• लोगों की धार्मिक चेतना जगाना और उनमें अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व पैदा करना;
• अपने संप्रदायों के सामान्य आधारों को इंगित करके हिंदू धर्म का एकीकरण करना;
स्वामी विवेकानंद के योगदान निम्नलिखित हैं:
· हिंदू धर्म में एकीकरण लाने के लिए स्वामी जी का योगदान,
· स्वामी विवेकानंद का विश्व संस्कृति में योगदान,
· वास्तविक भारत की खोज में स्वामी जी का योगदान
· एक मठवासी भाईचारे की शुरुआत में स्वामी जी का योगदान।
विश्व संस्कृति में स्वामी विवेकानंद के योगदान का वस्तुपरक मूल्यांकन करते हुए, प्रख्यात ब्रिटिश इतिहासकार ए एल बाशम ने कहा कि "आने वाली शताब्दियों में, उन्हें आधुनिक दुनिया के प्रमुख निर्माताओं में से एक के रूप में याद किया जाएगा..." कुल मिलाकर स्वामी विवेकानंद भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रति अपने अद्वितीय और उत्कृष्ट दृष्टिकोण के लिए हर युवा के दिल में हैं और हमेशा रहेंगे। उनका योगदान भारतीय समाज में उत्कृष्टता की भावना को जागरूक करने में महत्वपूर्ण रहा है। उनकी उपदेशों और विचारों का प्रभाव आज भी हमारे समाज में महत्वपूर्ण है और उन्हें "विश्व धरोहर" कहा जाता है।
संन्यास और नया नाम
1886 में रामकृष्ण परमहंस के निधन के बाद, नरेन्द्रनाथ ने संन्यास ले लिया। संन्यासी नरेंद्रनाथ ने अपना नाम बदलकर स्वामी विवेकानंद रख लिया। इसके बाद उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों की यात्रा की और भारतीय समाज की दशा को देखा और समझा।
शिकागो धर्म महासभा (1893)
स्वामी विवेकानंद ने 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया। यहां उनके भाषण ने पश्चिमी देशों में भारतीय संस्कृति और वेदांत दर्शन की महत्ता को उजागर किया। उनके भाषण की शुरुआत "अमेरिका के भाइयों और बहनों" के संबोधन से हुई, जिसने सबका दिल जीत लिया। दो मिनट तक धर्म संसद तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना
1897 में स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस को समर्पित रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य सेवा, शिक्षा और आध्यात्मिकता के माध्यम से समाज की सेवा करना था। इस मिशन ने कई अस्पताल, विद्यालय और सामाजिक सेवा के कार्य शुरू किए। इसके अलावा उन्होंने बारानगोर मठ की स्थापना की थी, जो बाद में रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय बना। इस मठ का उद्देश्य था धार्मिक, सामाजिक और शैक्षिक कार्यों को समर्थन देना।
लेखन और शिक्षाएं
स्वामी विवेकानंद ने कई पुस्तकें और लेख लिखे, जिनमें "राजयोग," "ज्ञानयोग," "कर्मयोग," और "भक्तियोग" प्रमुख हैं। उनकी शिक्षाएं आत्म-ज्ञान, स्वावलंबन, और मानवता की सेवा पर आधारित थीं।
स्वामी विवेकानंद का निधन
स्वामी विवेकानंद का निधन 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ में हुआ। वे केवल 39 वर्ष के थे, लेकिन उनके जीवन और कार्यों का प्रभाव आज भी व्यापक रूप से महसूस किया जाता है।