Quote :

" लक्ष्य निर्धारण एक आकर्षक भविष्य का रहस्य है" - टोनी रॉबिंस

Editor's Choice

शिक्षाप्रद कहानी:- डाकू से महात्मा

Date : 29-Jun-2024

 विक्रमी संवत 1700 के लगभग जैसलमेर राज्य अंतर्गत बारू ग्राम में चौहान क्षत्रिय माधवसिंह हुआ है | वह स्वभाव से बड़ा ही रजोगुणी था | डाकुओं का संगठन बनाकर आस-पास के गाँवों में लूट-मार करना उसका दैनिक व्यवहार सा बन गया था | वे विशेषतया जंगलों में रहते और उस ओर  से जब कोई व्यापारी माल लेकर निकलते थे तो ये उन्हें लूट लेते थे | इस कारण प्राय: सिंध से इधर की ओर वस्तुओं का आना बंद सा हो गया था | फिर भी आकाल के समय कभी-कभी लोक निकटवर्ती मार्ग से जल्दी आने-जाने की बात सोचकर अपने ऊंटों द्वारा सामग्री लाया और ले जाया करते थे | वे कई बार माधवसिंह के गिरोह द्वारा लूट लिए जाते थे | यह क्रम अनेक वर्षों तक चलता रहा| लोग उसके नाम से ही कांपने लगे थे |

एक समय देश में भयंकर  अकाल पड़ा, चरों ओर हाहाकार मच गया | उस समय ऊंटों पर आनाज लेकर कई यात्री सिंध से आ रहे थे | जिस कंटीले जंगल में माधव सिंह रहता था, उसके पास पहुँचते-पहुँचते सूर्य अस्त हो गया क़तारिये  रात्रि की भयानकता को देख कर आगे चलना नहीं चाहते थे और वहां ठहरने से लूट जाने का डर  था |

देवगति विचित्र होती है, उनको वहीं  ठहरना पड़ा | खाने के लिए रोटियां बनाने लगे | उनमें से एक ने कहा- "यहां ठहर तो गए, कहीं माधव सिंह आ गया और उसने लूट लिया तो बाल-बच्चे सब नष्ट हो जायेंगे |"

दूसरा बोले - "अब तो श्रीरघुनाथ जी ही बचाएंगे|"

 रात्रि के अंधकार में वहीं पास खड़ा माधव सिंह यह सब सुन रहा था | उनकी बातें सुनकर उसका मन द्रवित हो गया | वह स्वयं को रोक नहीं सका और तभी क़तारियों के सम्मुख आ खड़ा हुआ | उसको देखकर वे सब रोटियां छोड़कर चिल्लाने लगे |

 उनको रोते  कराहते देख माधव सिंह ने कहा- "भाई ! डरो मत | तुम रोटी खाकर यहां से चले जाओ | मैं तुम्हें नहीं लूटूँगा | मेरी सम्मति के बिना मेरे गिरोह वाले भी तुम्हें कष्ट नहीं देंगे |

लोगों ने रोटी खाई और वहां से चलते बने | माधव सिंह रातभर अग्नि जलाकर वहीं  बैठा रहा | उसने अपने सारे वस्त्र  जला दिए | सबेरे जब उसके साथी आये और उन्होंने पूछा- "यह क्या किया ?"

वह बोलै - "भाई ! तुम लोगों में से जो सत्य और अहिंसा से अपना उद्धार करना चाहे, वह मेरे साथ रहे | मैं अब कलंक को धोकर अपने जीवन को पवित्र करना चाहता हूँ | मैंने लूटमार का धंधा आज से छोड़ दिया है | उसी दिन से वह मार्ग व्यापारियों के लिए निरापद हो गया |

 
RELATED POST

Leave a reply
Click to reload image
Click on the image to reload









Advertisement