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मंदिर श्रृंखला : कालीघाट मंदिर

Date : 01-Jul-2024

 

 

भारत में शक्तिपीठों का सर्वाधिक महत्व है। ये शक्तिपीठ ऐसे स्थान हैं, जहाँ माता सती की मृत देह के अंग गिरे थे। ये स्थान पूरे भारत समेत पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश और नेपाल में भी स्थित हैं। कोलकाता के कालीघाट मंदिर में माता सती के दाहिने पैर का अँगूठा गिरा था। तब से ही यह स्थान शक्तिपीठ माना जाता है।

वर्तमान दृश्य मंदिर की स्थापना सन् 1809 में हुई थी। यह मंदिर कोलकाता के सबर्ण रॉय चौधरी नामक धनी व्यापारी के सहयोग से पूरा हुआ। इसके अलावा 15वीं और 17वीं शताब्दी की कुछ रचनाओं में भी इस मंदिर का जिक्र मिलता है। कालीघाट मंदिर में गुप्त वंश के कुछ सिक्के मिलने के बाद यह पता चलता है कि गुप्त काल के दौरान भी इस मंदिर में श्रद्धालुओं का आना-जाना बना हुआ था।

कोलकाता के कालीघाट मंदिर के बारे में सबसे खास बात यह है कि पहले यह मंदिर हुगली (जिसे भागीरथी भी कहा जाता था) के किनारे स्थित था। लेकिन समय के साथ भागीरथी, मंदिर से दूर होती चली गई। अब यह मंदिर आदिगंगा नाम की नहर के किनारे पर स्थित है, जो अंततः हुगली नदी से जाकर मिलती है।

मंदिर के विषय में अन्य जानकारियाँ

मोनोशा ताल, जोर बांग्ला, नट मंदिर, हरकथ ताल और राधा कृष्ण मंदिर भी कालीघाट मंदिर का ही हिस्सा हैं। मंदिर परिसर में ही कुंडुपुकुर स्थित है, जो एक जलकुंड है। माता सती का दाहिना अँगूठा इसी कुंड में से मिला था। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित माँ काली की प्रतिमा अद्भुत और अद्वितीय है। इस प्रतिमा का निर्माण दो संतों आत्माराम ब्रह्मचारी और ब्रह्मानंद गिरी ने किया था। पत्थर को तराश कर बनाई गई इस माँ काली की इस प्रतिमा की तीन बड़ी आँखें हैं, साथ ही चार स्वर्ण भुजाएँ भी हैं। इसके अलावा माँ काली के हमेशा से पूज्य स्वरूप के अनुसार प्रतिमा की जीभ भी बाहर निकली हुई है, जो सोने की है।

कालीघाट मंदिर की वास्तुकला

मंदिर पारंपरिक बंगाल स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर की शैली में बनाया गया है, जिसके शीर्ष पर एक बड़ा गुंबद है। मंदिर के भीतर विभिन्न वर्गों को अलग-अलग उद्देश्यों के लिए रखा गया है। नटमंदिर और जोर बंगला गर्भगृह का बेहतर दृश्य प्रदान करते हैं और हरताल यज्ञ वेदी है।

राधा-कृष्ण को समर्पित एक मंदिर परिसर के पश्चिमी भाग के भीतर स्थित है। एक अन्य मंदिर, नकुलेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित मुख्य कालीघाट मंदिर के सामने स्थित है।

काली देवी की टचस्टोन से बनी प्रचंड प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में मां काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखे हुए नजर आती हैं। गले में नरमुंडों की माला पहने हैं और हाथ में कुल्हाड़ी और नरमुंड हैं। काली मां की जीभ बाहर निकली हुई है, जिससे रक्त की कुछ बूंदें भी टपकती नजर आएंगी। इस मूर्ति के पीछे कुछ किवदंतियां भी प्रचलित हैं।

काली माता की मूर्ति श्याम रंग की है। आंखें और सिर सिंदुरिया रंग में हैं। यहां तक की मां काली के तिलक भी सिंदुरिया रंग में लगा हुआ है। वे हाथ में एक फांसा पकड़े हैं जो सिंदुरिया रंग का ही है।

मान्यता है कि एक बार देवी काली माता को क्रोध गया था, जिसके बाद उन्होंने नरसंहार करना शुरू कर दिया। उनके रास्ते में जो भी कोई आता वह उसे मार देतीं। जिस मूर्ति में काली देवी शिव की छाती पर पैर रखे नजर रही हैं, उसका अर्थ यही है कि उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव उनके मार्ग में लेट गए। भगवान शिव का ये प्रयास भी देवी को क्रोध को शांत नहीं कर पाया और देवी ने गुस्से में उनकी छाती पर पैर रख दिया। इसी दौरान उन्होंने भगवान शिव को पहचान लिया और उनका गुस्सा शांत हो गया।

कालीघाट मंदिर में दर्शन और आरती का समय

कालीघाट मंदिर के समय की बात है तो, मंदिर सुबह 5 से दोपहर 2 बजे तक और फिर शाम 5 बजे से रात 10:30 बजे तक सार्वजनिक रूप से खुला रहता है। मंदिर की पहली आरती सुबह 4 बजे होती है, इसके अलावा भोग या प्रसाद का समय दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक है, लेकिन फिर मंदिर का गर्भगृह उस समय प्रार्थना या सार्वजनिक दर्शन के लिए खुला नहीं रहता।

 

 

 

 
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