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"विमुक्त, घूमंतू और अर्ध्दघुमंतू जनजातियों में देवी उपासना"

Date : 17-Apr-2024

बंजारी माता,भूलन माता और मरही माता , क्या है? इतिहास और महत्व।  

यह कितना दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि सनातन के ध्वजवाहक, रेशम महापथ के उत्कृष्ट व्यापारी, देश के स्वतंत्रता संग्राम में पूर्णाहुति देने वाले सनातनी विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध घूमंतू जनजातीय परिवार सदियों से रह रहे अपने ही भारत देश में पराए हो गए, न ठीक से नागरिकता मिली, न आधार कार्ड,न मतदान का अधिकार, न आवास और न ही सुविधाएं? और मुस्लिम और ईसाई घुसपैठिए देश के अल्पसंख्यक सुविधा भोगी नागरिक बन गए और तो और भगोड़े रोहिंग्या मुसलमान भी देश के नागरिक बन गए।स्वाधीनता के बाद भी इनकी सुध न ली गई परंतु सन् 2014 के बाद से भारत सरकार ने विधिवत् इनकी सुध ली और आगे इनके उज्ज्वल भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए भगीरथ प्रयास प्रारंभ हुए और प्रगति पर हैं। देश की इनकी जनसंख्या 2011 में 15 करोड़ थी अब तो 20 करोड़ हो गई होगी।

अंग्रेजों ने 53 देशों में शासन किया परंतु केवल भारत की घुमंतू जातियों के लिए "क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1871" पारित करके इन्हें आपराधिक जनजाति बना दिया क्योंकि इन घूमंतू जनजातियों ने बरतानिया सरकार के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम छेड़ दिया था। गौरतलब है कि पिंडारी और ठगों ने बरतानिया सरकार के विरुद्ध लंबा संघर्ष किया है इसलिए अंग्रेजों ने इनका सर्वनाश करने के लिए षड्यंत्र रचने कर जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया। विडंबना तो देखिए कि बरतानिया सरकार के सुर में सुर मिलाकर वामपंथी और तथाकथित सेक्यूलर इतिहासकारों ने भी इनको अपराधी मानकर इतिहास लिख डाला। अब सही इतिहास लिखने का समय आ गया है। घूमंतू जातियों का बहुत ही गौरवशाली इतिहास है, जो समय-समय पर प्रेषित होगा परंतु आज तो चैत्र नवरात्र की अष्टमी है और इसलिए महाकौशल प्रांत में ये घुमंतू परिवार, देवी भवानी की उपासना किस रुप करते हैं, इस विषय पर पहली बार शोध आलेख पत्रिका समाचार पत्र के यशस्वी पत्रकार श्रीयुत लाली कोष्टा जी के भगीरथ प्रयास और विचार से तैयार कर प्रेषित कर रहे हैं। मेरा क्या है वही गिलहरी जितना योगदान है। पत्रिका के संपादक श्रीयुत राजेंद्र गहरवार के साथ समस्त पत्रिका समाचार पत्र का आभार। 

 
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