बड़ी खेरमाई का मंदिर वस्तुतः देवी पुराण में वर्णित 52 वां गुप्त शक्तिपीठ है, जहाँ सती माता का निचला जबड़ा गिरा था। यद्यपि बड़ी खेरमाई की उपासना का इतिहास अति प्राचीन है परंतु शक्तिपीठ के रुप में मंदिर निर्माण कलचुरि वंश के राजा नरसिंह देव की माता अल्हण देवी ने कराया। कलचुरि काल के अवसान के बाद गोंडवाना साम्राज्य का उदय हुआ। सन् 1290 में कड़ा और मानिकपुर के तुर्क सूबेदार अलाउद्दीन खिलजी ने गोंडवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया तत्कालीन गोंड राजा मदनशाह अचानक हमले के परास्त होकर, भानतलैया स्थित खेरमाई मां की शिला के पास बैठ गए। जहां उन्हें आध्यात्मिक अनुभूति हुई, पूजा के बाद उनमें अद्भुत शक्ति का संचार हुआ और मदनशाह ने तुर्क सेना पर आक्रमण कर अलाउद्दीन खिलजी को परास्त कर खदेड़ दिया। अतः यह कहना कि मदनशाह का युद्ध मुगलों से हुआ था, सर्वथा असत्य है क्योंकि मुगल सन् 1526 में आक्रांता के रुप में भारत आए थे। सन् 1480 में अमानदास गोंडवाना के महाप्रतापी सम्राट बने जो राजा संग्रामशाह के नाम से प्रसिद्ध हैं। राजा संग्रामशाह ने बड़ी खेरमाई के शक्तिपीठ का कायाकल्प कराकर एक मढ़िया की स्थापना करायी। बड़ी खेरमाई की कृपा से राजा संग्रामशाह जीवन भर अपराजेय रहे। शहर अब महानगर हो गया है लेकिन आज भी मां खेरमाई (खेरदाई) का ग्राम देवी के रूप में पूजन किया जाता है। सन् 1652 में गोंडवाना के महान् राजा हृदयशाह के समय से चैत्र नवरात्रि जवारा विसर्जन चल समारोह आज भी अनवरत् रुप से जारी है।वर्तमान में समाज सेवी शरद अग्रवाल (कार्यकारी अध्यक्ष) के निर्देशन में श्री बड़ी खेरमाई ट्रस्ट द्वारा इस शक्तिपीठ का प्रबंधन किया जा रहा है। यह शोध आलेख नई दुनिया के यशस्वी वरिष्ठ पत्रकार श्रीयुत तरुण मिश्रा एवं उदीयमान पत्रकार श्रीयुत दीपक जैन जी के साथ तैयार हुआ है। मेरा क्या है वही गिलहरी जितना योगदान है।