कहा कि वह इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी हर जानकारी 21 मार्च तक दे। सुप्रीम कोर्ट ने नए आदेश में उन यूनीक बॉन्ड नंबर्स के खुलासे का भी आदेश दिया। कोर्ट ने कहा- 21 मार्च की शाम 5 बजे तक SBI के चेयरमैन एक एफिडेविट भी दाखिल करें कि उन्होंने सारी जानकारी दे दी है।

15 मार्च 2024 : सुप्रीम कोर्ट ने SBI को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने कहा कि 11 मार्च के फैसले में कहा गया था कि बॉन्ड की पूरी डिटेल दी जाए, लेकिन SBI ने यूनीक अल्फा न्यूमेरिक नंबर्स का खुलासा नहीं किया। बेंच ने कहा था कि SBI 18 मार्च तक नंबर की जानकारी नहीं दिए जाने का जवाब दे।

11 मार्च 2024 : इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने से जुड़े केस में SBI की याचिका पर 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी। SBI ने कोर्ट से कहा था- बॉन्ड से जुड़ी जानकारी देने में हमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसके लिए कुछ समय चाहिए। इस पर CJI ने पूछा था- पिछली सुनवाई 15 फरवरी से अब तक 26 दिनों में आपने क्या किया?

4 मार्च 2024 : SBI ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई। इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी देने के लिए 30 जून तक का वक्त मांगा था। इसके अलावा कोर्ट ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की उस याचिका पर भी सुनवाई की, जिसमें 6 मार्च तक जानकारी नहीं देने पर SBI के खिलाफ अवमानना का केस चलाने की मांग की गई थी।

15 फरवरी 2024 : सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक फंडिंग के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था- यह स्कीम असंवैधानिक है। बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है। यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।

2 नवंबर 2023: सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम केस में फैसला सुरक्षित रख लिया। हालांकि, अगली सुनवाई की तारीख नहीं बताई गई। कोर्ट ने पार्टियों को मिली फंडिंग का डेटा नहीं रखने पर चुनाव आयोग से नाराजगी जताई। साथ ही आयोग से राजनीतिक दलों को 30 सितंबर तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिली रकम की जानकारी जल्द से जल्द देने का निर्देश दिया है।

1 नवंबर 2023: सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता आई है। चंदा देने वाले नहीं चाहते कि उनके दान देने के बारे में दूसरी पार्टी को पता चले। इससे उनके प्रति दूसरी पार्टी की नाराजगी नहीं बढ़ेगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसी बात है तो फिर सत्ताधारी दल विपक्षियों के चंदे की जानकारी क्यों लेता है? विपक्ष क्यों नहीं ले सकता चंदे की जानकारी?

31 अक्टूबर 2023: प्रशांत भूषण ने दलीलें रखी थीं। उन्होंने कहा था कि ये बॉन्ड केवल रिश्वत हैं, जो सरकारी फैसलों को प्रभावित करते हैं। अगर किसी नागरिक को उम्मीदवारों, उनकी संपत्ति, उनके आपराधिक इतिहास के बारे में जानने का अधिकार है, तो उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि राजनीतिक दलों को कौन फंडिंग कर रहा है?

विवादों में क्यों आई चुनावी बॉन्ड स्कीम-

अरुण जेटली ने 2017 में इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। वहीं, विरोध करने वालों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।

बाद में योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।

बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload









Advertisement