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शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल | काम क्रोध व्यापै नहीं, कबूँ न ग्रासै काल ||

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चाणक्य नीति:- संतों की सेवा से फल मिलता है

Date : 19-Jun-2024

 साधुम्यस्ते निवर्तन्ते  पुत्र: मित्राणी बांधवा: |

ये च तै: सह गंतारस्तर्द्धमारत्सुकृतं कुलम || 

आचार्य चाणक्य यहां संतों की सेवा को महत्व देते हुए कहते हैं कि संसार के अधिकतर पुत्र, मित्र और भाई साधु - महात्माओं, विद्वानों आदि की संगति से दूर रहते हैं | जो लोग सत्संगती करते हैं, वे अपने कुल को पवित्र कर देते हैं | 

आशय यह है कि लगभग सभी लोग सत्संग से दूर रहते हैं | किंतु जो व्यक्ति सच्चे ज्ञानी महात्माओं का साथ करते हैं, वे अपने कुल को पवित्र करके उसका तारण करते हैं |

 वे इस सदाचार से अपने पूरे परिवार को उज्ज्वल बना देते हैं | उनके इस कार्य पर परिवार को गर्व करना चाहिए | उसे अपना आदर्श मानना चाहिए और उससे प्रेरणा लेना चाहिए | मनुष्य जनता है कि शरीर नश्वर है, परंतु वह यह यथार्थ जानते हुए भी सांसारिक कर्मों में लिप्त रहता है जबकि उसे निर्लिप्त रहकर कार्य करना चाहिए | 

 

 
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