यावत्स्वस्थो ह्राय देह: तावन्मृतयुश्च दूरत: |
तावदातमहितं कुर्यात प्राणांते किं करिष्यति ||
आचार्य चाणक्य का कहना है कि समय गुजरता रहता है, और न जाने कब व्यक्ति को रोग घेर ले और कुछ मृत्यु का सन्देश ले यमराज के दूत द्वार पर आ खड़े हों, इसलिए मानव को चाहिए कि वह जीवन में अधिक-से-अधिक पुण्य कर्म करे क्योंकि समय का क्या भरोसा? जो कुछ करना है समय पर ही कर लेना चाहिए |