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22 जून विशेष:- वट पूर्णिमा

Date : 22-Jun-2024

 वटपूर्णिमा , जिसे वट सावित्री व्रत भी कहा जाता है|  उत्तर भारत और पश्चिमी भारतीय राज्यों महाराष्ट्र , गोवा , गुजरात में विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक हिंदू उत्सव है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ महीने के तीन दिनों के दौरान इस पूर्णिमा (पूर्णिमा) पर (जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में मई-जून में पड़ता है ), एक विवाहित महिला बरगद के पेड़ के चारों ओर एक औपचारिक धागा बांधकर अपने पति के प्रति अपने प्यार का इजहार करती है। यह उत्सव महाकाव्य महाभारत में वर्णित सावित्री और सत्यवान की कथा पर आधारित है ।

वट पूर्णिमा का व्रत ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन रखा जाता है. यह व्रत सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और संतान प्राप्ति के लिए रखती है. इस दिन सावित्री और सत्यवान की पूजा की जाती है. पश्चिम भारत में यह व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन रखा जाता है. जबकि उत्तरी भारत में वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को रखा जाता है | 
वट पूर्णिमा के दिन इस बार ज्येष्ठ नक्षत्र का संयोग भी बना है. जो शास्त्रीय दृष्टि से इसका महत्व कई गुना बढ़ा रहा है. इस दिन वट वृक्ष के साथ साथ बेल के पेड़ की पूजा करना भी उत्तम फलदायी रहेगा. वट पूर्णिमा के दिन ज्येष्ठ नक्षत्र होने से सरसों के दाने मिलाकर पानी में स्नान करें. साथ ही महिलाएं सोलह श्रृंगार करें. इसके बाद वट वृक्ष की पूरे विधि विधान से पूजा करें. वट वृक्ष की परिक्रमा करते हुए (कम से कम 5, 7, 11, 21, 51 या 108 बार) कच्चा सूत लपेटते रहें. इसके बाद जल अर्पित करके हल्दी लगाकर विधि विधान से पूजा करें. इसके बाद सावित्री और सत्यवान का कथा सुने | 
वट पूर्णिमा की महिमा का वर्णन कई हिंदू ग्रंथों जैसे स्कंद पुराण, निर्णयामृत और भविष्योत्तर पुराण में किया गया है. ज्येष्ठ अमावस्या की वट सावित्री की तरह ही वट सावित्री पूर्णिमा का विशेष महत्व है. इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और संतान प्राप्ति के लिए बरगद के पेड़ की विधिवत पूजा करने के साथ कच्चा सूत बांधती है. इसके साथ ही मां पार्वती और सावित्री की मूर्ति बनाकर विधिवत पूजा करती है. मान्यता है कि इस दिन पूजा करने दांपत्य जीवन में आने वाली हर समस्या समाप्त हो जाती है और सुख-समृद्धि, खुशहाल वैवाहिक जीवन का वरदान मिलता है. वट पूर्णिमा व्रत न केवल विवाहित जोड़ों के बीच के बंधन को मजबूत करता है, बल्कि यह नारीत्व की भावना का भी सम्मान करता है. इस व्रत के प्रति आस्था ही इसे इतना पवित्र और शुभ बनाती है.
 
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