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जो व्यक्ति दूसरों के काम न आए वास्तव में वह मनुष्य नहीं है - ईश्वर चंद्र विद्यासागर

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शिक्षाप्रद कहानी:- डाकू से संत

Date : 22-Jun-2024

 बड़ौदा के शेडखी  नामक गाँव में संत रविदास का निवास था | एक समय उत्तर गुजरात के कुछ प्रेमी भजनीक शेडखी की ओर जा रहे थे | रास्ते में डाकू काबाजी से उनकी भेंट हो गयी | भजनीक लोग मस्ती में भजन गए रहे थे | काबाजी पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ा और उसने मन में भी शेडखी जाकर रवि साहेब के दर्शन करने की इच्छा जाग उठी | वह वेश बदल कर शेडखी पहुंचा | रात्रि का समय था | संत धाम में भजन की धूम मची हुई थी | डाकू ने अपने जीवन में रवि साहेब और भजन कीर्तनों को पहली बार देखा था | रवि साहेब ने उसको पहचान लिया था | काबाजी वहां का सात्विक प्रभाव लेकर रात्रि के अंधकार में ही लौट गया|

एक दिन की बात है कि एक नवविवाहित वर-कन्या शेडखी संत के चरणों में प्रणाम करके उनका शुभाशीर्वाद प्राप्त करने के लिए जा रहे थे | क्रूर डाकू काबा ने उनको इस प्रकार जाते देख लिया | पर रवि साहेब के दर्शनों के लिए जाने का नाम सुनकर उसने न केवल उनको छोड़ दिया अपितु उसने मन पर एक चोट लगी | उनका पुत्र नहीं था | इससे दूसरे ही क्षण में उसके मन में वातसल्यभाव जाग उठा | मानो उसी का पुत्र विवाह करके शेडखी धाम को जा रहा हो | सोने की मोहरों की एक थैली उनके हाथ में सौपतें हुए उसने कहा- "यह रवि साहेब की सेवा में दे देना और उनसे काबाजी डाकू का प्रणाम कहना |"

दोनों वर-कन्या संतधाम पहुंचे | थैली चरणों में रखकर उन्होंने संत को काबाजी का प्रणाम निवेदन किया | उन स्वर्ण मुद्राओं को संत ने स्वयं न लेकर नव- विवाहित वर-कन्या को ही दे दिया और उन्हें आशीर्वाद देकर विदा किया |

एक बार एक बड़ी संत मण्डली पहाड़ी मार्ग से शेडखी जा रही थी | रवि साहेब साधु है, इतने लोगों का स्वागत सत्कार किस प्रकार करेंगे, इधर मेरे पास बहुत धन है, यह सोचकर काबाजी ने एक गठरी बाँधी और शेडखी जाकर उसे अतिथि सत्कार में लगाने के लिए अर्पण करते हुए संत चरणों में आग्रहपूर्ण प्रार्थना की |

डाकू की रक्त से सनी धनराशि को अस्वीकार करते हुए संत ने उसको फटकार कर कहा- "तू बड़ा निर्दयी है, असहाय यात्रियों को लूटता है | यहां हठ मत कर, आज तू धन देने आया है, कल इसी धन के लिए निरपराध मनुष्यों का खून करके उन्हें लूटेगा | तू बड़ा अत्याचारी है | जा यहां से चला जा|" 

काबा ने शांति से यह सब सुना और फिर नम्रता से शपथ करते हुए कहा- "महाराज ! आज से डकैती का पेशा मेरे लिए हराम है |" यह कहकर उसने अपने सभी शस्त्रास्त्र संत रविदास के चरणों में डाल दिए और उनके चरणों में नतमस्तक हो गया | संत ने उसका हाथ पकड़कर उठाया और उसे ह्रदय से लगा लिया | उसी दिन से क्रूर काबाजी डाकू सरल हृदय भक्त बन गया और तब से पहाड़ी रास्तों में उसका स्थान संतों का आतिथ्यधाम बन गया|

 
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