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कामदा एकादशी

Date : 19-Apr-2024

 


हिंदू कैलेंडर के अनुसार, कामदा एकादशी शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है, यानी ‘चैत्र’ के महीने में चंद्रमा के वैक्सिंग चरण के 11 वें दिन। कामदा एकादशी को आमतौर पर ‘चैत्र शुक्ल एकादशी’ के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह चैत्र नवरात्रि उत्सव के बाद आती है। 
‘कामदा’ शब्द ‘इच्छाओं की पूर्ति’ का प्रतीक है और इस प्रकार, कामदा एकादशी को एक आध्यात्मिक अनुष्ठान माना जाता है जो सभी सांसारिक इच्छाओं को पूरा करता है। कामदा एकादशी का महत्व कई हिंदू शास्त्रों और पुराणों जैसे ‘वराह पुराण’ में वर्णित है। इसके अलावा, महाभारत के दौरान, श्री कृष्ण ने राजा युधिष्ठिर को कामदा एकादशी के महत्व और लाभों के बारे में बताया था। ऐसा माना जाता है कि कामदा एकादशी का व्रत व्यक्ति को अपने गुणों को पुनः प्राप्त करने और सुधारने में मदद करता है। इसके अलावा, यह भक्तों और उनके परिवारों को सभी श्रापों से बचाता है। यदि भक्त इस दिन व्रत रखता है तो ब्राह्मण की हत्या सहित सभी पापों को क्षमा किया जा सकता है। यह भी माना जाता है कि अगर विवाहित जोड़े कामदा एकादशी का व्रत रखते हैं, तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो सकती है।


यह व्रत भक्त को मोक्ष प्राप्त करने और भगवान कृष्ण के निवास वैकुंठ धाम तक पहुंचने में मदद करता है।


कामदा एकादशी 2024 की महत्वपूर्ण तिथि और समय:

इस साल कामदा एकादशी शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024 को मनाई जाएगी। कामदा एकादशी 2024 के लिए महत्वपूर्ण समय नीचे दिए गए हैं:
कामदा एकादशी: शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
पारण का समय: 20 अप्रैल को प्रातः 06:11 बजे से प्रातः 08:39 बजे तक
एकादशी प्रारंभ तिथि: 18 अप्रैल 2024 को शाम 05:31 बजे
एकादशी समाप्त तिथि: 19 अप्रैल 2024 को रात्रि 08:04 बजे


कामदा एकादशी 2024 व्रत कथा
प्राचीन समय में भागीपुर नामक एक नगर था| जिस पर पुण्डरीक नाम का राजा राज्य करता था| राजा पुण्डरीक अनेक ऐश्वर्यों से युक्त था| उसके राज्य में अनेक अप्सरायें, गन्धर्व, किन्नर आदि वास करते थे| उसी नगर में ललित एवं ललिता नाम के गायन विद्या में पारन्गत गन्धर्व स्त्री-पुरुष अति सम्पन्न घर में निवास करते हुये विहार किया करते थे| उन दोनों में इतना प्रेम था कि वे अलग हो जाने की कल्पना मात्र से ही व्यथित हो उठते थे| एक बार राजा पुण्डरीक गन्धर्वों सहित सभा में विराजमान थे| वहां गन्धर्वों के साथ ललित भी गायन कर रहा था| उस समय उसकी प्रियतमा ललिता वहाँ उपस्थित नहीं थी|
 
गायन करते-करते अचानक उसे ललिता का स्मरण हो उठा, जिसके कारण वह अशुद्ध गायन करने लगा| नागराज कर्कोटक ने राजा पुण्डरीक से उसकी शिकायत की| इस पर राजा को भयङ्कर क्रोध आया और उन्होंने क्रोधवश ललित को श्राप दे दिया - "अरे नीच! तू मेरे सम्मुख गायन करते हुये भी अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है, इससे तू नरभक्षी दैत्य बनकर अपने कर्म का फल भोग"
 
ललित गन्धर्व उसी समय राजा पुण्डरीक के श्राप से एक भयङ्कर दैत्य में परिवर्तित हो गया| उसका मुख विकराल हो गया| उसके नेत्र सूर्य, चन्द्र के समान प्रदीप्त होने लगे| मुँह से आग की भयङ्कर ज्वालायें निकलने लगीं, उसकी नाक पर्वत की कन्दरा के समान विशाल हो गयी तथा गर्दन पहाड़ के समान दिखायी देने लगी| उसकी भुजायें दो-दो योजन लम्बी हो गयीं| इस प्रकार उसका शरीर आठ योजन का हो गया| इस तरह राक्षस बन जाने पर वह अनेक दुःख भोगने लगा| अपने प्रियतम ललित का ऐसा हाल होने पर ललिता अथाह दुःख से व्यथित हो उठी| वह अपने पति के उद्धार के लिए विचार करने लगी कि मैं कहाँ जाऊँ और क्या करूँ? किस जतन से अपने पति को इस नरक तुल्य कष्ट से मुक्त कराऊँ?
 
राक्षस बना ललित घोर वनों में रहते हुये अनेक प्रकार के पाप करने लगा| उसकी स्त्री ललिता भी उसके पीछे-पीछे जाती और उसकी स्थिति देखकर विलाप करने लगती|
 
एक बार वह अपने पति के पीछे-पीछे चलते हुये विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गयी| उस स्थान पर उसने श्रृंगी मुनि का आश्रम देखा| वह शीघ्रता से उस आश्रम में गयी तथा मुनि के समक्ष पहुँचकर दण्डवत् प्रणाम कर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी, "हे महर्षि! मैं वीरधन्वा नामक गन्धर्व की पुत्री ललिता हूँ, मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से एक भयङ्कर दैत्य बन गया है| उससे मुझे अपार दुःख हो रहा है| अपने पति के कष्ट के कारण मैं बहुत दुखी हूँ| हे मुनिश्रेष्ठ! कृपा करके आप उसे राक्षस योनि से मुक्ति का कोई उत्तम उपाय बतायें."

समस्त वृत्तान्त सुनकर मुनि श्रृंगी ने कहा, "हे पुत्री! चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम कामदा एकादशी है |  उसके व्रत करने से प्राणी के सभी मनोरथ शीघ्र ही पूर्ण हो जाते हैं |
 
यदि तू उसके व्रत के पुण्य को अपने पति को देगी तो वह सहज ही राक्षस योनि से मुक्त हो जायेगा एवं राजा का शाप श्राप शान्त हो जायेगा."
ऋषि के कहे अनुसार ललिता ने श्रद्धापूर्वक व्रत किया तथा द्वादशी के दिन ब्राह्मणों के समक्ष अपने व्रत का फल अपने पति को दे दिया और ईश्वर से प्रार्थना करने लगी, "हे प्रभु! मैंने जो यह उपवास किया है, उसका फल मेरे पतिदेव को मिले, जिससे उनकी राक्षस योनि से शीघ्र ही मुक्ति हो."
एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त हो गया और अपने दिव्य स्वरूप को प्राप्त हुआ. वह अनेक सुन्दर वस्त्रों तथा आभूषणों से अलङ्कृत होकर पहले की भाँति ललिता के साथ विहार करने लगा |
 
कामदा एकादशी के प्रभाव से वह पहले की भाँति सुन्दर हो गया तथा मृत्यु के पश्चात् दोनों पुष्पक विमान पर बैठकर विष्णुलोक को चले गये |
 
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