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शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल | काम क्रोध व्यापै नहीं, कबूँ न ग्रासै काल ||

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चाणक्य नीति:- जहां तक हो पुण्य कर्म करें

Date : 26-Jun-2024

 यावत्स्वस्थो ह्राय  देह: तावन्मृतयुश्च दूरत: |

तावदातमहितं कुर्यात प्राणांते किं  करिष्यति  ||

आचार्य चाणक्य यहां इन पंक्तियों में आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हुए प्रबोधित कर रहे हैं कि  जब तक शरीर स्वस्थ है, तभी तक मृत्यु भी दूर रहती है | अत: तभी आत्मा का कल्याण कर लेना चाहिए | प्राणों का अंत हो जाने पर क्या करेगा ? केवल पश्चाताप ही शेष रहेगा |

 

यहां आशय यह है कि जब तक शरीर स्वस्थ रहता है, तब तक मृत्यु का भी भय नहीं रहता | अत: इसी समय में आत्मा और परमात्मा को पहचानकर आत्मकल्याण कर लेना चाहिए | मृत्यु हो जाने पर कुछ भी नहीं किया जा सकता |

आचार्य चाणक्य का कहना है कि समय गुजरता रहता है, और जाने कब व्यक्ति को रोग घेर ले और कुछ मृत्यु का सन्देश ले यमराज के दूत द्वार पर खड़े हों, इसलिए मानव को चाहिए कि वह जीवन में अधिक-से-अधिक पुण्य कर्म करे क्योंकि समय का क्या भरोसा? जो कुछ करना है समय पर ही कर लेना चाहिए |

 
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