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26 जयंती विशेष:-काव्य जगत की "आधुनिक मीरा" महादेवी वर्मा

Date : 26-Mar-2024

  महादेवी वर्मा एक ऐसी कवयित्री हैं, जिन्होंने भारत के गुलामी और आजादी दोनो के दिन देखकर साहित्यिक रचनाएं की है। इनके परिवार में पहले कई पीढ़ियों से लड़कियां नहीं हुई इस कारण जब ये पैदा हुई तो इनके दादाजी बाबा बाबू बाँके विहारी जी ने इनको घर के देवी मानते हुए इनका नाम महादेवी रख दिया। 

महादेवी वर्मा के पिता जी गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर जिले के एक महाविद्यालय में प्राध्यापक थे। इनकी माताजी हिंदू धर्म के सिंहासनासीन भगवान की पूजा अर्चना किया करती थी। इनका संपूर्ण परिवार रामायण, गीता का पाठ किया करता था।
हिंदी साहित्य के अपने जीवन काल में छायावादी युग को अपने अनुसार डाल और उस युग में इनके साथी सुमित्रानंदन पंत और निराला जी को इन्होंने अपना भाई माना और उनको राखी भी बांधती थी।
 
महादेवी वर्मा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल इंदौर से की और उन्होंने चित्रकला, संस्कृत, अंग्रेजी की पढ़ाई घर पर रहकर की। विवाह के कारण महादेवी वर्मा की शिक्षा में थोड़ी रुकावट आए लेकिन विवाह के बाद उन्होंने क्रास्थवेट कॉलेज, प्रयागराज में दाखिला लिया और हॉस्टल में ही रहने लगी। इन्होंने 1921 में आठवीं बोर्ड 1925 में 12वीं कक्षा पास की। 1932 में इन्होंने प्रयागराज विश्वविद्यालय से m.a. किया और इनकी दो कविता संग्रह रश्मि और विहार इस उम्र में प्रकाशित हो चुके थे।
महादेवी वर्मा का विवाह 1916 में नवाबगंज गंज कस्बे के स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया। लेकिन उस समय स्वरूप नारायण जी दसवीं कक्षा में थे और महादेवी वर्मा उस समय छात्रावास में रहती थी इस कारण इनके बीच जो संबंध था वह मधुर बना रहा और कभी-कभी यह पत्रों से आपस में बातचीत भी किया करते थे। इनके पति की मृत्यु 1966 में हुई जिसके बाद यह इलाहाबाद में ही रहने लगी।
 
महादेवी वर्मा के काव्य की भाषा शैली और शब्दावली
इन्होंने अपनी कविता में खड़ी बोली का प्रयोग किया और इतने कोमलता से किया की वे पहले ब्रज भाषा में ही किया गया लेकिन इन्होंने खड़ी बोली को चुना। इनके काव्य में संस्कृत से पढ़ी होने के कारण संस्कृत के शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। और इन्होंने बंगला भाषा से भी अपना जुड़ाव दिखाया है।
महादेवी वर्मा का काव्य गीतिकाव्य है उनके काव्य में दो सहेलियां प्रमुखत चित्र शैली, प्रगति शैली हैं। महादेवी वर्मा की भाषा शुद्ध साहित्य खड़ी बोली है।
 
महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं
 
कविता संग्रह
महादेवी वर्मा के आठ कविता संग्रह है जिनमे निहार 1930 में, रश्मि 1932 में, सांध्यगीत 1936 में, दीपशिखा 1942 में सप्तपर्णा को अनूदित है 1959 में प्रथम आयाम 1974 मेंं अग्निरेखा 1990 में प्रकाशित हुए।
 
काव्य संकलन
देवी वर्मा जी के 10 से ज्यादा काव्य संकलन प्रकाशित हुए जिनमें से निम्न है।
आत्मिका, निरन्तरा, परिक्रमा, सन्धिनी 1965 में यामा 1936 में गीतपर्व, दीपगीत, स्मारिका और हिमालय उल्लेखनीय है।
 
रेखाचित्र
महादेवी वर्मा के प्रमुख रेखा चित्रों में अतीत के चलचित्र 1941 में और स्मृति की रेखाएं 1943 में श्रृंखला की कड़ियां और मेरा परिवार उल्लेखनीय है।
 
संस्मरण
महादेवी वर्मा ने 1956 में पद का साथी और 1972 में मेरा परिवार स्मृति चित्रण 1973 में और संस्मरण 1983 में उल्लेखनीय संस्मरण लिखे।
 
निबंध संग्रह
महादेवी वर्मा के प्रमुख निबंध संग्रह में श्रृंखला की कड़ियां 1942 में प्रकाशित हुई और विवेचनात्मक गद 1942 साहित्यकार की आस्था और अन्य निबंध 1962 संकल्प ता 1969 और भारतीय संस्कृति के स्वर उल्लेखनीय है। क्षणदा महादेवी वर्मा का एकमात्र ललित निबंध ग्रंथ है। महादेवी वर्मा के प्रमुख कहानी संग्रह में गिल्लू प्रमुख है। इनका संभाषण नामक भाषण संग्रह 1974 में प्रकाशित हुआ।
 
महादेवी वर्मा के कविता संग्रह
देवी वर्मा के प्रमुख कविता संग्रह में ठाकुरजी भोले हैं और आज खरीदेंगे हम ज्वाला प्रमुख है।
 
महादेवी वर्मा को मिली प्रमुख पुरस्कार और सम्मान
महादेवी वर्मा को 1943 में मंगलाप्रसाद पारितोषिक भारत भारती के लिए मिला। महादेवी वर्मा को 1952 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए मनोनीत भी किया गया। 1956 में भारत सरकार ने साहित्य की सेवा के लिए इन्हें पद्म भूषण भी दिया। महादेवी वर्मा को मरणोपरांत 1988 में पद्म विभूषण पुरस्कार दिया गया। महादेवी वर्मा को 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय, 1977 में कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल, 1980 में दिल्ली विश्वविद्यालय तथा 1984 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने इनको डी.लिट (डॉक्टर ऑफ लेटर्स) की उपाधि दी। महादेवी जी को 1934 में नीरजा के लिए सक्सेरिया पुरस्कार दिया गया। 1942 में स्मृति की रेखाएं के लिए द्विवेदी पदक दिया गया। यामा के लिए महादेवी वर्मा को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।
 
महादेवी वर्मा के बारे में रोचक तथ्य 
 
इनका बाल विवाह किया गया लेकिन इन्होंने अपना जीवन अविवाहित की तरह ही गुजारा। महादेवी वर्मा की रुचि, साहित्य के साथ साथ संगीत में भी थी। चित्रकारिता में भी इन्होंने अपना हाथ आजमाया। महादेवी वर्मा का पशु प्रेम किसी से छुपा नहीं है वह गाय को अत्यधिक प्रेम करती थी। महादेवी वर्मा के पिताजी मांसाहारी थे और उनकी माताजी शुद्ध शाकाहारी थी। महादेवी वर्मा कक्षा आठवीं में पूरी प्रांत में प्रथम स्थान पर रही। महादेवी वर्मा इलाहाबाद महिला विद्यापीठ की कुलपति और प्रधानाचार्य भी रही। यह भारतीय साहित्य अकादमी की सदस्यता ग्रहण करने वाली पहली महिला थी जिन्होंने 1971 में सदस्यता ग्रहण की।
 
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