Quote :

किसी भी व्यक्ति की वास्तविक स्थिति का ज्ञान उसके आचरण से होता हैं।

Editor's Choice

12अप्रैल विशेष:- अपने साहस और तप के लिए जाना जाने वाले राणा सांगा के प्रेरक तथ्य

Date : 12-Apr-2024

मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के दादा महाराजा संग्राम सिंह एक साहसी राजपूत योद्धा थे। महाराणा संग्राम सिंह की आज जयंती मनाई जा रही है। संग्राम सिंह का जन्म 12 अप्रैल 1484 को राजस्थान के मालवा मेवाड़ जिले में हुआ। महाराणा संग्राम सिंह के दादा का नाम राणा कुंभा था, जो अपने समय के सबसे शक्तिशाली राजपूत राजा रहे थे। महाराणा संग्राम सिंह के पिता राजपूत शासक राणा रायमल थे। वह राजपूतों के सिसोदिया वंश के राजा थे। महाराणा संग्राम सिंह को राणा सांगा के नाम से भी जाना जाता है। आइये जानते हैं राणा सांगा के बारे में कुछ रोचक तथ्य।

 महाराणा संग्राम सिंह एक तेजतर्रार राजपूत राजा थे जो अपने साहस और तप के लिए जाने जाते थे। राणा सांगा सिसोदिया वंश के थे और उनका जन्म 12 अप्रैल 1482 को राजस्थान में हुआ था। महाराणा संग्राम सिंह राणा सांगा के नाम से लोकप्रिय थे।

 

राणा सांगा का विवाह रानी कर्णावती से हुआ था। राणा सांगा के चार पुत्र थे, जिनका नाम भोज राज, रतन सिंह द्वितीय, विक्रमादित्य सिंह और उदय सिंह द्वितीय था। 43 वर्ष की आयु में 30 जनवरी 1528 को उनका निधन हो गया। उनको खाने में जहर दिया गया था। 

 

महाराजा संग्राम सिंह राणा कुंभा के पोते और राणा रायमल के पुत्र थे। राणा सांगा की माता का नाम रानी रतन कुंवर था। रायमल के तीन पुत्रों (पृथ्वीराज और जयमल) में राणा सांगा सबसे छोटे थे। हालांकि, परिस्थितियों के कारण उन्होंने अपने भाइयों के साथ एक भयंकर संघर्ष किया।

राणा सांगा के पिता राणा रायमल ने सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में मेवाड़ पर शासन किया। वह एक दयालु और बहादुर राजा थे, जिन्होंने अपने राज्य के गौरवशाली इतिहास और परंपरा को कायम रखा। उनके तीन बेटे संग, पृथ्वीराज सीसोदिया और जयमल सीसोदिया अक्सर सिंहासन के उत्तराधिकार बनने के लिए एक-दूसरे से झगड़ते थे।

महाराणा संग्राम सिंह ने 1508 में अपने भाइयों के साथ उत्तराधिकार की लड़ाई लड़ी, जिसके बाद वह मेवाड़ के राजा बने। इस लड़ाई में उनकी एक आंख चली गई। राणा सांगा ने 1528 तक शासन किया। महाराणा संग्राम मध्ययुगीन भारत के अंतिम शासक थे, जिन्होंने कई राजपूत राज्यों को एकजुट किया। 

राणा सांगा मेवाड़ के राजा थे, जिन्हें कई राजपूत कुलों के पुनर्मिलन और एक मजबूत राजपूत संघ बनाया। एक राजा का पुत्र होने के बावजूद, राणा सांगा के लिए कई चीजें आसान नहीं थीं। उन्हें अपने भाइयों के साथ तनावपूर्ण संबंधों और अपने भरोसेमंद नेतृत्व के विश्वासघात सहित कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। 

सिंहासन पर चढ़ने के बाद, राणा सांगा ने राजपुताना के सभी राजाओं के कूटनीति और वैवाहिक गठबंधनों के माध्यम से फिर से जोड़ा। मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने बाबरनामा में लिखा है कि दक्षिण में विजयनगर साम्राज्य के कृष्णदेवराय और हिंदुस्तान में राणा सांगा से बड़ा कोई महान शासक नहीं है। 

राणा सांगा ने अपने जीवन काल में 100 से अधिक लड़ाई लड़ी थी, जिसमें वह 99 बार जीते थे और केवल एक बार हार गए थे। विभिन्न संघर्षों में उनके शरीर पर 80 से अधिक घाव थे। राणा सांगा ने इन युद्ध में अपनी एक कलाई और एक पैर भी गंवा दिया था। 

इतने चोटिल होने के बाद भी राणा सांगा ने दिल्ली, मालवा और गुजरात के गुजरात के सुल्तानों को 18 लड़ाइयों में हराया। जिसके बाद राणा सांगा का साम्राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात और अमरकोट से आगे तक भी फेल गया था।

खतोली की लड़ाई 1518 में इब्राहिम लोदी के खिलाफ लड़ी गई थी दोनों सेनाएं हरवती (हरौती) की सीमा पर खतोली गांव के पास मिलीं। सुल्तान की सेना ने हार मान ली और पांच घंटे की लड़ाई के बाद युद्ध का मैदान छोड़ दिया। राणा सांगा ने एक लोदी राजकुमार को बंदी बनाकर पकड़ लिया और कुछ दिनों के बाद उसे रिहा कर दिया। इस युद्ध के दौरान महाराणा सांगा का एक हाथ तलवार से कट गया था और तीर से एक पर जीवन भर के लिए खराब हो गया था। 

इब्राहिम लोधी और बाबर के बीच साल 1526 में पानीपत की जंग हुई। इस लड़ाई में बाबर जीत गया, लेकिन आगरे तक पहुंचने के लिए उन्हें चित्तौड़ में राणा सांगा और पूर्व में अफगनिस्तानियों से खतरा था। 21 फरवरी 1527 को बयाना में राणा सांगा और बाबर की नेनाओं में युद्ध हुआ। जिसमें बाबर की सेना की सेना हार गई। जिसके बाद अफगानी सेना ने बाबर का साथ छोड़ दिया। 

पानीपत की लड़ाई के बाद यह आधुनिक भारत में लड़ी गई दूसरी बड़ी लड़ाई थी। राणा सांगा ने राजपूत को एकजुट किया और मुगल सम्राट बाबर की हमलावर ताकतों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। दोनों सेनाएं बराबर लड़ रही थी। लेकिन राजा शिलादित्य (सिलहड़ी तोमर) अपनी 30 हजार घुड़सवार सेना के साथ बाबर की सेना में शामिल हो गए। इस धोखाधड़ी के कारण, खानवा की जंग में राजपूत हार गए। 

बाबर ने पानीपत में मरे हुए सैनिकों की खोपड़ियों से मीनार बनवा दी। युद्ध हारने के बाद राणा सांगा जंगल की तरफ चले गए और जंग की रणनीति बनाने लगे, लेकिन बाकी सैनिक इसके खिलाफ थे। इसलिए कुछ रियासी सरदारों बाबर से डर कर राणा सांगा को जहर दे दिया। जिसके बाद 30 जनवरी, 1528 को महाराणा संग्राम सिंह की मृत्यु हो गई। जिसके बाद भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी गई। फिर मुगल और राजपूतों में कई जंग हुई। लेकिन राणा सांगा जैसा साहस किसी अन्य राजा में नहीं था। राणा सांगा के इस तप ने आने वाली पीड़ियों को प्रेरित किया।

 

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload









Advertisement