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फगुआ का बीटिंग रिट्रीट है 'रंगपंचमी'

Date : 01-Apr-2024

इधर इंदौर के राजवाड़े में जैसे रंगपंचमी के दिन हुरियारों का धमाल रहता है वैसे ही उधर बनारस में 'बुढ़वा मंगल' की मस्ती। संकटमोचन बजरंगी  मंदिर का प्रागंण हुरियाए भक्तों से भरा रहता है। बुढवा मंगल एक तरह से वसंत से आरंभ होने वाले होली के रंगोत्सव के समापन का ऐलान है। इसे आप फगुआ का बीटिंग रिट्रीट भी कह सकते हैं। 

'बुढ़वा मंगल'भी कुछ ऐसा ही है। होली प्रकृति के उल्लास का विलक्षण लोकपर्व है। वसंत से ही फगुनाहट महसूस होने लगती है। हमारे गाँव में वसंत पंचमी के दिन तालाब की मेड़ पर मेला भरता है। जब हम बच्चे थे तो हमें उस दिन बगीचे के आम की बौर, गेहूं, जौ की बाली और गन्ना ये सब ले जाकर शंकरजी को चढ़ाना होता था। लोकमान्यता थी कि ऐसी पूजा अर्चना करने से हमारा समाज धनधान्य से संपन्न होता था।


वैसे यह दिन बजरंगबली को समर्पित होता है। बजरंगबली जाग्रत लोक देवता हैं। गरीब-गुरबों के भगवान। उत्तर भारत में इस दिन हनुमानजी के साथ रंग खेला जाता है। फाग भी भजन की तरह होती है। बजरंगबली की महिमा का वर्णन, खासतौर पर लंकाकांड से जुड़े ढेरों फाग हैं। एक फाग की कुछ पंक्तियां याद हैं कँह पाए महवीरा मुदरी कहँ पाए महबीरा लाल..., या अंगद अलबेला लंका लड़ैं अकेला। 
 बुढ़वा मंगल के दिन भी बड़े बुजुर्गों के चरणोंमें गुलाल लगाकर वर्ष भर के लिए आशीष सहेजते हैं। तब हम बच्चे जाति-पाँति से ऊपर गांव के सभी बड़े बुजुर्गों के चरणों में अबीर लगाकर कहते थे..अइसन काका सब दिन मिलैं, अइसन बाबा सब दिन मिलैं..। वो आशीष देते कि अइसन नाती जुग-जुग जियै..। गांव के जिन बुजुर्गों के पाँव  छूने के रिश्ते नहीं  थे उन्हें भी अबीर भेंटकर रिश्तों की दुहाई के साथ मंगलकामना करते थे।
 
 
लेखक - जयराम शुक्ल
 

 

 
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