काबा ने शांति से यह सब सुना और फिर नम्रता से शपथ करते हुए कहा- "महाराज ! आज से डकैती का पेशा मेरे लिए हराम है |" यह कहकर उसने अपने सभी शस्त्रास्त्र संत रविदास के चरणों में डाल दिए और उनके चरणों में नतमस्तक हो गया | संत ने उसका हाथ पकड़कर उठाया और उसे ह्रदय से लगा लिया | उसी दिन से क्रूर काबाजी डाकू सरल हृदय भक्त बन गया और तब से पहाड़ी रास्तों में उसका स्थान संतों का आतिथ्यधाम बन गया|