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वामपंथी उग्रवादियों की मौत पर कांग्रेस के घड़ियाली आंसू

Date : 18-Apr-2024
छत्तीसगढ़ की दो लोकसभा सीटों बस्तर और कांकेर में पहले चरण में यानी 19 अप्रैल को मतदान होना है। लेकिन इससे ठीक पहले पुलिस को सूचना मिली कि कांकेर जिले के थाना छोटे बेठिया के जंगल में वामपंथी उग्रवादी (नक्सली) इकठ्ठे हुए हैं। 16 अप्रैल को दोपहर दो बजे कांकेर के थाना छोटेबेटिया क्षेत्रांतर्गत बिनागुंडा एवं कोरोनार के मध्य हापाटोला के जंगल (थाना छोटेबेटिया लगभग 15 किमी. पूर्व दिशा) में छत्तीसगढ़ पुलिस की जिला रिजर्व फ़ोर्स (डीआरजी) और बॉर्डर सिक्योरिटी फ़ोर्स (बीएसएफ) की संयुक्त पार्टी और माओवादियों के बीच मुठभेड़ हुई। इस मुठभेड़ पश्चात घटनास्थल की सर्चिंग के दौरान अब तक  29 माओवादियोें के शव बरामद किया गया। इस क्षेत्र में सर्चिंग अभियान जारी है ।मुठभेड़ में 03 जवान घायल हो गये हैं। घायल जवानों की स्थिति सामान्य और खतरे से बाहर है l घायल जवानों को हेलीकॉप्टर से रायपुर लेकर इलाज किया जा रहा है।
कांकेर के एसपी कल्याण एलेसेला के मुताबिक 'मारे गए नक्सलियों में सीनियर माओवादी कमांडर शंकर राव और ललिता भी शामिल थे। उन पर 25-25 लाख रुपये का नकद इनाम था। एक अन्य कैडर, विनोद गावड़े भी इस मुठभेड़ में मारा गया है। गावडे के सिर पर 10 लाख रुपये का इनाम था। वह राजनांदगांव, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में सक्रिय था। 
कांकेर जिले की सीमा बस्तर के कई जिलों को छूती है। यहां बड़े नक्सल कमांडरों और बड़ी संख्या में नक्सलियों का इकट्ठा होना, एक बड़ी साजिश की तरफ इशारा है। छत्तीसगढ़ पुलिस भी मान रही है कि ये नक्सली किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए एकत्रित हुए थे। लेकिन बीएसएफ और पुलिस जवानों ने इनकी योजना को सफल होने से रोका, बल्कि 29 नक्सलियों को जहन्नुम में भेज दिया।
पहला सवाल यह उठता है कि नक्सलियों के मारे जाने का दर्द काँग्रेस नेताओ के पेट में क्यों हो रहा है? क्या कांग्रेस यह मानती है कि छत्तीसगढ़ में नक्सली हैं ही नहीं। लेकिन कांग्रेस ऐसा तो कह ही नहीं सकती क्योंकि उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने नक्सलियों के सफाए और उन क्षेत्रों के विकास के लिए एलडब्ल्यूई यानी वामपंथ उग्रवादी क्षेत्रों के लिए केंद्र सरकार से भरपूर आर्थिक लाभ लिया है।
भूपेश बघेल यह भी कह रहे हैं कि उनकी सरकार में कोई बड़ी नक्सल वारदात नहीं हुई, कोई बड़ी मुठभेड़ नहीं हुई। ये कहकर पूर्व मुख्यमंत्री बघेल क्या साबित करना चाहते हैं? कि वे नक्सलियों से वार्ता कर रहे थे या नक्सली उनसे संतुष्ट थे जो कोई घटना नहीं कर रहे थे? क्या बघेल की सरकार नक्सलियों के हिसाब से चल रही थी, जो उन्होंने कोई उत्पात नहीं मचाया या वे यह कहना चाहते हैं कि उनके राज में नक्सल समस्या का समाधान हो गया था। तो वे बताएं कि दोबारा नक्सली कहाँ से आ गए? फिर भूपेश बघेल इस पर क्या कहना चाहेंगे कि उनकी सरकार के आखिरी वर्ष में नक्सली भाजपा नेताओं की टारगेट किलिंग क्यों और कैसे करते रहे?
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार यानी इन्हीं भूपेश बघेल सरकार के आखिरी वर्ष यानी 2023 में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के पहले नक्सल प्रभावित बस्तर से लेकर राजनांदगांव तक 8 भाजपा नेताओं की हत्या कर दी गयी थी।  इन भाजपा नेताओं में बीजापुर जिले के नीलकंठ ककेम थे, जिनको 5 फरवरी 2023 को नक्सलियों ने मौत के घोट उतार दिया था। ककेम आवापल्ली बीजापुर में बीजेपी मंडल प्रमुख थे। इसके अलावा 10 फरवरी 2023 को नारायणपुर जिले में सागर साहू को नक्सलियों ने देर शाम घर में घुसकर गोली मार दी थी। सागर साहू नारायणपुर बीजेपी के जिला उपाध्यक्ष थे।
11 फरवरी 2023 को दंतेवाड़ा जिले में रामधर अलामी की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। रामधर अलामी बीजेपी में सक्रिय कार्यकर्ता थे। वहीं, 29 मार्च 2023 को नारायणपुर जिले में ही बीजेपी नेता रामजी डोडी की भी नक्सलियों ने जान ले ली थी। राम जी डोडी इस क्षेत्र के मंडल अध्यक्ष थे। इसके अलावा, 21 जून 2023 को बीजापुर जिले के रहने वाले अर्जुन काका जो बीजापुर में एसटी मोर्चा के जिला अध्यक्ष थे उनका नक्सलियों ने गला रेत दिया था।
वहीं 20 अक्टूबर 2023 को राजनांदगांव के मोहला मानपुर में बीजेपी कार्यकर्ता बिरझु तारम को नक्सलियों ने मौत के घाट उतार दिया। इसके अलावा बीते 4 नवंबर को नारायणपुर जिले में बीजेपी जिला उपाध्यक्ष रतन दुबे की भी नक्सलियों ने चुनावी प्रचार के दौरान कौशलनार हाट बाजार में गला रेतकर कर हत्या कर दी थी। 9 दिसंबर को नारायणपुर जिले के छोटे डोंगर में बीजेपी कार्यकर्ता कोमल मांझी की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। 
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों द्वारा भाजपा नेताओं की हत्या का सिलसिला वर्षों से जारी है। बस्तर के बड़े भाजपा नेता व पूर्व सांसद स्वर्गीय बलिराम कश्यप के बेटे तानसेन कश्यप की 2009 में नक्सलियों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी थी। जिस वक्त तानसेन कश्यप अपने दोनों भाइयों तत्कालीन केबिनेट मंत्री केदार कश्यप व दिनेश कश्यप के साथ बेडागुड़ा मंदिर में दर्शन करने गए थे। तभी नक्सलियों की स्मॉल एक्शन टीम ने उनकी हत्या कर दी थी।
इसी बात पर एक सवाल किसी भी मुठभेड़ को फर्जी बताने वाली कांग्रेस से ये भी पूछा जाना चाहिए कि भाजपा नेताओं की इन हत्याओं के पीछे असल में है कौन? क्या दीपक बैज या भूपेश बघेल इसका उत्तर देंगे। एक सवाल ये भी उठता है कि बस्तर की जिस गली-गली और गांव-गांव में भाजपा नेताओं की हत्या होती है, वहां कभी कांग्रेस नेताओं को तो कोई खतरा नहीं होता?
कांग्रेस से सवाल तो झीरम नक्सल हमले पर भी पूछा जाना चाहिए क्योंकि झीरम हत्याकांड में भले ही कांग्रेस नेता मारे गए, लेकिन शक की सुई कांग्रेस की तरफ ही घूमती रही। बस्तर की झीरम घाटी में 2013 में नक्सलियों द्वारा मारे गए कांग्रेस नेताओं को जबसे मारा है, तब से ही कांग्रेस के बस्तर लोकसभा के वर्तमान प्रत्याशी कवासी लखमा शक के घेरे में हैं। जब चारों तरफ से तड़ातड़ गोलियां चल रही हों, काफिले में शामिल अधिकांश नेता मारे जा चुके हों। तो ऐसे में कवासी लखमा को मजाल है, कोई खरोंच भी आई हो। उसी वक़्त का छत्तीसगढ़ कांग्रेस के बड़े नेता डॉ चरणदास महंत का कवासी लखमा को चांटा दिखाते हुए वीडियो आज भी यूट्यूब पर मिल जाएगा। जिस रास्ते पर पुलिस सुरक्षा नहीं थी, उस रास्ते पर जबरन जाना कांग्रेस नेताओं को भारी पड़ गया था। कांग्रेस के ही कुछ नेताओं पर आरोप ये भी लगे कि परिवर्तन यात्रा का रूट कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने आखिरी समय पर बदला था। कहा तो ये भी जाता है कि नक्सलियों ने धोखे से कांग्रेस नेताओं की हत्या कर दी थी, क्योंकि परिवर्तन यात्रा में शामिल कांग्रेस नेताओं को यकीन था कि नक्सली उनपर हाथ नहीं डालेंगे। अगर ऐसा नहीं होता तो दरभा जैसी संकरी सड़क पर कांग्रेस का इतना बड़ा काफिला बिना सुरक्षा के कभी नहीं जाता। 
मुठभेड़ों को बीते कुछ घण्टे भी नहीं होते और कांग्रेस नेता राजनीतिक रोटियां सेंकने में लग पड़ते हैं। छत्तीसगढ़ के बस्तर समेत अन्य संवेदनशील जिलों में मतदान करने जो अधिकारी कर्मचारी तैनात होते हैं ना, कांग्रेस को उनसे पूछना चाहिए कि मौत के साये में अपनी ड्यूटी करना किसे कहते हैं। बस्तर की सुरक्षा में तैनात पुलिस, सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी के जवानों से पूछना चाहिए देश क्या होता है और उसकी सेवा क्या होती है?
 
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