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शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल | काम क्रोध व्यापै नहीं, कबूँ न ग्रासै काल ||

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शिक्षाप्रद कहानी:- चोरों का सत्कार

Date : 15-Jun-2024

 


पुरानी बात है | बिहार प्रदेश के चम्पारण में केशरिया थाना के अंतर्गत एक गाँव है ढेकहा | वहां गंडक नदी के किनारे कर्ताराम बाबा और धवलराम बाबा का मंदिर है | मंदिर के अंदर कुछ ढाई-तीन बीघा जमीन थी | उसी भूमि की फसल से अतिथियों का स्वागत होता था तथा मुंज की रस्सियां बनाकर हाट बाजार में बेचकर मंदिर के दीपक आदि का प्रबंध बाबा लोग किया करते थे | 

अगहन का महीना था, दोनों बाबा मंदिर के अंदर सोये हुए थे | मंदिर की भूमि में कुछ धान  पका हुआ था | बाबा लोगों का विचार उस फसल को काटनें  का था | उसी रात को करीब पंद्रह-बीस चोरों ने बाबा के धान काट उसके गटठर बांध लिए | जब उन लोगों ने धान के गट्ठरों को उठाकर सर पर रखा और वहां से जाने का विचार किया, तब उनको मार्ग ही नहीं दिखाई दिया | वे खेत में ही अंधे हो गये |

समूची रात वे जाड़े से कांपते  हुए उसी खेत में भटकते रहे | रात के चौथे पहर में बाबा कर्ताराम जागे और जागते ही उन्होंने भोजन की व्यवस्था की और धवलराम बाबा को जगाकर उन चारों के लिए खाने की सामग्री भेजी |

धवलराम बाबा के खेत में पहुँचते ही सब चोर लज्जित हो गए | बाबा तो क्षमा मूर्ति थे ही, उन्होंने उन चोरों को सांत्वना दी, खाने को अन्न दिया और साथ ही धन के बोझों में से उनको उनकी कटाई के रूप में उचित पारिश्रमिक भी दिया | उन चोरों को उसी दिन से चोरी का पेशा छूट गया|  

 
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